देहरादून: उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएं लोगों पर कहर ढाती रही हैं. खासतौर पर मानसून सीजन के दौरान तो ऐसी घटनाएं हर साल राज्य को खासा नुकसान पहुंचाती हैं. ऐसे में राज्य सरकार भी इन खतरों को देखते हुए खुद को इसके लिए तैयार कर रही है. छोटे रडार स्थापित किए जाने के मामले में राज्य सरकार कुछ सुस्त मोड में नजर आ रही है. बेहद जरूरी होने के बावजूद मौसम विभाग का छोटे रडार लगाने का प्रस्ताव अब तक शासन में अंतिम मंजूरी नहीं पा सका है.
प्राकृतिक आपदाओं के खतरों को कम करने के लिए टेक्नोलॉजी अपना अहम रोल निभाती है. मौसम विभाग भी इसी टेक्नोलॉजी के जरिए उन तमाम मौसमीय घटनाओं की भविष्यवाणी करता है. ये टेक्नोलॉजी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान इंसानी जिंदगियों के लिए अहम योगदान निभाती है. फिलहाल, उत्तराखंड को प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए फूल प्रूफ प्लान की जरूरत है. इसके लिए मौसम विभाग को ऐसे छोटे डॉप्लर रडार चाहिए जो उन क्षेत्रों को भी कवर कर सके, जहां बड़े डॉप्लर रडार की पहुंच नहीं है. इसके लिए मौसम विभाग की तरफ से राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के साथ हुई बैठक के दौरान प्रस्ताव रखा गया था. जिसमें राज्य भर में करीब पांच छोटे डॉप्लर रडार की जरूरत को महसूस किया गया. डॉप्लर रडार के प्रस्ताव पर अब तक सरकार की तरफ से कोई अंतिम फैसला नहीं हो पाया है. इसीलिए इन्हें जल्द स्थापित किया जा सकेगा. इसकी भी संभावना कम नजर आ रही है.
राज्य में ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां छोटे डॉप्लर रडार के जरिए सटीक मौसम की जानकारी दी जा सकती है. यह वह क्षेत्र हैं जहां तक बड़े डॉप्लर रडार की पहुंच नहीं बन पा रही है.
विक्रम सिंह, मौसम विभाग निदेशक
प्रदेश में पांच छोटे डॉप्लर राडार आने से ऐसे विभिन्न क्षेत्रों को भी मौसम विभाग कवर कर पाएगा,जहां मौसम विभाग फिलहाल सटीक जानकारी देने में कुछ नाकाम सा साबित हो रहा है. इसमें देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर के साथ ही पर्वतीय जनपदों में हिमालय क्षेत्र भी शामिल हैं जो बॉर्डर क्षेत्र हैं. इसके अलावा कई जगह ऐसी हैं जहां ऊंची चोटियों पर बड़े डॉप्लर रडार की रेंज पूरी तरह से नहीं पहुंच पाती. खास बात यह है कि इन छोटे डॉप्लर रडार के लगने के बाद इसका लाभ न केवल कई क्षेत्रों के आम लोगों को मिलेगा बल्कि बॉर्डर पर तैनात भारतीय सेना भी इसका लाभ ले सकेगी.