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जमातियों पर बरसे हरीश रावत, बढ़ते संक्रमण के लिए बताया जिम्मेदार

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य में बढ़ते कोरोना संक्रमण के लिए दिल्ली से लौटे जमातियों को जिम्मेदार ठहराया है. हरदा ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर भी चिंता जताई.

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Published : Apr 11, 2020, 10:16 AM IST

पूर्व सीएम हरीश रावत
पूर्व सीएम हरीश रावत

देहरादून:लॉकडाउन के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. हरदा लगातार कोरोना को लेकर चिंता जता रहे हैं. कल लॉकडाउन के 17वें दिन हरदा ने एक लंबी पोस्ट डाली. हरदा लिखते हैं.

राज्यों को चाहिये कि, वे पूर्ण शक्ति लगाकर कोरोना वायरस को गांव में न घुसने दें. उत्तराखंड को मैं, प्रारंभ से ही इस खतरे से सावधान करता आ रहा हूँ. उत्तराखंड आर्द्रतायुक्त प्रदेश है. यहां के प्रत्येक गाँव से दर्जन-आधा दर्जन लोग राज्य से बाहर सेवारत हैं. गांवों में वृद्धजनों की तुलनात्मक संख्या बहुत अधिक है. स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बहुत कमजोर है. कोरोना से लड़ने के लिये तो पूर्णतः अनउपयुक्त है.

तब्लीगी जमात पर हरदा का हमला
हरीश रावत तब्लीगी जमात की कारगुजारियों से नाराज हैं. उन्होंने लिखा...

तब्लीगी जमातियों से उत्पन्न समस्या अभी बढ़ ही रही है. तब्लीगी नेतृत्व पहले अपराधिक कृत्य कर चुका है. उन्हें चाहिये था कि, अपने से जुड़े लोगों को कहें कि, वे अपने आपको जांच हेतु प्रस्तुत करें. मुसलमान भाइयों से जुड़ी अधिकांश महत्वपूर्ण संस्थाओं ने आगे आकर तब्लीगियों से जांच में सहयोग की अपील की है. गुस्सा स्वाभाविक है, मगर गुस्से को नफरत में नहीं बदलने देना है.


कोरोनाके खिलाफ जंग में 3 आयाम हैं

हरीश रावत ने कोरोना के खिलाफ जंग में तीन आयाम बताए..

पहला- जिंदगियां बचानी हैं. सारी दुनियां के प्रशासक व वैज्ञानिक इस लड़ाई को लड़ रहे हैं. हम भी इस लड़ाई में सैनिक हैं. कुछ लोग जिंदगी बचाने के मोर्चे पर लड़ रहे हैं. जैसे डॉक्टर्स, नर्स, मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मी, पुलिस, मीडिया, आवश्यक परिवहन सप्लाई चेन में कार्यरत लोग. शेष हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर अपने कर्तव्यों को पूरा कर रहे हैं. मास्क पहनना भी अब उसका हिस्सा है.

दूसरा आयाम है- सामाजिक सामूहिक समझ का. कोरोना ने दुनियां को सामूहिक सामाजिक समझ दे दी है. पहली बार सारी दुनियां एक लड़ाई को पूरे अनुशासनपूर्ण, समझदारी से लड़ रही है. छोटे-बड़े सब साथ हैं. कुछ दुर्भाग्यपूर्ण अपवादों को छोड़ दें तो, दुनियां, देश, धर्म, जाति, जन्म स्थल, गरीब-अमीर के भेद से ऊपर उठकर काम कर रही है. काश यह समझदारी आगे भी बनी रहे. कोरोना के डर से शेर व हिरन, एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं.

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तीसरा आयाम- आर्थिक है. एक बहस चल रही है, जिंदगी बनाम भरण-पोषण. लाइव्ज एंड लाईवली हुड. यूं कोरोना आर्थिक पक्ष, कोरोना से कम डरावना नहीं है. भारत में तो पहले ही अर्थव्यवस्था खराब स्थिति में थी. कोरोना जन्य लॉकडाउन व उसके बाद क्या होगा, इस पर बड़ी बहस नहीं चल पा रही है, क्योंकि अभी तो जान बचाने की पड़ी है. ओलों से अपना सर बचे तो फिर फसल की चिंता करेंगे. फिर भी कल मैंने, उत्तराखंड के प्रसंग में एक वीडियो डालकर कुछ समसाम्यक आर्थिक व बेरोजगारी के मुद्दों को उठाया है. टिहरी के शांति भट्ट जी के चिंतन को थोड़ी गति देने का प्रयास किया है. कल इस पर थोड़ा विस्तार से बात करूंगा.
"जय गंगा मैय्या की"।
(हरीश रावत)

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