उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

कोरोना संकटः 154 सालों में पहली बार नहीं होगा ऐतिहासिक मौण मेले का आयोजन

1866 से मसूरी में चल रहे ऐतिहासिक मौण मेले पर कोरोना महामारी का असर पड़ा है. 154 सालों में पहली बार इस साल मेले का आयोजन नहीं होगा.

मौण मेला
मौण मेला

By

Published : Jun 23, 2020, 8:17 PM IST

Updated : Jun 23, 2020, 9:37 PM IST

मसूरीः पहाड़ों की रानी मसूरी के नजदीक जौनपुर में उत्तराखंड की ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर मौण मेला इस बार कोरोना महामारी के कारण आयोजित नहीं होगा. जिससे क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों के साथ देश-विदेश से मौण मेले को मनाने के लिये आने वाले लोग भी मायूस हैं. बता दें कि ये फैसला मौण मेला समिति द्वारा आयोजित बैठक में लिया गया है. उनकी मानें तो मौण मेले में हजारों की संख्या में ग्रामीणों के साथ पर्यटक नदी में मछलियों को पकड़ने के लिये उतरते हैं. ऐसे में न तो सोशल डिस्टेंसिग बन पायेगी और न ही कोविड-19 के नियमों का पालन हो पायेगा.

जानकारी के लिए बता दें कि साल 1866 से लगातार इस मेले का आयोजन किया जाता रहा है. लोग इस मेले में भाग लेने के लिए पहुंचते हैं और ग्रामीण अपने पारंपरिक वाद्ययंत्रों और औजारों के साथ अगलाड़ नदी में मछलियों को पकड़ने उतर जाते थे. ये दृश्य मन को मोहने वाला होता था. मेले से पहले यहां अगलाड़ नदी में टिमरू के छाल से निर्मित पाउडर डाला जाता है. जिससे मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं. इसके बाद उन्हें पकड़ा जाता है. हजारों की संख्या में यहां ग्रामीण मछली पकड़ने के लिए अपने पारंपरिक औजारों के साथ उतरते हैं.

मौण मेले में उमड़ा जनसैलाब. (फाइल फोटो)

पढ़ेंः केंद्र ने रोका पतंजलि की कथित कोरोना रोधी दवा का प्रचार, मांगा ब्यौरा

देश-विदेश से पहुंचते हैं पर्यटक
बड़ी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक इस मेले को देखने पहुंचते हैं. ये मेला पूरे भारत में अपने आप अलग तरह का मेला है. जिसका उद्देश्य नदी व पर्यावरण को संरक्षित करना है, ताकि नदी की सफाई भी हो सके और मछलियों को प्रजजन में मदद मिल सके.

पहली बार नहीं होगा ऐतिहासिक मौण मेला

क्या है वैज्ञानिकों की राय
जल वैज्ञानिकों की मानें तो टिमरू का पाउडर जल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है. मात्र कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं और इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं. वहीं, हजारों की संख्या में जब लोग नदी की धारा में चलते हैं तो नदी के तल में जमी काई और गंदगी साफ होकर पानी में बह जाती है और मौण मेला होने के बाद नदी बिल्कुल साफ नजर आती है.

मौण मेला का महत्व
इस ऐतिहासिक मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था. तब से जौनपुर में निरंतर इस मेले का आयोजन किया जा रहा है. मौण मेला राजा के शासन काल से मनाया जा रहा है. क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि इसमें टिहरी नरेश स्वयं अपने लाव लश्कर एवं रानियों के साथ मौजूद रहा करते थे. मौण मेले में सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि उपस्थित रहते थे. लेकिन सामंतशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा स्वयं ग्रामीणों ने उठा लिया. इसमें किसी भी प्रकार का विवाद होने पर क्षेत्र के लोग स्वयं मिलकर मामले को सुलझाते हैं.

Last Updated : Jun 23, 2020, 9:37 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details