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उत्तराखंड के 20 लाख बिजली उपभोक्ताओं को लगा करंट, 6.5 फीसदी सरचार्ज की पड़ी मार

उत्तराखंड में बिजली की कीमतों को बढ़ाने का फैसला अब जनता की जेब पर भारी पड़ने लगा है. हालात यह है कि उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग यूपीसीएल की सिफारिश पर एक ही साल में दो-दो बार बिजली के दाम बढ़ाने तक का फैसला ले रहा है. उधर, ऐसे निर्णयों से यूपीसीएल प्रबंधन पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं.

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Published : Sep 29, 2022, 9:21 AM IST

देहरादून:प्रदेश में बिजली की कीमतें आसमान छूती दिखाई दे रही हैं. एकाएक उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड बिजली की कीमतों को बढ़ाने के लिए पिछले कुछ समय से आतुर दिखाई दिया है. इसके पीछे यूपीसीएल का तर्क बिजली के खुले बाजार में दाम बढ़ना बताया जा रहा है. फिलहाल, यूपीसीएल की सिफारिश पर उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग की तरफ से 6.5% सरचार्ज बढ़ाने का फैसला ले लिया गया है.

वित्त वर्ष की शुरुआत में भी बढ़े थे बिजली के दाम: उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग के सदस्यों के इस फैसले से 20 लाख बिजली उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ने जा रही है. उधर, विपक्षी दल बिजली की कीमतों में बढ़ोत्तरी के ऐसे फैसलों को प्रबंधन की रणनीतिक कमी से जोड़ रहे हैं. खास बात यह है कि इसी वित्त वर्ष की शुरुआत में बिजली के दाम बढ़ाए जा चुके हैं. ऐसे में अब सरचार्ज के नाम पर लोगों की जेब ढीली करने का यह फैसला किसी को भी रास नहीं आ रहा है.

उपभोक्ताओं पर इतना भार पड़ेगा: बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी से हालांकि बीपीएल परिवारों को छूट दी गई है लेकिन बाकी उपभोक्ताओं पर 7 महीने तक भारी सरचार्ज वसूलने के आदेश कर दिए गए हैं. इसके बाद अब 100 यूनिट तक पर ₹5 का भार वहन करना होगा, 100 यूनिट से 200 यूनिट तक ₹25 तक अतिरिक्त जमा करने होंगे. 200 से 400 यूनिट तक वाले उपभोक्ताओं को करीब ₹55 अतिरिक्त देने होंगे. उधर, इससे ऊपर वाले उपभोक्ताओं को ₹90 तक देने पड़ सकते हैं.
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हालांकि, उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड पूर्व में खुले बाजार में बिजली के दाम बढ़ने के कारण जनता पर कई गुना भार बढ़ाने की सिफारिश कर चुका है. यूपीसीएल ने तो जनता से करीब 1355 करोड़ सरचार्ज के रूप में वसूलने तक का मन बनाया था. लेकिन आयोग ने इसमें कुछ कमी करते हुए सरचार्ज को लेकर रेट निश्चित किए.

इस तरह बिजली के दाम लगातार बढ़ने के कारण उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रबंधन पर बिजली को लेकर कार्य योजना न तय कर पाने का आरोप लग रहा है. इसीलिए इसका भार सीधे तौर पर जनता पर पड़ने की बात कही जा रही है. विपक्षी दलों ने इसे कमजोर प्रबंधन की रणनीति के चलते लिया गया फैसला बताया है.

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