देहरादूनःउत्तराखंड में सर्दियों के मौसम में लगातार बढ़ रहे जंगली जानवरों के हमले के बाद गढ़वाल और कुमाऊं के कई गांव दहशत में जी रहे हैं. आए दिन कैमरों में कैद हो रही तस्वीरों ने ना केवल गांव के लोगों की नींद उड़ा रखी है. बल्कि आने जाने वाले लोगों को भी दिन दोपहरी में जंगली जानवर के हमले का डर सता रहा है. दूसरी तरफ वन विभाग घटना हो जाने के बाद पिंजरा लगाने और लोगों को मुआवजा देने की कार्रवाई में व्यस्त चल रहा है.
वहीं, उत्तराखंड सरकार में वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इन हमलों को देखते हुए जनता से अपील की है कि अंधेरा हो जाने के बाद घर से बाहर ना निकले. इतना ही नहीं, मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि घर से बाहर अकेले नहीं बल्कि ग्रुप में निकले. ताकि कोई जानवर आपके ऊपर हमला ना कर सके. वन मंत्री के मुताबिक, जंगली जानवर रात के अंधेरे में ही हमले कर रहे हैं. लेकिन पिछली कुछ घटनाओं को देखा जाए तो जंगली जानवर सिर्फ रात के अंधेरे में ही बल्कि दिन दहाड़े लोगों पर हमला कर रहे हैं. ऐसी घटनाएं देहरादून, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और हरिद्वार में खास देखी गई हैं.
लगातार हो रहे हमलेःउत्तराखंड का 70% भाग जंगलों से घिरा हुआ है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि जंगली जानवरों का इस राज्य में बड़े पैमाने पर बसेरा है. उत्तराखंड को जंगली जानवर और वन संपदा के लिए भी जाना जाता है. ऐसे में राज्य सरकारें जनता से अपील करती रही है कि जंगली जानवरों के रास्तों में अपने आशियाने ना बनाएं. लेकिन उत्तराखंड में बीते दिनों जिस तरह से कंक्रीट के 'जंगल' ने जंगली जानवरों के इलाकों में अतिक्रमण किया है. उसके बाद लगातार जंगली जानवरों के हमले भी बढ़ें हैं.
बीते 10 दिनों में पौड़ी, देहरादून, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जैसे जिलों में कई घटनाएं सामने आई हैं. जहां घर के बाहर खेल रहे बच्चों को बाघ उठा ले गया या किसी बड़े व्यक्ति को बाघ ने हमले में जख्मी किया. राजधानी देहरादून में तो कई इलाकों के लोगों ने मॉर्निंग वॉक पर निकलना बंद कर दिया है. सुबह के समय हाथियों की आवाजाही ज्यादा देखने को मिली है.
उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष. ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में भालू की जुबान पर चढ़ा मुर्गे मछलियों का स्वाद, बार-बार पहुंच रहा मटन शॉप
पिछले तीन साल के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो...
- साल 2020 में 30 लोगों की गुलदार के हमलों में जान गई. वहीं, 85 लोग घायल हुए.
- साल 2021 में 22 लोगों की जान गई, जबकि 60 लोग घायल हुए.
- साल 2022 में अब तक 14 लोगों की जान गई, जबकि 41 लोग घायल हुए.
- इस तहर 3 सालों में 66 लोगों की जान गई, जबकि 186 लोग घायल हुए.
वन मंत्री की सलाहःइन सबके बीच उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि उत्तराखंड में रहने वाले लोगों को जागरूक होना पड़ेगा. जंगली जानवरों के आवागमन को ना तो सरकार रोक सकती है और ना ही कोई भी तंत्र. सरकार से जितना हो पा रहा है उतना कर रहे हैं. हमें जैसे ही किसी घटना की सूचना मिलती है वहां पिंजरा लगाकर दोबारा ऐसी घटना ना हो इसको सुनिश्चित करते हैं. हमने जानवरों पर पहचान के लिए रंग भी लगाए हैं, ताकि उनकी मॉनिटरिंग की जा सके. अगर कोई जानवर आदमखोर हो जाता है तो उसके मारने के आदेश भी हमारी तरफ से दिए जाते हैं. लेकिन लोगों को भी अपने रहन-सहन में बदलाव लाना होगा.
शौचालय जाने के दौरान घटी घटनाएंः वन मंत्री का कहना है कि उत्तराखंड में ज्यादातर घरों के बाहर शौचालय बने हुए हैं. ऐसे में शौचालय जाने के दौरान जानवरों के हमलों की घटना ज्यादा दर्ज की गई है. वन मंत्री का कहना है कि लोग अंधेरे में घर से बाहर ना निकले. अगर निकल रहे हैं तो समूह में निकले. खाने-पीने की वस्तु अपने घर के आस-पास बिल्कुल भी ना रखें. जितना हो सके घर से दूर फलदार पेड़ लगाए. ताकि जंगली जानवरों को शहर में खाने पीने के लिए ना आना पड़े.
ये भी पढ़ेंः अल्मोड़ा में तीन सालों में गुलदार ने 50 लोगों पर किया हमला, 6 लोगों को गंवानी पड़ी जान
हमले वाले गांव को छोड़ रहे लोगःवन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि उत्तराखंड में लगातार बढ़ रहे जंगली जानवरों के हमले से भयभीत लोग अपना घर भी छोड़ रहे हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि वह अपना गांव छोड़ रहे हैं. अमूमन उत्तराखंड में लोगों के पास अपने दो घर हैं. अगर एक इलाके में इस तरह की घटना होती है तो वह दूसरे घर में शिफ्ट हो जाते हैं. इसको हम पलायन सीधे तौर पर नहीं कह सकते. राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता लोगों की सुरक्षा है.
हाईकोर्ट पहुंचा जानवरों के हमलों का मामलाः वहीं अब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ते मानव वन्य जीव संघर्ष व तेंदुओं के हमले को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की है. मामले को सुनने के बाद कोर्ट की खंडपीठ ने सरकार से पीसीसीएफ की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही कोर्ट ने प्रत्येक 2 सप्ताह में विशेषज्ञों से वार्ता करने, मानव व वन्य जीव के संघर्ष को रोकने के लिए अब तक किए गए उपाए और आगे की कार्रवाई पर 2 सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट पेश करने को कहा है. मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने 27 अप्रैल 2023 की तिथि नियत की है.