देहरादून: उत्तराखंड एक सैनिक बाहुल्य प्रदेश है इसलिए चुनावों में सैनिक परिवारों की अहमियत काफी बढ़ जाती है. यही कारण है कि इन दिनों सैनिक शौर्य और शहादत को लेकर खूब बातें की जा रही हैं. सैनिक कल्याण के नाम पर भी प्रदेश की राजनीति में खूब हो-हल्ला मचा हुआ है. हर कोई दल सैनिक परिवारों के हितों की बात कर रहा है. बीजेपी सरकार को इसको लेकर शहीद सम्मान यात्रा निकाल रही है.
मगर, प्रदेश में असलियत में सैनिक परिवारों का क्या हाल है, ये आज ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है. दरअसल, प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत देहरादून के पुरकुल गांव में सैन्य धाम का निर्माण किया जाना है. जिसके लिए प्रत्येक शहीद परिवार से मिट्टी ली जा रही है. सरकार, प्रदेश के 1734 शहीदों के घर जा रही है और उनके घर से एक मुठ्ठी मिट्टी लेकर आएगी. राजधानी देहरादून में सैन्य धाम का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें उस मिट्टी का इस्तेमाल किया जाएगा.
शौर्य दिवस हो, गणतंत्र दिवस या फिर स्वतंत्रता दिवस ईटीवी भारत हर बार सैनिक परिवारों के बीच पहुंचता है, जहां हम शहीद हुए उन वीरांगनाओं का हाल जानते हैं. हर बार ईटीवी भारत उन तमाम परेशानियों से अपने दर्शकों को रूबरू कराता है जो उत्तराखंड के कई परिवार अपने घर से चिराग को खो देने के बाद झेल रहे हैं. बात चाहे कारगिल युद्ध में शहीद हुए उत्तराखंड के 35 रणबांकुरों की हो, जिसमें शहीद राजेश गुरंग के पराक्रम की कहानी, कारगिल शहीद विजय भंडारी के परिवार का दर्द, हमने हर किसी की कहानी को पाठकों तक पहुंचाया. साथ ही हमने इनकी जमीनी हकीकत और हालात को लेकर हमने पुरजोर आवाज उठाई. चुनावी मौसम से पहले एक बार फिर ईटीवी भारत ऐसे ही परिवारों के बीच पहुंचा है, जिसमें हमने उनके हालातों और हकीकत पर बात की.
शहीद परिवारों का सम्मान सफेद झूठ: उत्तराखंड में इन दिनों हो रही सैनिक सम्मान की बात पर साल 1989 में अपने पति शहीद सूबेदार जय प्रकाश राणा की वीरांगना मीना राणा ने ईटीवी भारत से बातचीत की. मीना के पिता भी सेना में रहते शहीद हुए थे. उन्होंने बताया कि आज जितनी भी बातें शहीदों और सैनिक परिवारों को सम्मान देने की हो या फिर उनके लिए सुविधाओं की बात की जा रही हो, सारी सफेद झूठ हैं.
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32 सालों से किराये के मकान में रह रही हैं: उन्होंने शहीद परिवारों के सम्मान को केवल सरकार का चुनावी हथकंडा करार दिया है. उन्होंने कहा कि, आज हकीकत में सैनिक परिवारों की ये हालात है कि शहीद की पत्नी दर-दर की ठोकरें खा रही है. कई बार शहीद परिवार के सदस्य को नौकरी देने के वादे किये गए, कई बार जमीन देने की बात भी कही गई, मगर आज भी हकीकत यही है कि वो पिछले 32 सालों से किराए के मकान में रह रही हैं.
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सरकारें भूल जाती है वादें: यही नहीं, मीना राणा का कहना है कि प्रदेश में इस वक्त चुनावी माहौल है, जिस कारण सरकार केवल जन भावनाओं के साथ खेल रही है. नेता शहीद परिवारों के जरिए लोगों की संवेदनाओं से जुड़कर उसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. मीना राणा कहती हैं कि, सैनिकों के सम्मान के नाम पर शहीदों की वीर नारियों को केवल शॉल ओढ़ा दिया जाता है. इसके अलावा उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है. उनका साफ तौर पर कहना है कि न तो वो शॉल के भूखे हैं और न ही बुके (गुलदस्ते) की चाहत रखते हैं.