देहरादून:एक्टर सलमान खान की एक फिल्म आई थी ''बजरंगी भाईजान'' (Girish Pant Bajrangi Bhaijaan). इस फिल्म में सलमान खान मुन्नी नाम की एक बच्ची को पाकिस्तान छोड़ने जाते हैं, जो गलती से भारत में फंस जाती है. ऐसे ही एक उत्तराखंड के युवा हैं, जिनका नाम है गिरीश पंत, लेकिन लोग उन्हें बजरंगी भाईजान (Uttarakhand Bajrangi Bhaijaan) के नाम से जानते हैं. गिरीश पंत उत्तराखंड के बेरीनाग के रहने वाले हैं और फिलहाल एक कंपनी में बतौर अकाउंटेंट हैं. कई सालों से वे दुबई और अन्य देशों में फंसे एक हजार से ज्यादा भारतीयों को अपने वतन लौटा चुके (helped Indians stranded abroad) हैं. देश हित में किए गए इस कार्य के लिए राष्ट्रपति उन्हें सम्मानित भी कर चुके हैं.
गिरीश को फंसे हुए लोगों की सहायता करने की प्रेरणा कहां से मिली, इस सवाल का जवाब जब हमने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि उनका परिवार और वह खुद ऐसी परिस्थितियों में रहे हैं. वह जानते हैं कि अगर किसी की सहायता कर दी जाए तो उस व्यक्ति को कैसा महसूस होता है. आज से लगभग 14 साल पहले जब वह दुबई में काम करने के लिए गए थे, तब उन्हें पहली बार एक मामला दिखा, जिसमें भारत के ही एक युवक की बॉडी को भारत पहुंचाना था. यह काम बेहद मशक्कत का था, लेकिन गिरीश पंत ने कोशिश की और वह कोशिश में कामयाब भी हो गए.
विदेशों में फंसे भारतीयों के लिए देवदूत से कम नहीं गिरीश पंत. पढ़ें- मलेशिया में फंसे राहुल को मिला 'बजरंगी भाईजान' का साथ, कराई घर वापसी तीन हजार से ज्यादा का लोगों की कर चुके है मदद:गिरीश पंत कहते हैं कि वह लगभग इस काम को 12 साल से कर रहे हैं और अब तक उन्होंने तीन हजार से ज्यादा लोगों को भारत सहित अन्य देशों में सकुशल पहुंचाया है. गिरीश पंत ने बताया कि दुबई, ओमान और कतर के अलावा अन्य किसी देश में भी फंसे व्यक्ति को वहां से निकलवाना और या फिर उसके पार्थिव शरीर को घर भिजवाना बहुत पेचीदा काम है. इसमें बहुत की कानूनी दांवपेंच का काम होता है.
गिरीश पंत ने बताया कि इसमें भारत सरकार काफी मदद करती है, लेकिन अगर कोई जानकार व्यक्ति उस देश में मौजूद है तो ये काम और आसानी से हो जाता है. गिरीश पंत बताते हैं कि उनके सामने कई इस तरह के मामले आते हैं, जो एजेंटों के जरिए दूसरे देशों में काम करने गए, लेकिन वहां पहुंचने के बाद वे उसी देश में फंस गए. ऐसे मुश्किल में फंसे हुए कई लोग उनसे संपर्क करते हैं और वो उनकी मदद करने की पूरी कोशिश करते हैं.
गिरीश पंत बताते हैं कि बीते कई सालों से वे इसी तरह लोगों की मदद कर रहे हैं. कई बार ऐसा भी हुआ है कि पैसे की कमी के कारण परिवार अपने परिजन का शव भारत नहीं ला पाते हैं या फिर कोई अन्य कानूनी कारण भी आड़े हैं. गिरीश पंत का कहना है कि उनकी कोशिश यही होती है कि वे उन्हें इन मुश्किलों से निकाल और जैसे-तैसे भी फंसे हुए व्यक्ति को उसके देश वापस भिजवाएं.
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यूक्रेन और रूस युद्ध में भी किया काम: गिरीश ने बताया कि यूक्रेन और रूस युद्ध में भारत के कई लोग यूक्रेन में फंस गए थे, जिन्होंने उनके संपर्क किया था. गिरीश ने दुबई के कुछ लोगों के साथ मिलकर यूक्रेन से फंसे कई छात्रों को रेस्क्यू करवाया था.
गिरीश पंत से जब हमने यह पूछा कि यह काम आप पैसों के लिए करते हैं या फिर सम्मान के लिए. इस पर गिरीश कहते हैं कि न तो वह पैसों के लिए यह काम कर रहे हैं और न ही सम्मान के लिए. इतना जरूर है कि उन्हें इस काम की वजह से बीते दिनों राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रवासी भारतीय सम्मान से जरूर सम्मानित किया था. गिरीश का यही मानना है कि अगर वह किसी की सहायता कर सकते हैं तो आंख बंद करके वह कर देना चाहते हैं.
मन में उत्तराखंड के लिए कुछ करने की इच्छा:गिरीश पंत ने बताया कि इस बार जब वे दुबई से देहरादून आए तो उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात (Girish Pant meet CM Pushkar) की. वह चाहते हैं कि उत्तराखंड के जो लोग अलग-अलग देशों में रहते हैं, उनको एक मंच पर एकत्रित किया जाए. इसमें उन लोगों को जोड़ा जाए जो उत्तराखंड और उत्तराखंडियत की याद के लिए कुछ कर सकते हों. गिरीश पंत को उम्मीद है कि सीएम धामी इस दिशा में जरूर विचार करेंगे.
विदेश में नौकरी का सपना देख रहे युवाओं को सुझाव: उत्तराखंड और देश के अन्य हिस्सों से भी बड़ी संख्या में युवा विदेशों में नौकरी करने का सपना लेकर जाते हैं, लेकिन वहां पर किसी न किसी मुश्किल में फंस जाते हैं. ऐसे में युवाओं को गिरीश पंत ने कुछ सुझाव दिए हैं.
गिरीश पंत ने बताया कि दुबई और यूएई के तमाम देशों में बहुत सख्त कानून हैं. जो कानून वहां के नागरिकों के लिए होगा, वही कानून बाहर से आने वाले व्यक्ति के लिए भी होगा. एजेंटों के चक्कर में आकर फिर भी कुछ लोग वहां फंस जाते हैं. अक्सर युवाओं को एजेंटों के जरिए ये ही बताया जाता है कि दुबई में उन्हें बहुत लग्जरी नौकरी करनी है, लेकिन जैसे ही कोई युवा पहुंचता है तो उसे पता चलता है कि जो काम उसे बताया गया था, ये उससे काफी अलग है. मजबूरी में फंसे हुए व्यक्ति के पास कोई रास्ता नहीं होता और वो किसी न किसी कंपनी के साथ कांट्रेक्ट साइन कर लेता है.
कांट्रेक्ट साइन करने के बाद उसका वहां से निकलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे हालात में फंसे हुए व्यक्ति को दुबई की कई बड़ी संस्थाएं भारत सरकार और काउंसलेट जनरल के साथ-साथ एंबेसी में भी बातचीत करके निकालती हैं. गिरीश की युवाओं को सलाह है कि अगर कोई व्यक्ति बाहर के देशों में काम करना भी चाहता है तो भारत सरकार की एक वेबसाइट है, जिस पर सभी कंपनियों की जानकारियां उपलब्ध रहती हैं. लिहाजा किसी एजेंट के माध्यम से नहीं बल्कि भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार ही विदेशों में नौकरी करने जाएं.