देहरादून: राज्यपाल (रि) लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने सर्वे ऑफ इंडिया में राष्ट्रीय सर्वेक्षण दिवस के मौके पर महान सर्वेक्षक पंडित नैन सिंह रावत की पांचवीं पीढ़ी की कमला रावत को सम्मानित किया. इस मौके पर राज्यपाल ने कहा कि जिस प्रकार से 18वीं सदी में कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और बिना संसाधनों के बड़ी चुनौतियों का सामना कर सर्वेक्षण किया गया था. उनके देश के प्रति इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. देश पंडित नैन सिंह रावत, किशन सिंह सहित किंथुप और राधानाथ सरकार जैसे महान सर्वेक्षकों को आज आजादी के अमृत महोत्सव पर याद कर रहा है. उनके किए गए कार्य ही आज हमारे वर्तमान और भविष्य के आधार हैं.
राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि आज के दिन की राष्ट्रीय सर्वेक्षण दिवस पर त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण शुरू किया गया था. इसके साथ ही आज के समय में भू-स्थानिक उपकरणों और तकनीकी के माध्यम से भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ और महामारियों की निगरानी से कुशल प्रबंधन किया जा रहा है. राज्यपाल ने कहा कि आज सर्वेक्षण के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग, मॉडर्नाइजेशन, सहित ट्रांसफॉर्मेशन, आधुनिकतम तकनीकों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. मैपिंग का क्षेत्र चुनौतिपूर्ण है, इसलिए हमें परंपरागत तकनीक और आधुनिक तकनीक का मिश्रण करना चाहिए.
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इसके साथ ही राज्यपाल (रि) लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारियों से संस्थान द्वारा चलाई जा रही क्लीन गंगा और नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट की जानकारी ली. उन्होंने कहा कि इन योजनाओं से जनसामान्य के जीवन में तकनीक से सुधार किया जा सकता है. इसके साथ राज्यपाल ने सर्वे ऑफ इंडिया से जुड़े तकनीकी यंत्रों की जानकारी भी अधिकारियों से ली. सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारियों ने राज्यपाल के सामने मैपिंग सर्वेक्षण और अन्य तकनीकों का डेमो भी दिया.
कौन थे पंडित नैन सिंह रावतःनैन सिंह रावत ने (1830-1895) 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों के लिये हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की. नैन सिंह रावत मूलरूप से पिथौरागढ़ जनपद के मुनस्यारी तहसील के रहने वाले थे. उन्होंने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्र बनाया था. उन्होंने ही सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊंचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो (Tsangpo) के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया. उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें पंडित की उपाधि से नवाजा गया.
पिथौरागढ़ जिले में हुआ था जन्मःपंडित नैन सिंह रावत का जन्म उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील स्थित मिलम गांव में 21 अक्तूबर 1830 को हुआ था. उनके पिता अमर सिंह को लोग 'लाटा बूढ़ा' के नाम से जानते थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हासिल की लेकिन आर्थिक तंगी के कारण जल्द ही पिता के साथ भारत और तिब्बत के बीच चलने वाले पारंपरिक व्यापार से जुड़ गए थे. इससे उन्हें अपने पिता के साथ तिब्बत के कई स्थानों पर जाने और उन्हें समझने का मौका मिला. उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी जिससे आगे उन्हें काफी मदद मिली. हिन्दी और तिब्बती के अलावा उन्हें फारसी और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था. इस महान अन्वेषक, सर्वेक्षक और मानचित्रकार ने अपनी यात्राओं की डायरियां भी तैयार की थी. उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकतर समय खोज और मानचित्र तैयार करने में बिताया.
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पंडित नैन सिंह और उनके भाई 1863 में जीएसटी (ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे) से जुड़े और उन्होंने विशेष तौर पर नैन सिंह 1875 तक तिब्बत की खोज में लगे रहे. नैन सिंह और उनके भाई मणि सिंह को तत्कालीन शिक्षा अधिकारी एडमंड स्मिथ की सिफारिश पर कैप्टेन थामस जार्ज मोंटगोमेरी ने जीएसटी के तहत मध्य एशिया की खोज के लिये चयनित किया था. उनका वेतन 20 रुपए प्रति माह था. इन दोनों भाइयों को ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे के देहरादून स्थित कार्यालय में दो साल तक प्रशिक्षण भी दिया गया था.
ल्हासा और मानसरोवर झील का नक्शा तैयार किया थाःपंडित नैन सिंह ने काठमांडू से लेकर ल्हासा और मानसरोवर झील का नक्शा तैयार किया. इसके बाद वह सतलुज और सिंध नदी के उद्गम स्थलों तक गये. उन्होंने 1870 में डगलस फोर्सिथ के पहले यरकंड यानी काशगर मिशन और बाद में 1873 में इसी तरह के दूसरे मिशन में हिस्सा लिया था.