देहरादून: गर्मियों में दावानल से उत्तराखंड के पहाड़ों के खूबसूरत नजारे आग के धुंए की परत से धुंधला गए हैं. उत्तराखंड के जंगलों में गर्मियों के मौसम में लगभग हर साल आग लगती है, जिसकी चपेट में पेड़-पौधों से लेकर छोटे-बड़े जानवर भी आ जाते हैं. उत्तराखंड में जंगलों में आग तेजी से फैली हुई है.
उत्तराखंड की वन संपदा और जंगल कितने तेजी से जल रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नवंबर से अब तक साढ़े चार गुना तेजी से जल रहे हैं. जबकि जंगलों में आग के लिए पीक समय अभी आना बाकी है.
तेजी से धधक रहे उत्तराखंड के जंगल. इन घटनाओं से साफ है कि प्रदेश में जंगलों की आग को लेकर इस बार हालात बेकाबू हो सकते हैं. 15 फरवरी से शुरू हुए फायर सीजन का पीक समय 15 जून तक माना जाता है, ऐसे में अभी अगले 3 महीनों तक जंगल आग की लपटों से कितना प्रभावित होंगे. यह एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है. वहीं, वन मंत्री हरक सिंह रावत ने जंगलों में लगी आग को बुझाने में असमर्थता जताई है.
वन विभाग 10 हजार वन प्रहरी और 10 हजार वन कर्मचारियों को भी लगाकर जंगल की आग नहीं बुझा सकता है. वन विभाग पूरे प्रदेश के जंगलों की आग बुझाने में असमर्थ है. ऐसे में स्थानीय लोगों को जागरूक होते हुए जंगल को जलने से बचाना है.
-हरक सिंह रावत, वन मंत्री
नैनीताल के अधिकांश जंगल आग की चपेट में
नैनीताल के अधिकांश जंगल आग की चपेट में है. बता दें कि, नैनीताल का पंगूट, किलबरी, भीमताल समेत आसपास का क्षेत्र बर्ड वाचिंग के लिए जाना जाता है. यहां 700 प्रकार के पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं. इनके सामने अपना जीवन आग से बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है. पर्यावरणविद अजय रावत का कहना है कि आग लगने की घटना के बाद से चिड़ियों के घोंसले पूरी तरह जलकर नष्ट हो गए हैं. पक्षियों की कई प्रजातियों पर संकट खड़ा हो गया है.
उत्तराखंड में 2 अप्रैल को आग की घटनाएं
राज्य के वनों में आज आग की कुल 15 घटनाएं रिकॉर्ड की गईं हैं. 13 घटनाएं आरक्षित वन क्षेत्र में हुई हैं, जबकि दो घटनाएं वन पंचायत के जंगलों में हुई हैं. इन वनाग्नि की घटनाओं में कुल 13.5 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए हैं. नुकसान के रूप में देखें तो कुल ₹40,268 रुपये का नुकसान हुआ है.
आंकड़े घटनाओं की कर रहे तस्दीक. ये भी पढ़ें:आग के संकट से कब बाहर निकलेंगे उत्तराखंड के जंगल?
एक अक्टूबर से अब तक का डाटा
- राज्य में पिछले 6 महीने में कुल 928 जंगलों में आग की घटनाएं सामने आई हैं.
- इसमें 591 आरक्षित वन क्षेत्र में हुई हैं, जबकि 337 वन पंचायत वन क्षेत्रों में हुई है.
- आग की इन घटनाओं में 1207.88 हेक्टेयर जंगल जले हैं.
- इस तरह पिछले 6 महीने में कुल 37,16,772 रुपये का नुकसान आंका गया है.
- इन घटनाओं में 2 लोग घायल हुए हैं, जबकि दो लोगों की मौत भी हुई है.
- इन घटनाओं में 22 जानवर घायल हुए हैं और 7 की मौत भी हुई है.
जानिए क्या कहते हैं आंकड़े
- वर्ष 2015 में जंगल में आग लगने की वजह से न किसी व्यक्ति की मौत हुई और न ही कोई जख्मी हुआ.
