देहरादून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर 22 मार्च 2020 को कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए एक दिवसीय जनता कर्फ्यू लगाया गया था. वहीं इसके ठीक एक दिन बाद यानी की 23 मार्च 2020 से प्रदेश में कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए पूर्ण लॉकडाउन जारी कर दिया गया. ये वो दौर था, जिसे पहले कभी किसी ने नहीं देखा था और न ही इसके बारे में सुना था. हालांकि कोरोना का संक्रमण का खतरा अभी भी टला नहीं है, लेकिन जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी है.
'जनता कर्फ्यू' के एक साल. लॉकडाउन का वो दौरा शायद की कभी कोई भूल पाए. बाजारों से रौनक पूरी तरह गायब हो गई थी. सड़के सुनसान पड़ी थी. जिस तरफ भी नजरें जाती थीं, सन्नाट ही पसरा हुआ रहता था. देशभर में हजारों लोगों ने पैदल सफर तय किया. लोगों के व्यापार पूरी तरह चौपट हो गया था. रोज कमाकर खाने वाले तबके के सामने तो दो रोटी का भी संकट खड़ा हो गया था. इस लॉकडाउन में कई लोग बेरोजगार हो गए थे. कितनों अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. लॉकडाउन में हुई ये वो सब बाते जो शायद ही कभी भूली जा सकती है. ऐसे सब बातों को याद करके यहीं सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकार का अचानक पूर्ण लॉकडाउन लगाने का फैसला सही था?
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राजधानी देहरादून के जाने-माने वरिष्ठ स्तंभकार डॉ सुशील कुमार सिंह की माने तो इसके में कोई दो राय नहीं है कि सरकार ने कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए लॉकडाउन जारी करने का निर्णय देशवासियों की सुरक्षा को देखते हुए लिया था. लेकिन लॉकडाउन जारी करने के बाद सरकार से कई लापरवाहियां भी हुईं. सरकार ने लॉकडाउन तो लगाया, लेकिन इसको लेकर सही रणनीति नहीं बनाई गई. जिसका नतीजा यह हुआ कि लॉकडाउन जारी होने के 3 से 4 दिनों के अंदर ही अपने गंतव्य को पहुंचने के इच्छुक मजदूरों की भारी भीड़ सड़कों पर दिखने लगी.
उनके मुताबिक यदि सरकार लॉकडाउन जारी करने से पहले लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचने का समय दे देती तो जिस कष्ट से लोगों को लॉकडाउन के दौरान को जाना पड़ा, उस से ना गुजरना पड़ता. वहीं दूसरी तरफ वर्तमान में भी कई तरह की लापरवाही या खुद सरकार के लोग बरत रहे हैं. जिसका सीधा असर आम जनमानस पर पड़ रहा है. सरकार के ही विभिन्न कार्यक्रमों में ऐसा देखने में आ रहा है कि सरकार के लोग ही सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क इत्यादि का इस्तेमाल करना भूल रहे हैं, जो इस ओर इशारा करता है कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए सरकार ने अपने लिए अलग नियम बनाए हुए हैं तो वहीं आम जनता के लिए अलग.
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दूसरी तरफ बात स्थानीय निवासियों की करें तो राजधानी देहरादून के सेवानिवृत्त अधिकारी संजीव शर्मा बताते हैं कि पिछले लॉकडाउन का निर्णय उस समय की जरूरत थी. लेकिन अब कोरोना संक्रमण के खतरे से कैसे बचा जाए इसे लेकर सब जागरूक हैं. ऐसे में यदि कोरोना संक्रमण से बचना है तो लोगों को कोविड-19 की गाइडलाइन का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा. कोरोना की रोकथाम के लिए लॉकडाउन एक उचित निर्णय नहीं है. भले ही आज हम कोरोना संक्रमण के खतरे के बावजूद एक बार फिर अपने घरों से बाहर निकलने के लिए आजाद हैं, लेकिन जिस वक्त मार्च 2020 में लॉकडाउन जारी कर दिया गया था. उस दौरान सभी लोग अपने घरों में पूरी तरह कैद हो चुके थे.
समाजसेवी साधना शर्मा बताती हैं कि लॉकडाउन का समय हर किसी के मुश्किल भरा रहा. लोगों के लिए उस समय यह समझना मुश्किल हो गया था कि आखिर वह अपना समय किस तरह घर में कांटे. ऐसे में उन्होंने और उनके पड़ोसियों ने यह निर्णय लिया कि क्यों न हर शाम अपने घरों की छतों पर इकट्ठा होकर एक दूसरे से संवाद किया जाए. जिससे घर में कैद होने के चलते जो तरह तरह ही मानसिक दिक्कतें सामने आ रही थी, उससे निपटा जा सके. बहरहाल कुल मिलाकर देखें तो लॉकडाउन जैसी स्थिति कोई भी व्यक्ति अपनी जिंदगी में दोबारा कभी नहीं देखना चाहता. लोग यही दुआ करते हैं कि कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग जागरूकता के साथ लड़ी जाए. वहीं ऐसी कोई स्थिति दोबारा खड़ी हो कि देश में फिर से पूर्ण लॉकडाउन लगाना पड़ जाए.