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Published : May 7, 2021, 3:50 PM IST

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194 साल पुराने 'विशिंग वेल' का अस्तित्व खतरे में, अमिताभ बच्चन भी हो गए थे हैरान

मसूरी के हाथीपांव में अंग्रेजों के जमाने का ऐतिहासिक कुआं मौजूद है. ये कुआं आज भी लोगों की पानी की जरूरत को पूरा कर रहा है. मगर अब बीतते समय के साथ इसके अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है.

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अब खतरे में विशिंग वेल का असतित्व

मसूरी: पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजों के जमाने का ऐतिहासिक कुआं 194 साल से लोगों की प्यास बुझा रहा है. सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित कुएं के पानी पर आज भी क्षेत्र की जनता निर्भर है. लेकिन अब धीरे-धीरे कुएं में पानी कम होने लगा है. इससे लोगों की चिंता बढ़ने लगी है. कुएं के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है.

मसूरी का विशिंग वेल

1827 में अंग्रेज आर्मी अफसर कर्नल विश ने खुदवाया कुआं

इतिहासकार गोपाल भरद्वाज बताते हैं कि शहर के हाथीपांव क्षेत्र में यह ऐतिहासिक कुआं मौजूद है. इसका निर्माण अंग्रेज आर्मी अफसर कर्नल विश ने लगभग 1827 में करवाया था. जब कर्नल विश ने यहां अपना मकान बनवाया तो उन्होंने खच्चरों से पानी मंगवाया. मकान बनने के बाद उन्होंने सोचा कि पानी तो हर समय चाहिए. इसके लिए उन्होंने मजदूरों से जमीन खुदवाई.

मसूरी का ऐतिहासिक कुंआ

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सात हजार फीट की ऊंचाई पर है ये कुआं

जिसमें बीस पच्चीस फीट पर ही पानी निकल आया. तब उन्होंने ये कुआं बनवाया. तब से लेकर आज तक ये कुआं लोगों की प्यास बुझा रहा है. करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर कुआं होना वास्तव में अनोखी बात है. सामान्यतः पहाड़ों पर पर इतनी उंचाई पर कुएं नहीं होते हैं.

विशिंग वेल के नाम से जाना जाता है कुआं

इतिहासकार भारद्वाज बताते हैं कि क्षेत्र में दशकों पूर्व तक मान्यता रही है, कि इस कुएं में सिक्का उछालने पर लोगों की मन्नतें भी पूरी होती हैं. लोग इस कुएं को विशिंग वेल भी कहते हैं. इसके बारे में कहा जाता है कि कर्नल विश के कुआं बनाने के बाद सर जार्ज एवरेस्ट के साथ कई सर्वेयर स्टाफ यहां आते थे. जिन्हें यही कुआं पानी देता था. तब इस कुएं को विश वेल कहा जाता था जो बाद में विशिंग वेल हो गया.

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महानायक अमिताभ बच्चन भी खुद को नहीं रख पाये दूर

इतिहासकार बताते हैं कि महानायक अमिताभ बच्चन भी इस कुएं से खुद को दूर नहीं रख पाये. एक बार जब वे शूटिंग करने मसूरी आये तो उन्हें इस कुएं के बारे में पता चला. जिसके बाद वे इसे देखने पहुंचे. वे काफी देर तक कुएं के पास बैठे रहे. तब वे यहां बैठकर इतनी ऊंचाई पर कुएं के बारे में ही सोचते रहे.

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रख-रखाव के लिए संबंधित विभाग जिम्मेदार

हाथीपांव क्षेत्र व मसूरी शहर के स्थानीय निवासियों का कहना है कि समय के साथ ये कुआं खत्म होता जा रहा है. इसके रख-रखाव को लेकर जिम्मेदार विभाग गंभीर नहीं हैं. जिससे ऐतिहासिक महत्व रखने वाला ये कुआं खंडहर में तब्दील हो रहा है. संबंधित विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए.

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प्राइवेट प्रॉपर्टी होने के कारण नहीं हो सका संरक्षण

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि यह कुआं प्राइवेट प्रॉपर्टी में है. इस कारण इसका संरक्षण नहीं हो रहा है. मगर इस कुएं को धरोहर मानकर इसका संरक्षण सरकार या संबंधित विभाग को करना चाहिए.


बता दें कि आज भी हाथीपांव क्षेत्र के लोग इस कुएं पर पानी के लिए निर्भर हैं. गर्मी का मौसम आते ही इस कुएं में पानी थोड़ा कम हो जाता है. मगर फिर भी अधिकतर लोग यहां से पानी की आपूर्ति करते हैं. ये कुआं लोगों की पानी की आपूर्ति होने के साधन के साथ ही ऐतिहासिक ब्रिटिशकालीन कारीगरी का नमूना भी है, जिसे संजोये जाने की जरूरत है.

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