देहरादून: शंगाई जिसे स्थानीय लोग डांसिंग डियर भी कहते हैं. महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही मिलता है. इनकी संख्या से साफ है कि दुनिया में इस प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. जिनकी संख्या करीब सौ से डेढ़ सौ के आसपास रह गई है. हालांकि भारत सरकार की तरफ से हुई पहल के बाद इनके संरक्षण की उम्मीदें बढ़ गयी हैं.
दरअसल, मणिपुर के राज्य पशु शंगाई को स्थानीय लोग नाचने वाला हिरण (डांसिंग डियर) कहते हैं. हिरण की ये प्रजाति दुनियाभर में महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही पाई जाती है. नेशनल पार्क में पानी पर तैरता घास का मैदान डांसिंग डियर का आशियाना है. ये दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ उद्यान (floating national park) है. वैज्ञानिकों के अनुसार तैरती हुई घास के मैदान पर चलते समय बैलेंस बनाने की कोशिश में ऐसा महसूस होता है कि हिरण नाच रहा है और इसीलिए इसे डांसिंग डियर भी कहा जाता है.
डांसिंग डियर के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा. पढ़ें-लोक परंपराओं के संरक्षण का द्योतक है सातूं-आठूं महोत्सव, दूर-दराज से पहुंचते हैं लोग
डांसिंग डियर को लेकर चिंता की बात यह है कि एक तो यह प्रजाति दुनियाभर में सिर्फ मणिपुर में ही पाई जाती है और यहां भी धीरे-धीरे इनकी संख्या कम हो रही है. फिलहाल वैज्ञानिक बताते हैं कि इनकी संख्या करीब सौ से डेढ़ सौ के आसपास रह गई है. शंगाई या डांसिंग डियर की कम होती संख्या के लिए सबसे बड़ी वजह वह फुण्डिया है, जिनपर ये विचरण करते हैं. बता दें कि लोकटक झील पर घास और मृदा के संयुक्त बायोमास जिसे स्थानीय लोग फुंडी कहते हैं. यहीं पर डांसिंग डियर रहते हैं.
अब इन फुण्डियों के पतले होने चलते इन्हें दिक्कतें आ रही हैं. इसके अलावा डांसिंग डियर के लिए कम स्थान और अवैध शिकार भी दिक्कतें बढ़ा रहा है. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को अब शंगाई के संरक्षण का काम सौंपा गया है. इसके लिए डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिक शंगाई के लिए मणिपुर में ही दूसरा आशियाना बनाने की तैयारी कर रहे हैं. साथ ही स्थानीय लोगों को जागरूक करने समेत शंगाई को बीमारियों से बचाने जैसी कोशिशें भी की जा रही हैं.