देहरादून: बढ़ते हुए तापमान का भारतीय ग्लेशियरों पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है. गंगोत्री के हजारों साल पुराने ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार इतनी तेज़ हो गई है कि गंगा के जलस्तर पर बड़ा खतरा मंडराने की नौबत आ गई है. जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार हिमालय में 9575 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं. इनमें से करीब 1200 ग्लेशियर उत्तराखंड में मौजूद हैं.
ताजा अध्ययन से पता चला है कि मुख्य गंगोत्री ग्लेशियर तो पिघल ही रहा है. लेकिन, इसके साथ ही पानी के कम वॉल्यूम वाले सहायक ग्लेशियर्स भी सबसे ज्यादा तेजी से सिकुड़ रहे हैं. जिसका असर पूरे गंगोत्री ग्लेशियर पर पड़ रहा है. गंगोत्री ग्लेशियर सालाना 15 मीटर की दर से पीछे की ओर खिसक रहा है. जिसकी वजह से 28 किलोमीटर लंबे ग्लेशियर के अस्तित्व के साथ गंगा के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लग गया है.
ये हैं प्रमुख ग्लेशियर
उत्तराखंड में करीब 1200 ग्लेशियर हैं. लेकिन इनमें महत्वपूर्ण गंगोत्री ग्लेशियर समूह, ढोकरानी-बमक ग्लेशियर, चोराबाड़ी ग्लेशियर, द्रोणागिरी-बागनी ग्लेशियर, पिण्डारी ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर, कफनी, सुंदरढुंगा, सतोपंथ, भागीरथी खर्क, टिप्रा, जौन्धार, तिलकू और बंदरपुंछ ग्लेशियर हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर हिमालय के ग्लेशियरों पर दिख रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी शोध पहले ही बता चुके हैं कि हिमालय के ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं. हिमालय को एशिया का वाटर हाउस कहा जाता है. वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से हिमालय पूरे विश्व में अलग स्थान रखता है.
गंगोत्री ग्लेशियर्स पर लंबे समय से अध्ययन करने वाली डॉ हर्षवंती बिष्ट ने अपनी शोध में बताती हैं कि गंगोत्री ग्लेशियर हर साल सिकुड़ रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि गंगोत्री ग्लेशियर के सहायक ग्लेशियर मेरू, कीर्ति, घनोहिम, चतुरंगी, रक्तवर्ण आदि ग्लेशियरों में बर्फ नहीं होने से यहां पर खुले में पानी भर रहा है. डॉ हर्षवंती अध्ययन के आधार पर बताती हैं कि ग्लेशियर्स पर मिलने वाली वनस्पति अब ऊंचाई वाले ग्लेशियर्स पर नहीं मिल रहे हैं. जिससे यह साफ है कि गंगोत्री ग्लेशियर में ग्लोबल वॉर्मिंग का असर साफ देखा जा सकता है.
एशिया का वाटर हाउस
हिमालय को एशिया का वाटर हाउस कहा जाता है. एशिया का वाटर हाउस हिमालय में ग्लोबल वॉर्मिंग का असर एक दशक में दिखा भी है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट की मानें तो 2030 तक हिमालय में भी अगर 1.5 डिग्री तापमान बढ़ा, तो विशालकाय ग्लेशियर को देखने पर्यटक हर साल आते हैं, वो विलुप्त हो जाएंगे. पतितवावनी गंगा नदी सहित कई नदियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.