देहरादून:चमोली जिले के जोशीमठ में आई आपदा के वजह की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है, लेकिन वैज्ञानिकों की प्राथमिक स्टडी के अनुसार ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने की वजह से आपदा आने की संभावना है. हालांकि, जोशीमठ में जो आपदा आई है वह साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा से बिल्कुल अलग है. वैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ में आपदा आने के कई कारण हो सकते हैं. इस क्षेत्र में पहले की गई स्टडी के मुताबिक फिलहाल वहां ऐसा ग्लेशियर मौजूद नहीं है, जो टूट सकता हो और ऐसी कोई लेक भी मौजूद नहीं है.
ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि अभी तक जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार उस क्षेत्र में कोई लेक की जानकारी नहीं मिल पाई है. इसके साथ ही उत्तराखंड रीजन में सार्स टाइप ग्लेशियर का पता नहीं चला है. लिहाजा, जोशीमठ में जो आपदा आयी है उसको ग्लेशियर लेक रिलेटेड फिनोमिना और ग्लेशियर सार्स रिलेटेड फिनोमिना को अभी जोड़ नहीं सकते हैं. इस क्षेत्र में आपदा के आने का कारण क्या है ? इसकी जानकारी के लिए सोमवार को वैज्ञानिकों की 2 टीम भेजी जा रही हैं, जिसके बाद सटीक जानकारी मिल पाएगी.
ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने से आई आपदा- कालाचंद साईं
डायरेक्टर ने बताया कि मौजूदा स्थिति को देखकर यही लगता है कि ग्लेशियर का कोई टुकड़ा टूटने की वजह से आपदा आयी है, लेकिन इस आपदा के आने का वास्तविक वजह वैज्ञानिकों के स्टडी के बाद ही पता चल पाएगी. साथ ही बताया कि ठंड के मौसम में ग्लेशियर के टूटने की घटना नहीं होती है, बल्कि ऐसी घटनाएं आम तौर पर गर्मियों के मौसम में या फिर बादल फटने की घटना होने की वजह से ही होतीं हैं.
चमोली आपदा साल 2013 की आपदा से अलग
डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि हर तरह के ग्लेशियर नहीं टूटते हैं, बल्कि एक स्पेशल टाइप का जो ग्लेशियर यानी सार्स ग्लेशियर के टूटने की संभावना अधिक रहती है, लेकिन अभी तक जो स्टडी की गई है. उस स्टडी के अनुसार उत्तराखंड के इस रीजन में ऐसे ग्लेशियर मौजूद नहीं है. क्योंकि साल 2013 में जो आपदा आई थी. उस आपदा की वजह केदार घाटी में बादल फटने की वजह से चोराबारी झील टूट गई थी. चमोली में आपदा की स्थिति साल 2013 में आई आपदा से काफी अलग है.
ऐसी घटनाएं रात में होने से होती है ज्यादा तबाही