बैतूल (मप्र): रंगों का पर्व होली दस्तक दे चुका है. देश के काेने-कोने में होली की अमिट धूम रहती है. क्या बूढ़े, क्या बच्चे सभी होली के खुमार में डूबे रहते हैं. होली के मदहोश कर देने वालों फागों से पूरा वातावरण महक उठता है. हवा में उड़ते रंग-बिरंगे गुलाल, जोर-शोरों से डीजे में बजते गाने, भांग की मस्ती में मग्न लोग, शोरगुल कर पिचकारियों से खेलते बच्चे और गुझिया-पकवानों का आनंद लेते बुजुर्ग. कुछ ऐसा ही देश भर में माहौल होता है होली के दिन.
लेकिन पूरा देश जब गुलाल के रंग और भांग की मस्ती में मग्न रहता है, तब बैतूल के डहुआ गांव में सन्नाटा पसरा रहता है. डहुआ गांव एक ऐसा गांव हैं जहां पिछले 100 सालों से ग्रामीणों ने होली हीं नहीं खेली है. वहीं जब कभी ग्रामीणों ने होली खेलने की कोशिश भी की तो किसी न किसी अनहोनी ने आकर रोड़ा डाल ही दिया.
डहुआ गांव के ग्रामीण बताते हैं कि 100 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली के दिन रंग गुलाल खेलते वक्त गांव की ही एक बावड़ी में डूबने से मौत हो गई थी, जिसके बाद एक-दो साल तक तो होली नहीं मनाई गई, लेकिन जैसे एक बार होली मनाने की कोशिश की गई तो गांव के ही एक परिवार में फिर किसी का देहांत हो गया.