देहरादून:कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत (Former CM Harish Rawat) अक्सर अपने पहाड़ी अंदाज के लिए जाने जाते हैं. वो कई मौके पर इसकी झलक भी दिखाते रहते हैं. देवभूमि की संस्कृति और विरासत को संजोए रखने के लिए वो हमेशा मार्मिक ट्वीट से उत्तराखंडी लोगों को सजग करते रहते हैं. साथ ही उन्होंने अपने चिर परिचित अंदाज में लोकपर्व और संस्कृति के बहाने सरकार पर भी हमला बोला. क्यों कि इस विधानसभा चुनाव में हरीश रावत पूरे दम-खम से लगे हुए हैं.
पूर्व सीएम हरीश रावत ने ताजा ट्वीट (Former CM Harish Rawat tweet) कर लिखा है कि लोग इस बात को यूं ही नहीं कहते हैं, हमारी सरकार ने अपने सांस्कृतिक परिवेश को पुनः स्थापित करने के लिए चैतोला योजना प्रारंभ की. जिसको फूलदेई-छम्मा देई त्यौहार के साथ और घुघूती न बासा जैसे मार्मिक गीतों के साथ जोड़कर यह निर्णय लिया कि जो हमारे गांव की बेटी और बहू, उत्तराखंड से बाहर रह रहे हैं, वो यदि अपने गांव में लौटकर के आते हैं तो राज्य सरकार उस बेटी और बहू को ₹500 और एक साड़ी चैतोले के रूप में भेंट करेंगी.
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हमारे गांवों में जो ग्रामीणत्व व अपनापन था, हमारी संस्कृति की झलक थी वो धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है, उसकी पुनर्स्थापना में जागर और ढोल-दमुवा को महत्व देना और चैतोले की भेंट देना, फुलदेई जैसे त्योहारों को राज्य सरकार की तरफ से प्रोत्साहित करना एक बड़ा फैसला था, इसलिए कह रहा हूंं हमारे बाद आने वाली सरकार ने हमारे इस कार्यक्रम को बंद कर दिया. आज यदि कोई बेटी अपने गांव लौट भी रही है तो उसका स्वागत चैतोले की भेंट के साथ नहीं हो रहा है. हमने चैत के महीने की यह चैतोले की परंपरा को प्रारंभ कर जो प्रवासी भाई-बहनों को गांव लौटो की मुहिम चलाई थी, चलो गांव की ओर उसको इससे बड़ा झटका लगा है, इसीलिये मैं कहता हूंं कि, 'तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा' अब उत्तराखंड नहीं आएगी, भाजपा दोबारा.
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हरीश रावत ने आगे लिखा है कि जीवन के लक्ष्य होते हैं, मेरे अवशेष जीवन का लक्ष्य अब उत्तराखंड और उत्तराखंडियत है. अब उसमें मैंने एक और लक्ष्य जोड़ दिया है जैविक उत्तराखंड, राज्य के आर्थिक उन्नयन के लिए जैविकता मिशन आवश्यक है और जैविकता के लिए खाद बनाओ का नारा गांव-गांव गूंजना आवश्यक है. सरकार आएगी आपके गाय-भैंस का गोबर, कांग्रेस की सरकार खरीदेगी, वर्मी कंपोस्ट बनायेगी उसमें गांव के इर्द-गिर्द का सारे झाड़-झंकार से वर्मी कंपोस्ट बनेगा. राज्य के प्रत्येक गांव में एक वर्मी कंपोस्ट प्रतिनिधि का चयन कर, उसे प्रशिक्षित कर वर्मी कंपोस्ट को एक बड़े व्यवसाय के रूप में विकसित करेंगे. मैंने कहा था न कि 'मेरा गांव-मेरा रोजगार' उस नारे का यह एक कदम है.