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दूसरा विश्व युद्ध लड़ चुके पूर्व सैनिक ने तलवार से केक काटकर मनाया 104वां बर्थडे, कही ये बात

हिटलर और मुसोलिनी की बर्बादी की वजह बने दूसरे विश्व युद्ध में भारत की तरफ से फील्ड मार्शल केएम करियप्पा की टुकड़ी में शामिल सैनिक चंडीप्रसाद जोशी ने शनिवार को अपना 104वां जन्मदिन (ex serviceman Chandi Prasad Joshi 104th birthday) मनाया. मूल रूप से उत्तराखंड के जोशी जोधपुर में पोस्टिंग के दौरान रिटायर हुए और इसके बाद यहीं बस गए. उनके जन्मदिन पर उनकी पांचों बेटियां उनकी साथ रहीं. जोधपुर सैन्य स्टेशन से विशेष रूप से जवान उनका बर्थडे सेलिब्रेट करने आए.

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Published : Nov 20, 2022, 11:40 AM IST

जोधपुर/देहरादून: बहादुरी के साथ दूसरे विश्व ​युद्ध में देश की तरफ से लड़ चुके पूर्व सैनिक चंडीप्रसाद जोशी ने शनिवार को अपना 104वां जन्मदिन धूमधाम से (ex serviceman Chandi Prasad Joshi 104th birthday) मनाया. भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 और 1971 के युद्ध के साक्षी जोशी आज भी उसी जोश से लबरेज हैं. आज भी उनकी यादों में युद्ध के एक-एक पल शीशे की तरह साफ उकेरे से नजर आते हैं. उनके 104वें जन्मदिन को सेलिब्रेट करने के लिए न केवल पारिवारिक और सामाजिक सदस्य शामिल हुए, बल्कि जोधपुर सैन्य स्टेशन के जवान भी पहुंचे. उनकी वर्दी देख जोशी में वही सैनिक वाला जोश देखते ही उमड़ता दिखाई दिया.

मूल रूप से उत्तराखंड के चंडीप्रसाद खुद के पहाड़ी होने पर हमेशा गर्व करते हैं. 1969 में सेना से सेवानिृवत होने के बाद वे जोधपुर के ही होकर रह गए. जोशी ने शनिवार को अपना 104वां जन्मदिन मनाया. इनके पांच पुत्रियां हैं. एक अविवाहित बेटी गीता साथ रहती है. आज जन्मदिन के मौके पर बाकी चारों पुत्रियां व उत्तराखंड समाज के लोग मौजूद रहे. जोशी ने केक काटा. जोशी को अपने पहाड़ी इलाके से प्रेम है. वे कहते हैं कि उन्होंने वहां की शिक्षा के लिए बहुत कुछ किया था. दो किलोमीटर पैदल चला, पहाड़ों में घूमा. पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू व शास्त्रीजी से मिला. तब कहीं जाकर वहां शिक्षा की अलख जगी थी.

पूर्व सैनिक ने मनाया 104वां जन्मदिन
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सेना के जवानों को देख खुश होते हैं जोशी:आज जन्मदिन के मौके पर उनको शुभकामनाएं देने के लिए विशेष रूप से जोधपुर सैन्य स्टेशन से जवान उनके घर आए थे. उनके लिए केक भी लाए. वर्दी देखते ही जोशी का जोश दोगुना हो गया. उनके साथ बैठकर अपनी यादें ताजा करने लगे. इस दौरान हर कोई उनको देख खुश हो रहा था. जोशी ने तत्कालीन ब्रिटीश भारतीय फौज की ओर से 1939 से 1945 तक दूसरा विश्व युद्ध लड़ा था. आजादी के बाद 1965 और 1971 के युद्ध के भी साक्षी रहे.

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दूसरे विश्वयुद्ध में रंगून में लड़े: उनकी टुकड़ी बर्मा में जर्मनी, जापान व इटली की सेनाओं से लड़ी थी. आज भी उनके दिमाग में यादें ताजा हैं. वे बताते हैं कि वे गढ़वाल रेजिमेंट में थे. वर्ष 1942 में उनकी बटालियन को रंगून भेजा गया. उस वक्त वे लांस नायक थे. वहां जब जर्मनी की सेना ने उनकी पूरी बटालियन को घेर लिया, तो ब्रिटिश सेना के कमाण्डिंग ऑफिसर ने सबसे पूछा कि क्या हमें सरेण्डर करना चाहिए. इस दौरान अंत में जोशी का नम्बर आया, तो उन्होंने जवाब दिया कि हम लड़ने के लिए आए हैं, सरेंडर करने के लिए नहीं.

गोलियां बरसाते हुए निकले: फील्ड मार्शल केएम करियप्पा (जो उस समय मेजर और भारतीय टुकड़ी के मुखिया थे) की अगुवाई में जवानों ने एक कोरिडोर गोलियां बरसाते हुए आगे बढ़े. जर्मनी की सेना को चकमा दिया. जोशी ने बताया कि युद्ध के अंतिम दौर में सेना के अधिकारियों से आदेश मिलने के बाद जवान रंगून से पैदल चलकर इम्फाल गए थे. उनको यह भी याद है कि इस लड़ाई से हिटलर और मुसोलिनी बर्बाद हुए थे. बाद में वे आर्मी एजुकेशन कोर (एईसी) में काम करते हुए जोधपुर आए और यहीं से रिटायर्ड हुए और यहीं के हो गए.

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