- साल 2016 में जंगल में लगी आग की वजह से प्रदेश में 6 लोगों की मौत हुई थी और 31 लोग घायल हुए थे.
- साल 2017 में जंगल में लगी आग की वजह से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. लेकिन प्रदेश में आग की चपेट में आने से मात्र एक शख्स जख्मी हुआ था.
- साल 2018 में भी जंगल में लगी आग की वजह से किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. इन मामलों में 6 लोग आग की चपेट में आने से झुलस गए.
- साल 2019 में जंगल में लगी आग से एक व्यक्ति की मौत हुई और 15 लोग घायल हुए.
- साल 2020 में जंगल में लगी आग की वजह से प्रदेश में दो व्यक्तियों की मौत और एक जख्मी हुआ.
- साल 2021 मार्च तक जंगल में लगी आग की वजह से 4 लोगों की मौत और 2 लोग जख्मी हुए हैं.
मंडलवार नुकसान के आंकड़े
- गढ़वाल मंडल में बीते चार महीनों में आग लगने की 430 घटनाएं हो चुकी हैं. जिसमें 501 हेक्टेयर जंगल जले हैं. इस आग में 6350 पेड़ जले हैं. कुल मिलाकर 18 लाख 44 हजार 700 रुपए का नुकसान हुआ है.
- कुमाऊं मंडल में बीते चार महीने में आग लगने की 276 घटनाएं सामने आईं. आग की घटनाओं में 396 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया और 2603 लोग इन घटनाओं में प्रभावित हुए. साथ ही 11 लाख 45 हजार 260 रुपए का नुकसान हुआ है.
- उत्तराखंड के वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में कुल 17 घटनाएं हुईं, जिसमें 20.9 हेक्टेयर जंगल जले और 28,838 का नुकसान हुआ.
- आंकड़ों पर गौर करें तो बीते चार महीने में प्रदेश के जंगलों में आग लगने की 723 घटनाएं हुईं. जिसमें 917 हेक्टेयर जंगल जले और 8,950 पेड़ों में आग लगी. इस दौरान 30 लाख 18 हजार 798 रुपए का नुकसान हुआ.
लॉकडाउन से आग की घटनाओं में कमी
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक मान सिंह ने कहा कि पिछले साल गर्मियों में जंगलों में आग की घटनाएं कम हुई हैं, क्योंकि लॉकडाउन लागू होने के दौरान लोग जंगलों में कम ही जा पाए, जिससे जंगल लोगों की लापरवाही का शिकार कम हुए, लेकिन पिछले साल बारिश में भी कमी देखी गई, जिससे जंगलों में सूखी लकड़ियां, मुख्य रूप से देवदार की सूखी टहनियां बड़ी मात्रा में जमा हुईं, जिससे सर्दियों के दौरान आग की घटनाएं बढ़ जाती हैं.
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लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण
बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है. कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है. मान सिंह के अनुसार, इस साल गर्मी के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ सकती हैं, हालांकि इससे निपटने के लिए हमने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं.
जंगलों में आग लगने से आसपास के ग्रामीणों को भी भारी परेशानियों और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों ने अपने बाग-बगीचे खो दिए तो किसी आग की वजह से किसी की पूरी फसल ही जलकर राख हो गई है.
इन नंबरों पर कर सकते हैं संपर्क
- उत्तराखंड वन विभाग के MCR का टोल फ्री फोन नंबर- 18001804141.
- फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के ऑफिस का नंबर- 0135-2744558.
- फॉरेस्ट विभाग का व्हाट्सअप नंबर- 9389337488, 7668304788.
- उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर कंट्रोल रूम नंबर- 9557444486.
अराजक तत्वों से वनों को बचाने की जरूरत
डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि अधिकांश घटनाओं में पाया गया है कि अराजक तत्वों द्वारा ही वनों में आग लगाने की घटनाएं होती है. जिसकी जानकारी स्थानीय लोगों को बिना देर किए देना होता है. जंगल में आग लगने की घटना को जो भी व्यक्ति अंजाम देता है. पुलिस उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी.