देहरादून:महानगरों की चहल-पहल के बीच एक तबका है जो गरीबी की चादर ओढ़े सर्द रातों में सोया करता है, जो दिनभर मजदूरी कर मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटाते हैं और शाम होते ही फुटपाथ किनारे सो जाते हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों का इन्हीं फुटपाथों पर जन्म होता हैं और यहीं से इनका बुलावा आ जाता है. इस पीड़ा को देखते हुआ सरकारें इन गरीबों को सर्द रातों से बचाने के लिये रैन बसेरों के रूप में सोने-रहने की जगह मुहैया कराती है. लेकिन क्या रैन बसेरों का कुछ लाभ इन गरीबों को मिल पा रहा है. क्या सर्द रातों में बेसहारा लोग चैन की नींद सो पा रहे हैं. इन्हीं सब सवालों को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून के रैन बसेरों का रियलिटी चेक किया.
देहरादून ईटीवी भारत ब्यूरो ऑफिस से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित ट्रांसपोर्ट नगर में हमारी टीम रैन बसेरों का हालात जानने के लिए रवाना हुई. लेकिन पूरे रास्ते में कहीं भी रैन बसेरे की लोकेशन को लेकर कोई साइन बोर्ड लगा नहीं मिला. किसी तरह ढूंढते हुए टीम एक रैन बसेरे तक पहुंच ही गई लेकिन वहां इमारत पर भी कोई बोर्ड लगा नहीं मिला. हालांकि, रैन बसेरे के बाहर कुछ लोग अलाव सेंकते कड़कड़ाती ठंड से राहत लेने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए.
इस सब के बीच रात के 9 बज चुके थे और तापमान भी करीब 8 डिग्री तक पहुंच गया. अब बारी थी रैन बसेरे के अंदर की व्यवस्थाएं जानने की. ईटीवी भारत की टीम जब रैन बसेरे में पहुंची तो यहां साफ-सफाई को लेकर व्यवस्थाएं दुरुस्त दिखाई दी. खुशी की बात यह थी कि यहां न केवल स्वच्छता को लेकर ध्यान दिया गया था बल्कि बेसहाराओं के लिए रजाई गद्दे की भी मुकम्मल व्यवस्था की गई थी.