देहरादून: राजपुर क्षेत्र के पुरकल गांव स्थित तिब्बती मठ के अधीन आने वाला 'शाक्य स्कूल' इन दिनों विवादों में घिरा है. नेपाल मूल के 47 बच्चों के साथ बर्बरता, मारपीट और प्रताड़ना जैसे आरोपों के मामले को लेकर ये स्कूल दिल्ली से लेकर नेपाल तक खबरों में है. दशहरे के त्यौहार में स्कूल से अवकाश न मिलने के चलते जिस तरह से यह मामला सामने आया उसके बाद पहली बार इस स्कूल के प्रबंधक और पीड़ित बच्चों ने कैमरे के सामने आकर ईटीवी भारत से बातचीत की.
स्कूल को बदनाम करने की साजिश: प्रबंधक
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए शाक्य स्कूल के जनरल सेक्रेटरी सोनम ने बताया कि मारपीट और बच्चों को प्रताड़ित करने का आरोप पूरी तरह से गलत और निराधार है. बच्चों को चोट लगने का वीडियो और फोटो 3 साल पुराना है. हालांकि नेपाल मूल के बच्चों ने दशहरे में घर जाने के लिए अवकाश मांगा था. मगर कोरोना के कारण बच्चों को अवकाश नहीं दिया गया. जिसके चलते 10 बच्चे स्कूल से फरार हो गये. तीन बच्चों को वापस लाया जा चुका है, जबकि बाकी 7 बच्चे नेपाल में अपने घर पहुंच चुके हैं. शाक्य स्कूल के सेक्रेटरी ने कहा कि 2016 से उनका स्कूल 211 तिब्बती और नेपाली बच्चों को मुफ्त में शिक्षा सहित अन्य सुविधाएं दे रहा है. आजतक बच्चों को लेकर कोई ऐसा विवादित प्रकरण सामने नहीं आया है. उन्होंने कहा ये सारी बातें उनके स्कूल को बदनाम करने की साजिश के तहत की जा रही हैं.
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बच्चों के धर्म परिवर्तन का आरोप पूरी तरह गलत है: साकिया स्कूल
वहीं, नेपाली मूल के 47 बच्चों को शिक्षा दीक्षा देने के दौरान धर्म परिवर्तन के लिए प्रताड़ित करने के आरोप को भी शाक्य स्कूल के प्रबंधक ने पूरी तरह से खारिज किये. स्कूल सेक्रेटरी सोनम ने कहा कि बच्चों के धर्म परिवर्तन करने का आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद है. हां इतना जरूर है कि तिब्बती स्कूल होने के कारण उनको वहीं की भाषा वेशभूषा और अन्य तरह की धार्मिक शिक्षा-दीक्षा जरूर दी जाती है. मगर धर्म परिवर्तन जैसी कोई बात नहीं है. यहां सभी बच्चे अपने धर्म समुदाय के लिए स्वतंत्र हैं.
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पढ़ाई छोड़ कर घर वापस जाने वाले बच्चों के विषय में स्कूल प्रबंधन के पास जवाब नहीं
शाक्य स्कूल प्रबंधन ने इतना जरूर कहा कि नेपाली मूल के 47 बच्चों ने प्रार्थना पत्र देकर स्कूल छोड़कर हमेशा के लिए घर वापस जाने का आग्रह पहले ही किया हुआ है. ऐसे में वह लोग नेपाल एंबेसी और बच्चों के अभिभावकों से बातचीत कर उन्हें वापस भेजने की व्यवस्था बनाने जा रहे हैं. हालांकि इतनी संख्या में पढ़ाई छोड़कर घर वापस जाने वाले बच्चों का सही कारण उनको समझ नहीं आ रहा है. स्कूल प्रबंधन के अनुसार सिर्फ नेपाल और पश्चिम बंगाल के बच्चे आखिर क्यों पढ़ाई छोड़ कर वापस घर जाना चाहते हैं, ये उन्हें समझ नहीं आ रहा है.