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उत्तराखंड के ये ग्लेशियर भी ला सकते हैं तबाही, ईटीवी भारत ने अक्टूबर में दिखाई थी रिपोर्ट

उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा ने काफी इलाके को तबाह कर दिए हैं. उत्तराखंड के विशेषज्ञों ने सितंबर और अक्टूबर में ही तेजी से पिघलते ग्लेशियर को लेकर आगाह कर दिया था. ईटीवी भारत ने अक्टूबर में एक स्टोरी छापी थी, जिसमें इस बात की तस्दीक कर रहे हैं.

Glacier in Uttarakhand
खतरे में एशिया का वाटर हाउस

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Published : Oct 28, 2020, 9:31 PM IST

Updated : Feb 8, 2021, 6:07 PM IST

देहरादून: बढ़ते हुए तापमान का भारतीय ग्लेशियरों पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है. गंगोत्री के हजारों साल पुराने ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार इतनी तेज़ हो गई है कि गंगा के जलस्तर पर बड़ा खतरा मंडराने की नौबत आ गई है. जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार हिमालय में 9575 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं. इनमें से करीब 1200 ग्लेशियर उत्तराखंड में मौजूद हैं.

ताजा अध्ययन से पता चला है कि मुख्य गंगोत्री ग्लेशियर तो पिघल ही रहा है. लेकिन, इसके साथ ही पानी के कम वॉल्यूम वाले सहायक ग्लेशियर्स भी सबसे ज्यादा तेजी से सिकुड़ रहे हैं. जिसका असर पूरे गंगोत्री ग्लेशियर पर पड़ रहा है. गंगोत्री ग्लेशियर सालाना 15 मीटर की दर से पीछे की ओर खिसक रहा है. जिसकी वजह से 28 किलोमीटर लंबे ग्लेशियर के अस्तित्व के साथ गंगा के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लग गया है.

गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा.

ये हैं प्रमुख ग्‍लेशियर

उत्तराखंड में करीब 1200 ग्‍लेशियर हैं. लेकिन इनमें महत्वपूर्ण गंगोत्री ग्लेशियर समूह, ढोकरानी-बमक ग्लेशियर, चोराबाड़ी ग्लेशियर, द्रोणागिरी-बागनी ग्लेशियर, पिण्डारी ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर, कफनी, सुंदरढुंगा, सतोपंथ, भागीरथी खर्क, टिप्रा, जौन्धार, तिलकू और बंदरपुंछ ग्‍लेशियर हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर हिमालय के ग्लेशियरों पर दिख रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी शोध पहले ही बता चुके हैं कि हिमालय के ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं. हिमालय को एशिया का वाटर हाउस कहा जाता है. वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से हिमालय पूरे विश्व में अलग स्थान रखता है.

गंगोत्री ग्लेशियर्स पर लंबे समय से अध्ययन करने वाली डॉ हर्षवंती बिष्ट ने अपनी शोध में बताती हैं कि गंगोत्री ग्लेशियर हर साल सिकुड़ रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि गंगोत्री ग्लेशियर के सहायक ग्लेशियर मेरू, कीर्ति, घनोहिम, चतुरंगी, रक्तवर्ण आदि ग्लेशियरों में बर्फ नहीं होने से यहां पर खुले में पानी भर रहा है. डॉ हर्षवंती अध्ययन के आधार पर बताती हैं कि ग्लेशियर्स पर मिलने वाली वनस्पति अब ऊंचाई वाले ग्लेशियर्स पर नहीं मिल रहे हैं. जिससे यह साफ है कि गंगोत्री ग्लेशियर में ग्लोबल वॉर्मिंग का असर साफ देखा जा सकता है.

खतरे में गंगोत्री ग्लेशियर.

एशिया का वाटर हाउस

हिमालय को एशिया का वाटर हाउस कहा जाता है. एशिया का वाटर हाउस हिमालय में ग्लोबल वॉर्मिंग का असर एक दशक में दिखा भी है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट की मानें तो 2030 तक हिमालय में भी अगर 1.5 डिग्री तापमान बढ़ा, तो विशालकाय ग्लेशियर को देखने पर्यटक हर साल आते हैं, वो विलुप्त हो जाएंगे. पतितवावनी गंगा नदी सहित कई नदियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.

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गंगोत्री ग्लेशियर की लंबाई करीब 28 से 30 किलोमीटर है, जो समुद्र तल से 3950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगोत्री ग्लेशियर की मोटाई भी पिघलने के साथ-साथ कम हो रही है. अगर, ग्लेशियर इसी रफ्तार से सिकुड़ता रहा तो आने वाले समय में इसका बड़ा असर पूरे हिमालय क्षेत्र में देखने को मिल सकता है. जिस पवित्र गंगा नदी के आसपास करोड़ों लोग, वन्य जीव समेत जलीय जीव निर्भर हैं, उनके अस्तित्व पर खतरे में पड़ जाएगा.

गंगोत्री का सबसे बड़ा ग्लेशियर

उत्तरकाशी जिले में स्थित चतुरंगी ग्लेशियर के कई सहायक ग्लेशियर हैं. जिनमें सीता, सुरालय और वासुकी शामिल हैं. करीब 21.1 किलोमीटर लंबा चतुरंगी ग्लेशियर 43.83 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी सीमाएं समुद्र तल से 4,380 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं. अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, ग्लेशियरों के पिघलने से एक स्थान पर जमा होने वाले पानी से ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में झीलों का निर्माण हो सकता है. जो आपदाओं संबंधी खतरों को बढ़ावा दे सकती हैं.

गंगा का अस्तित्व भी खतरे में

गंगा नदी करोड़ों हिंदुओं के लिए आस्था को केंद्र है. वह उनके लिए केवल नदी नहीं बल्कि एक संस्कृति है, जो सदियों से सदानीरा बहते हुए मनुष्यों के पापों को धोती आ रही है. गंगोत्री ग्लेशियर गंगा नदी का उद्गम स्थल है. हजारों श्रद्धालु गंगोत्री दर्शन के बाद प्रति वर्ष गोमुख पहुचते हैं. गोमुख से ही गंगा की प्रमुख सहायक नदी भागीरथी नदी निकलती है.

ऐसे बनते हैं ग्लेशियर

वैज्ञानिक कहते हैं कि ग्लेशियर तब बनते हैं, जब लंबे समय तक हिम की परतें एक के ऊपर एक जमा हो जाती हैं. हिम की यह परतें कई सौ फुट मोटी हिमनदों का रूप ले लेती हैं. गंगोत्री ग्लेशियर भी ऐसे ही बना होगा. ग्लेशियर हैं तो नदियां हैं, नदियां हैं तो जल, जंगल, और मानव सभ्यता और जीवन है. लेकिन सचाई फिलहाल यही है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हिमालय के ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं. ऐसे में पूरे विश्व के इनके संरक्षण के दिशा में कदम उठाने की जरूरत है.

Last Updated : Feb 8, 2021, 6:07 PM IST

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