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विश्व डाक दिवस: समय के साथ बदल गई चिट्ठी, आज भी सहेज कर रखे हैं 50 साल पुराने डाक टिकट

मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने विश्व डाक दिवस के मौके पर डाक की उपयोगिता पर ईटीवी भारत के साथ अपने विचार साझा किए. उनका कहना है कि समय के साथ पत्रों का स्वरूप बदल गया है. आज इंटरनेट के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में संपर्क किया जा सकता है.

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विश्व डाक दिवस 2019

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Published : Oct 9, 2019, 12:26 PM IST

Updated : Oct 9, 2020, 6:58 AM IST

मसूरी: पूरे विश्व में आज यानी 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जा रहा है. डाक सेवाओं की उपयोगिता और इसकी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए हर साल 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य ग्राहकों को डाक विभाग के उत्पाद के बारे में जानकारी देना और उन्हें जागरुक करना है. यह दिवस यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की ओर से मनाया जाता है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको एक ऐसे मसूरी के मशहूर इतिहासकार के बारे में बताने जा रहा है, जिनके पास 40 से 50 साल पुराने डाक टिकट मौजूद हैं.

मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज का कहना है कि डाक सेवा आज भी उतनी ही जरूरी है, जितनी पहले थी. आज से 30-40 साल पहले लोग पोस्ट मैन का इंतजार करते थे, पोस्ट मैन जब चिट्ठी लेकर आता था तो उसका सम्मान किया जाता था. गोपाल भारद्वाज का कहना है कि उनके पास 40 से 50 साल पुराने डाक टिकट मौजूद हैं. इतना ही नहीं उनके पास विभिन्न देशों के डाक टिकट भी हैं.

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के पास 50 साल पुराने डाक टिकट मौजूद

उन्होंने बताया कि अंग्रेजों द्वारा मसूरी की स्थापना की गई थी. 1828 में चिट्ठी मसूरी से इंग्लैंड भेजी जाती थी और वहां से आती भी थी. इस कार्य में करीब 6 महीने का समय लगता था. उन्होंने बताया कि 18वीं सदी में साल 1828 तक डाक सेवा की शुरुआत हो चुकी थी. अंग्रेजों के जमाने में सभी पत्र देहरादून से डाकपत्थर पर इकट्ठा होती थी और वहां से सहारनपुर जाती थीं. जहां से अन्य स्थानों पर भेजा जाता था.

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गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि आज इंटरनेट का जमाना आ गया है, जिससे दुनिया के किसी भी कोने में संपर्क किया जा सकता है. सोशल मीडिया के माध्यम से लोग दूर होने के बाद भी काफी नजदीक महसूस करते हैं. लेकिन डाक सेवा का अपना एक महत्व है.

Last Updated : Oct 9, 2020, 6:58 AM IST

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