देहरादून:दिवाली पर्व हर किसी के लिए खास होता है, त्योहार का लोग पूरे साल बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस मौके पर ताश खेलने की परंपरा अतीत से चली आ रही है. कई लोग इसे धर्मिक मान्यता से भी जोड़कर देखते हैं. भले ही ताश खेलने पर कानूनी पाबंदी हो, लेकिन इस दिन लोग ताश खेलना शगुन मानते हैं. वहीं कानून के जानकार और सामाजिक कार्यकर्ता जुआ अधिनियम के कानून में संशोधन की मांग करते दिखाई दे रहे हैं. क्यों की कोरोनाकाल में जुआ खेलने की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी देखने को मिली है.
उत्तराखंड बार काउंसिल के सदस्य चंद्रशेखर तिवारी का कहना है कि जुए की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए. ऐसे में जुआ अधिनियम के कानून में संशोधन की सख्त आवश्यकता है. क्योंकि जिस तरह से मात्र 13 गैम्बलिंग एक्ट के अंतर्गत पुलिस मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तार करती है. जो आराम से जमानत पर रिहा हो जाते हैं. उन्होंंने कहा कि जुआ अधिनियम कानून इतना लचर है जिसकी वजह से आज जुए को ऑनलाइन क्रिकेट सहित तमाम तरह के खेलों में परोस कर देश के आर्थिक स्थिति को संकट में डाला जा रहा है.
उत्तराखंड में पिछले 4 वर्षों में जुआ अधिनियम के तहत मुकदमों और गिरफ्तार अभियुक्तों के आंकड़े..
चंद्रशेखर तिवारी के अनुसार दिवाली में जुए के अलग-अलग खेल अंधविश्वास के रूप में चरम पर होते हैं. लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि त्योहार से इतर साल के 365 दिन तरह तरह का जुआ आधुनिक रूप लेकर कई तरह से देश के हर कोने में खेला जाता है. जिसकी जद में युवा पीढ़ी आ रही है. लेकिन इसके बावजूद कानून सख्त न होने के चलते पुलिस भी इस मामले में खानापूर्ति करती नजर आती है.