देहरादून:उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2022 नजदीक है. एक बार फिर सभी का ध्यान उन प्रत्याशियों पर है, जो चुनाव मैदान में केवल राजनीतिक समीकरण को बदलने के लिए उतरते हैं. उत्तराखंड में हर विधानसभा चुनाव में ऐसे कई प्रत्याशियों के होने से राष्ट्रीय दलों को कई बार जीती हुई बाजी हारनी पड़ती है. कई बार राजनीतिक दल विरोधियों को परास्त करने के लिए डमी कैंडिडेट का पैंतरा भी आजमाते हैं. उत्तराखंड में ऐसे वोट कटवा प्रत्याशियों की क्या स्थिति है, जानते हैं...
यूं तो, चुनाव में प्रत्याशी एड़ी चोटी का जोर लगा कर चुनाव जीतने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन इसमें कुछ प्रत्याशी ऐसे भी होते हैं जो केवल चुनावी समीकरण बदलने तक ही सीमित रह जाते हैं. वैसे राजनीतिक दल और प्रत्याशी कई बार डमी कैंडिडेट भी खड़ा करते हैं. ऐसे में चुनाव के दौरान यह प्रत्याशी जीत तो नहीं पाते लेकिन जीत-हार का समीकरण जरूर बदल देते हैं.
खास तौर पर उत्तराखंड में ऐसे प्रत्याशियों का ज्यादा प्रभाव दिखाई देता है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश की विधानसभा सीटों में प्रत्याशियों के बीच जीत-हार का अंतर काफी कम होता है. वोट काटने वाले प्रत्याशियों के कारण जीत-हार और हार-जीत में बदल जाती है. अब जानिए उत्तराखंड में ऐसे प्रत्याशी जिनकी जमानत जब्त हो जाती है. यानी चुनाव लड़ने के दौरान उन्हें इतने वोट भी नहीं मिलते कि वह अपनी जमानत बचा सकें.
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इन आंकड़ों पर एक नजर:साल 2002 के चुनाव में कुल 927 प्रत्याशियों ने चुनाव में हिस्सा लिया, यहां 765 प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हो गई, इसमें 705 पुरुष प्रत्याशी और 60 महिला प्रत्याशी थीं. वहीं, साल 2007 में 785 प्रत्याशियों ने चुनाव में हिस्सा लिया, जिसमें से 580 प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सके. इसमें 538 पुरुष प्रत्याशी थे और 42 महिला प्रत्याशी.
साल 2012 में कुल 788 प्रत्याशियों ने चुनाव के मैदान में दम दिखाया लेकिन इसमें 614 प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके. इसमें 566 पुरुष प्रत्याशी थे और 47 महिला प्रत्याशी. साल 2017 में सबसे कम 637 प्रत्याशियों ने चुनाव मैदान में हिस्सा लिया, जिसमें से 474 प्रत्याशियों को अपनी जमानत गंवानी पड़ी. इसमें 425 पुरुष प्रत्याशी थे तो 47 महिला प्रत्याशी.
माना जाता है कि चुनाव के दौरान वोट कटवा प्रत्याशियों का ज्यादा नुकसान उन पार्टियों को होता है, जिनका वोट बैंक अल्पसंख्यक समुदाय या मलिन बस्ती से जुड़ा होता है. लिहाजा, इसमें कांग्रेस और बीएसपी (Bahujan Samaj Party) को सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ता है. हालांकि, विधानसभा सीट स्तर पर कौन-कौन से प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, यह भी तय करता है कि इसका नुकसान किस पार्टी के प्रत्याशी को होगा.
इन प्रत्याशियों को करना पड़ा हार का सामना:साल 2002 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो विकासनगर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी नव प्रभात को 8,971 वोट मिले, जबकि बीजेपी प्रत्याशी मुन्ना सिंह चौहान को 8,913 वोट मिले और 58 वोट से हार गए. इस सीट पर 19 प्रत्याशी मैदान में थे, जिसमें 17 की जमानत जब्त हो गई थी. जिसमें वोट कटवा प्रत्याशियों ने 33 हजार वोट काटे.
साल 2002 में ही धरमपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल को 14,803 वोट मिले थे, जबकि बीजेपी प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को महज 14 हजार वोट ही मिले और वो 803 वोट से चुनाव हार गए. इस सीट पर 23 प्रत्याशियों में से 21 की जमानत जब्त हो गई, जिसमें वोट कटवा प्रत्याशियों ने 14 हजार वोट काट दिए.
इसी साल पौड़ी की श्रीनगर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल को 14,764 वोट मिले. जबकि बीजेपी प्रत्याशी रमेश पोखरियाल निशंक को 13,767 वोट मिले. ऐसे में निशंक 997 वोट से हार गए. इस सीट पर 10 प्रत्याशियों में 8 की जमानत जब्त हो गई. वोट कटवा प्रत्याशियों ने 6 हजार वोट काटे.
साल 2002 चुनाव में ही काशीपुर विधानसभा सीट से हरभजन सिंह चीमा को 18,396 वोट मिले, जबकि पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा को 18,201 वोट मिले. ऐसे में केसी सिंह बाबा सिर्फ 195 वोट से चुनाव हार गए. इस सीट पर 15 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से 12 की जमानत जब्त हो गई. जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों ने 16 हजार वोट काटे.