देहरादून: हरे-भरे खूबसूरत पेड़…जहां तक नजर जाए, वहां तक हरियाली ही हरियाली. कितनी सुखद लगती हैं ये बातें. लेकिन आज के समय में सच्चाई बिल्कुल अलग है. शहरीकरण के बढ़ते दबाव, बढ़ती जनसंख्या और तीव्र विकास की लालसा ने इंसान को अंधा बनाकर रख दिया है. हम जगह पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं. जंगल तबाह करते जा रहे हैं. ऐसे में वहां रहने वाले जानवर कई बार इंसानों की बस्ती में दखल दे देते हैं. जिस समय भालुओं को शीत निद्रा (Bear Hibernation) में होना चाहिए, उस समय भालू आबादी क्षेत्रों में मंडरा रहे हैं.
भालुओं की नींद में अड़ंगा: उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के भालुओं की नींद में खलल पड़ रहा है. भालुओं ने तो अब अपने शीतनिंद्रा पर जाने के स्वभाव को भी बदल दिया है. पहाड़ों पर तो भालुओं का ये बदला हुआ व्यवहार बेहद खतरनाक हो गया है. वन संरक्षक भागीरथी वृत्त राजीव धीमान (Conservator of Forests Bhagirathi Circle Rajiv Dhiman) का कहना है कि उन्होंने महसूस किया है कि भालू अपने सामान्य स्वभाव को बदल रहे हैं.
अब 12 महीने सक्रिय हैं भालू: आमतौर पर शीतनिंद्रा (Hibernation) पर जाने वाले भालुओं की सक्रियता 12 महीने दिखाई दे रही है. भालू शीतकाल के दौरान भी लोगों पर हमला कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि भालुओं के हमले प्रदेश में किसी भी वन्यजीव के मुकाबले सबसे ज्यादा रिकॉर्ड हो रहे हैं. हिमालय में रहने वाले काले भालू सर्दियों में लंबे समय तक नींद में रहते हैं. यह एक तरह से अपनी ऊर्जा को बचाने के लिए ऐसा करते हैं. यही वजह है कि सर्दियों में लोग भालुओं की परवाह नहीं करते रहे हैं. वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक अब स्थिति बदली है.
शीतनिंद्रा छोड़ बस्तियों में आ रहे भालू: भालुओं को अब इंसानी बस्तियों में देखा जा रहा है. इसकी बड़ी वजह यहां आसानी से मिलने वाला भोजन है. चौंकाने वाली बात यह है कि अब भालू खेतों में तो पहुंच ही रहे हैं, साथ ही पालतू पशुओं को मारने के अलावा इंसान के द्वारा फेंके गए कूड़े या कूड़ेदान में खाना पानी की तलाश में पहुंच रहे हैं. यह सब केवल गर्मियों में या म\नसून में ही नहीं, बल्कि सर्दियों के मौसम में भी दिखाई दे रहा है.