मसूरी: पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजों के जमाने का ऐतिहासिक कुआं 194 साल से लोगों की प्यास बुझा रहा है. सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित कुएं के पानी पर आज भी क्षेत्र की जनता निर्भर है. लेकिन अब धीरे-धीरे कुएं में पानी कम होने लगा है. इससे लोगों की चिंता बढ़ने लगी है. कुएं के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है.
1827 में अंग्रेज आर्मी अफसर कर्नल विश ने खुदवाया कुआं
इतिहासकार गोपाल भरद्वाज बताते हैं कि शहर के हाथीपांव क्षेत्र में यह ऐतिहासिक कुआं मौजूद है. इसका निर्माण अंग्रेज आर्मी अफसर कर्नल विश ने लगभग 1827 में करवाया था. जब कर्नल विश ने यहां अपना मकान बनवाया तो उन्होंने खच्चरों से पानी मंगवाया. मकान बनने के बाद उन्होंने सोचा कि पानी तो हर समय चाहिए. इसके लिए उन्होंने मजदूरों से जमीन खुदवाई.
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सात हजार फीट की ऊंचाई पर है ये कुआं
जिसमें बीस पच्चीस फीट पर ही पानी निकल आया. तब उन्होंने ये कुआं बनवाया. तब से लेकर आज तक ये कुआं लोगों की प्यास बुझा रहा है. करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर कुआं होना वास्तव में अनोखी बात है. सामान्यतः पहाड़ों पर पर इतनी उंचाई पर कुएं नहीं होते हैं.
विशिंग वेल के नाम से जाना जाता है कुआं
इतिहासकार भारद्वाज बताते हैं कि क्षेत्र में दशकों पूर्व तक मान्यता रही है, कि इस कुएं में सिक्का उछालने पर लोगों की मन्नतें भी पूरी होती हैं. लोग इस कुएं को विशिंग वेल भी कहते हैं. इसके बारे में कहा जाता है कि कर्नल विश के कुआं बनाने के बाद सर जार्ज एवरेस्ट के साथ कई सर्वेयर स्टाफ यहां आते थे. जिन्हें यही कुआं पानी देता था. तब इस कुएं को विश वेल कहा जाता था जो बाद में विशिंग वेल हो गया.
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