वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी को लेकर वैज्ञानिक राघवेंद्र से खास बातचीत देहरादूनः पहाड़ी राज्य उत्तराखंड सबसे ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलता है. हर साल कई लोगों की जान आपदा में चली जाती है. साथ ही करोड़ों का नुकसान होता है. ऐसे में बादल फटने समेत तमाम मौसमी चुनौतियां से निपटने के लिए वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी में संभावनाएं देखी जा रही है. इसके अलावा फॉरेस्ट फायर पर भी नियंत्रण पाने में कारगर साबित हो सकता है. इसी टेक्नोलॉजी को लेकर ईटीवी भारत ने मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक राघवेंद्र से खास बातचीत की.
उत्तराखंड में आपदाओं का बदल रहा स्वरूपःहिमालय राज्य उत्तराखंड और हिमाचल में हर साल मॉनसून सीजन में कुदरत का कहर देखने को मिलता है. कभी उत्तराखंड तो कभी हिमाचल में तबाही देखने को मिलती है. इस दौरान काफी जान माल की क्षति होती है. ऐसे में दोनों ही राज्यों में राज्य सरकार और केंद्र सरकार करोड़ों रुपए आपदा से उबरने के लिए लगाने पड़ते हैं.
प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के आंकड़ों की बात करें तो उत्तराखंड में पिछले 3 सालों में करीब 5000 करोड़ का नुकसान हो चुका है. ऐसे में विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्यों में भारी बारिश, अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाओं से निपटना एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि, साल दर साल आपदाओं का स्वरूप भी बदल रहा है. जिसके लिए सरकारों को कोई स्थाई समाधान ढूंढने की जरूरत है.
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वेदर डिस्टर्बेंस एक बड़ी चुनौती, फॉरेस्ट फायर भी समस्याःबीते कुछ सालों में मौसम में हैरतअंगेज रूप से बदलाव देखने को मिल रहा है. कभी मूसलाधार बारिश, बादल फटने से लेकर भूस्खलन और बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं तो कभी कई महीनों तक बारिश की बूंद नहीं गिरती है. जिसके चलते जंगलों में आग ऐसे फैलती है, जैसे मानो पूरा हिमालय जल उठा हो. शोधकर्ता भी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में मौसम चक्र में बदलाव हुआ है.
बेमौसम बारिश या बरसात की बदली हुई फ्रीक्वेंसी से कई बार बादल फटने और बाढ़ जैसे हालात उत्तराखंड में देखे गए हैं. मौसम विभाग और शोधकर्ता कई बार इस बदले हुए पैटर्न के बारे में जानकारी दे चुके हैं. जिसमें वो बता चुके हैं कि कैसे बरसात के आंकड़ों में बदलाव नहीं होता है, लेकिन बरसात होने के तरीकों में बदलाव हो रहा है. जिसकी वजह से पूरे इको सिस्टम को नुकसान पहुंचता है.
क्या है बेतरतीब बारिश का समाधानःबीते कई सदियों से प्राकृतिक आपदाओं के साथ हिमालय राज्य उत्तराखंड और हिमाचल सामंजस्य बनाकर चल रहा है, लेकिन अब प्राकृतिक आपदाओं का स्वरूप इतना बदल चुका है कि इन पर काबू करना मुश्किल हो गया है. लिहाजा, इस पर नियंत्रण पाने के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा लिया जा रहा है. एक ऐसा तरीका है, जिसके जरिए बदले हुए इन नए हालातों को डील किया जा सकता है.
वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी दुनिया भर में ऐसी कई तकनीक हैं, जो कि आज मौसम को भी नियंत्रित कर रही है. ऐसी ही एक तकनीक का नाम 'वेदर मॉडर्नाइजेशन टेक्नोलॉजी' है. हालांकि, मौसम को प्रभावित करने वाली एक तकनीक क्लाउड सीडिंग का भी जिक्र होता है, लेकिन यहां हम क्लाउड सीडिंग की बात नहीं करेंगे. क्योंकि, क्लाउड सीडिंग एक बिल्कुल अलग तरह की टेक्नोलॉजी है.
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वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी एक बिल्कुल अलग तरह की तकनीक है. जिसके जरिए बादलों को प्रभावित किया जाता है. इससे अपने निर्धारित लक्ष्य वाले क्षेत्र में नियंत्रित तरीके से बारिश करवाई जा सकती है. दुबई की मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी कंपनी के शोधकर्ता राघवेंद्र ने ईटीवी भारत को बताया कि किस तरह से यह टेक्नोलॉजी काम करती है और किस तरह से यह उत्तराखंड के परिपेक्ष में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है.
तकनीक का चमत्कार, रेगिस्तान में पड़ी बर्फ, लेकिन कैसे?मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक राघवेंद्र ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि गल्फ कंट्री जो कि अपने रेगिस्तान और गर्म शुष्क आबोहवा के लिए चानी जाती थी. वहां पर वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी के जरिए स्नोफॉल करवाया जा रहा है. यह गल्फ देशों में रहने वाले लोगों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है.
वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी से बारिश वैज्ञानिक राघवेंद्र बताते हैं कि आज तकनीक ने इतना विकास कर लिया है कि दुबई जैसे बड़े शहर में जहां कभी लोग बारिश के लिए तरसा करते थे, वहां आज खूब बारिश इस तकनीक के माध्यम से करवाई जा रही है. वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी के कोर सिद्धांत के बारे में वैज्ञानिक राघवेंद्र बताते हैं कि उनकी यह टेक्नोलॉजी पूरी तरह से आयनाइजेशन तकनीक पर निर्भर करती है. यह क्लाउड सीडिंग तकनीक से पूरी तरह से अलग है.
उन्होंने बताया कि इस तकनीक के जरिए कई हजार किलोमीटर से बादल को ट्रैवल करवा कर उसके निर्धारित लक्ष्य वाली जगह पर पहुंचाया जाता है. निर्धारित लक्ष्य वाली जगह पर स्थापित किए गए आयन जनरेटर के माध्यम से कई 100 किलोमीटर दूर से ले गए इन बादलों में मॉइस्चर डेवलप कर उन्हें बरसाया जाता है. एक तरह से यहां बादलों को ट्रैवल करवाने और उनमें मॉइस्चर को होल्ड करने और इसे नियंत्रित तरीके से रिलीज करने की पूरी प्रक्रिया वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी के तहत किया जाता है.
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उन्होंने बताया कि इस तकनीक में आयन जनरेटर इक्विपमेंट को लगाने का एक बार खर्च आता है. जो लंबे समय तक काम करता है. साथ ही इसमें किसी भी तरह के केमिकल को वातावरण में नहीं छोड़ा जाता है, जो कि क्लाउड सीडिंग प्रोसेस से बारिश करवाने का एक हिस्सा है. इसी वजह से यह तकनीक क्लाउड सीडिंग तकनीक से बिल्कुल अलग है.
दुबई में बादल को नियंत्रित करने का प्रयास पड़ोसी देश चीन मौसम को बना रहा हथियारःदुनियाभर में मौसम को नियंत्रित करने की तमाम तकनीक पर शोध किया जा रहा है. तमाम विकसित राष्ट्र इस तकनीक को आजमाने में किसी तरह का संकोच नहीं कर रहे हैं. हिमालय से सटे पड़ोसी देश चीन की बात करें तो चीन ने क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी में बड़ा निवेश किया है. हालांकि, क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी के माध्यम से बारिश करना पर्यावरण के लिए एक बेहद जोखिम भरा और महंगा समाधान है.
इसके बावजूद भी मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता राघवेंद्र बताते हैं कि चीन ने इस तकनीक पर जमकर इन्वेस्ट किया है. उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय पब्लिकेशन का हवाला देते हुए बताया है कि चीन वेदर को हथियार के रूप में प्रयोग करने की रणनीति बना रहा है. उन्होंने बताया कि चीन ने अपने अगले 10 सालों के लिए क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी पर बड़ा निवेश किया है.
रिपोर्ट के आधार जानकारी देते वैज्ञानिक राघवेंद्र चीन ने भारत देश से डेढ़ गुना ज्यादा बड़े क्षेत्र पर क्लाउड सीडिंग करवाने के लक्ष्य से यह इन्वेस्ट किया है, जो कि भारत के लिए एक खतरे का संकेत है. वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें पड़ोसी देश की इन सभी गतिविधियों को समझना चाहिए और तकनीकी में जिस तरह से सभी विकसित राष्ट्र अपने आप को आगे रख रहे हैं, हमें भी उस पर विचार करना चाहिए.
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वेदर मॉडिफिकेशन तकनीक में कितना खर्चःउत्तराखंड जैसे हिमालय राज्य जहां पर अपार प्राकृतिक संभावनाएं हैं. हर साल जहां पर हजारों करोड़ की संपत्तियों के नुकसान के साथ कई लोग अपनी जान माल का नुकसान प्राकृतिक आपदाओं की वजह से करते हैं. साथ ही फॉरेस्ट फायर में कई बहुमूल्य वन संपदा को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में इस तकनीक को यदि अपनाया जाए तो काफी हद तक नुकसान को कम किया जा सकता है.
मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता राघवेंद्र बताते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं और फॉरेस्ट फायर में हर साल होने वाले नुकसान का 10 फीसदी भी इस तकनीकी का प्रयोग करने में सरकारों को नहीं आएगा. ऐसे में जहां एक तरफ उत्तराखंड सरकार की वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी पर दो तीन साल पहले कुछ पहल की गई थी, लेकिन उसके बाद सरकारी फाइलों में यह प्रस्ताव धूल फांक रहा है. वहीं, अब देखना होगा कि उत्तराखंड के भविष्य को लेकर कौन इस तकनीक को लेकर सामने आएगा. ताकि, आपदा जैसे हालातों से बचा जा सके.
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