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आखिर कब तक 'गैर' रहेगा गैरसैंण, बजट सत्र में स्थाई राजधानी का नहीं हुआ जिक्र - प्रकाश पंत

इस बार पूरे बजट सत्र के दौरान राज्यपाल के अभिभाषण से लेकर विपक्ष के मुद्दों तक और सोमवार को पेश किये गये बजट में गैरसैण से संबंधित विषय और किसी भी योजना का जिक्र नहीं हुआ. इस दौरान किसी नेता के बयान में भी स्थाई राजधानी का मुद्दा नजर नहीं आया.

गैरसैंण

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Published : Feb 19, 2019, 1:59 AM IST

देहरादूनः उत्तराखंड सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 बजट पेश कर दिया है. इस बार का बजट पिछले बजट से 7 फीसदी बढ़ोत्तरी के साथ 22 करोड़ का सरप्लस बजट है. वहीं, इस बार पूरे बजट सत्र के दौरान स्थाई राजधानी का मुद्दा नजर नहीं आया. स्थाई राजधानी गैरसैंण को लेकर पक्ष और विपक्ष ने कोई भी जिक्र नहीं किया.


उत्तराखंड विधानसभा में दो दिन की देरी के बाद आखिरकार वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने सोमवार को बजट पेश कर दिया. बजट की शुरूआत में वित्त मंत्री ने पहले संस्कृत में श्लोक पढ़ा, उसके बाद बजट पेश किया. इस बार त्रिवेंद्र सरकार ने 48663.90 करोड़ का बजट विधानसभा में पेश किया है. सरकार के इस बजट ने सभी क्षेत्रों लेकर सर प्लस बजट दिखाकर एक संतुलित बजट पेश करने का प्रयास किया है. इसमें शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, कृषि के अलावा कई मुद्दे शामिल हैं.


वहीं, इस बार पूरे बजट सत्र के दौरान राज्यपाल के अभिभाषण से लेकर विपक्ष के मुद्दों तक और सोमवार को पेश किये गये बजट में गैरसैण से संबंधित विषय और किसी भी योजना का जिक्र नहीं हुआ. इस दौरान किसी नेता के बयान में भी स्थाई राजधानी का मुद्दा नजर नहीं आया. साथ ही विपक्ष ने इसे लेकर सरकार पर कोई दबाव नहीं बनाया.


गैरसैंण मुद्दे की दरकार देहरादून में पेश हुए बजट सत्र में सदन के भीतर नहीं हुई हो लेकिन सड़कों पर अभी भी गैरसैंण का मुद्दा छाया हुआ है. स्थाई राजधानी को लेकर तमाम लोग धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं, बावजूद इस मुद्दे को तवज्जो नहीं दी गई. हालांकि सरकार ने गैरसैंण के भराड़ीसैण में विधानसभा भवन तैयार किया है, लेकिन ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन सत्र का हवाला देकर स्थाई राजधानी के मुद्दे को लटका दिया जाता है. राजनीतिक दलों ने सत्तासीन होने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल किया है. इस बार सत्ता और विपक्ष ने गैरसैंण को दरकिनार किया है.


गैरसैंण हमेशा से एक भावनात्मक मुद्दा रहा है. ये सियासत का एक ऐसा हथियार माना जाता है जिसे चुनाव के वक्त इसे भुनाया जाता है. ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि क्या केवल चुनावी माहौल में गैरसैंण का नाम लिया जाता है? फिर उसके बाद मुद्दा इतिश्री हो जाती है. साथ ही बड़ा सवाल ये भी है कि आखिर उत्तराखंड को अपनी असली राजधानी कब मिलेगी?

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