देहरादून: कोरोनाकाल में संक्रमित मरीजों के शवों को गंगा में बहाए जाने को लेकर हड़कंप मचा हुआ है. केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक में इस स्थिति पर विशेषज्ञों की राय भी ली गई है. उत्तर प्रदेश में तो इसे लेकर अधिकारियों को विशेष दिशा-निर्देश भी जारी किये गये हैं. यही नहीं भारत सरकार की तरफ से भी राज्य को एक एडवाइजरी भेजी गई है.
वहीं, इन सभी स्थितियों के बीच अच्छी बात यह है कि नदियों के किनारे रहने वाले वह लोग जिन्हें गंगा के संरक्षण के लिए प्रशिक्षित किया गया है. लगातार संक्रमित मरीजों के शवों को गंगा में न बहाये जाने को लेकर निगरानी कर रहे हैं. गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से बेहद वृहद स्तर पर स्वच्छ गंगा अभियान चलाया गया है.
कोरोना काल में गंगा संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहे प्रशिक्षित गंगा प्रहरी हालांकि इसके बाद भी वैज्ञानिक यह मानते हैं कि गंगा में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि अब गंगा आचमन लेने तक की स्थिति में नहीं है. ऐसी स्थिति में अब नई समस्या यह खड़ी हो गई है कि संदिग्ध संक्रमित मरीजों के शवों को भी गंगा में बहाए जाने के मामले सामने आ रहे हैं. गंगा के लिहाज से यह एक बड़ी चिंता का सबब है. लिहाजा केंद्र से लेकर राज्य सरकारों के स्तर पर इस मामले को लेकर विशेष दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं.
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अच्छी बात यह है कि संक्रमित मरीजों को गंगा में न बहाया जाए इसके लिए गंगा प्रहरी एक महत्वपूर्ण भूमिका में दिखाई दे रहे हैं. गंगा प्रहरी गंगा की स्वच्छता को लेकर कोई नया प्रयोग नहीं है. बल्कि यह वह लोग हैं जिन्हें गंगा के किनारे रहने के चलते प्रशिक्षित किया गया है. ताकि यह लोग गंगा की स्वच्छता में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सके और लोगों को जागरूक भी कर सकें. इसी दिशा में गंगा प्रहरी अब कोरोना काल में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हुए संक्रमित मरीजों को गंगा में ना बहाए जाने को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं.
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यह लोग घाटों पर बैनर और स्लोगन के जरिए प्रशासन के साथ मिलकर भी काम कर रहे हैं. इस मामले में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की नोडल अधिकारी और WII की वरिष्ठ वैज्ञानिक रुचि बडोला कहती हैं कि गंगा को स्वच्छ रखने के लिए गंगा प्रहरियों को प्रशिक्षित किया गया है. उन्हें गंगा नदी और जैव विविधता के बारे में पूरी जानकारी दी गई है. इसी कारण कोविड-19 के समय में भी यह लोग बेहतर काम कर रहे हैं.