देहरादून/जोशीमठ: चमोली के रैणी गांव में आई जल प्रलय के बाद से यहां लगातार राहत-बचाव कार्य जोरों पर है. सेना, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और आईटीबीपी के जवान दिन-रात हालातों को हराकर रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हैं. ताजा मिली जानकारी के अनुसार अभी तक रैणी गांव में आई जल प्रलय में अब तक 31 लोगों के मरने की पुष्टि हुई है. अभी भी ऋषिगंगा प्रोजेक्ट में काम करने वाले कई मजदूर और अधिकारी टनल के मलबे में फंसे हैं. जिन्हें निकालने की जद्दोजहद जारी है. ग्राउंड जीरो पर राहत बचाव कार्यों और हालात का जायजा लेने के लिए ईटीवी भारत रैणी गांव पहुंचा. जहां हमने रेस्क्यू अभियान में एसडीआरएफ की कमान संभाल रहे कमांडेंट नवनीत भुल्लर से बात की. नवनीत भुल्लर ने हमें बताया कि कैसे वे इन मुश्किल हालातों में 'ऑल इज वेल' की उम्मीद लिये दिन-रात रेस्क्यू अभियान में जुटे हैं.
सवाल: अभी रेस्क्यू ऑपरेशन का क्या अपडेट है?
नवनीत भुल्लर, कमांडेंट(SDRF): रैणी गांव में फिलहाल रिलीफ का काम चल रहा है. पल्ली रैणी गांव का एक ब्रिज टूट गया है. जिसके कारण गांव का संपर्क कट गया है. इंजीनियर लगातार इसे बनाने में जुटे हुए हैं. एसडीआरएफ फौरी तौर पर ग्रामीणों को राहत पहुंचाने का काम कर रही है. इमरजेंसी, मेडिकल सेवाओं, खाने-पीने की आपूर्ति के लिए एसडीआरएफ काम कर रही है. इसके लिए यहां एक जिफ लाइन फिक्स की गई है. जिससे ग्रामीणों को एक छोर से दूसरे छोर पहुंचाया जा रहा है. इसके अलावा अन्य तक जरूरी चीजों को भी वहां तक पहुंचाया जा रहा है.
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सवाल: जिप लाइन क्या होती है और इससे एसडीआरफ कैसे राहत पहुंचा रहा है?
नवनीत भुल्लर, कमांडेंट(SDRF): जिप लाइन रिवर को क्रास करने के लिए लगाई जाती है. इसमें नदी या पहाड़ के दोनों छोरों पर एंकर प्वाइंट लगाये जाते हैं. जिसमें रस्सियों के माध्यम से लोगों, राहत सामग्री को एक ओर से दूसरे छोर पहुंचाया जाता है. ये एक तरह की डायनमिक रोप होती है. इसमें हारनेस का इस्तेमाल किया जाता है. जिप लाइन में सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है. ये पुल टूटने, बाढ़ आने, माउंटेनिंग में खास तौर से प्रयोग किया जाता है. आपदा के दौरान राहत और बचाव कार्यों में जिप लाइन खासी उपयोगी होती है.