सर्दियों में 99 फीसदी कम हुई बारिश, गहराएगा जल संकट देहरादून: दुनिया भर में अधिकतर ग्लेशियर्स तेजी से पिघल रहे हैं. ग्लेशियर्स पर काम करने वाले वैज्ञानिक भी इस बात को अध्ययन के दौरान रिकॉर्ड करते रहे हैं. लेकिन नया खतरा अब सर्दियों के दौरान गिरते बारिश और बर्फबारी के आंकड़े हैं, जिन्हें भविष्य में कई समस्याओं के लिए वजह माना जा रहा है. दरअसल उत्तराखंड रीजन में सर्दियों के मौसम के दौरान 99 फ़ीसदी बारिश कम हुई है. यानी इस बार अब तक सर्दी का यह पूरा मौसम बिना बारिश और बर्फबारी के ही गुजर रहा है. अक्टूबर महीने से अब तक केवल 9 जनवरी को ही एक बार नैनीताल के कुछ क्षेत्रों में हल्की बारिश हुई है.
ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन हिमालयी क्षेत्र में बारिश और बर्फबारी की कमी आने वाले समय के लिए खतरे की घंटी है. दुनियाभर में ये हालात मौसमीय चक्र में बदलाव के कारण हो रहे हैं. अभी फिलहाल बारिश और बर्फबारी को लेकर स्थितियां क्या हैं, इसे बिंदुवार समझिए.
बिन पानी सब सून
उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी के आंकड़ों में भारी गिरावट
हिमाचल और जम्मू कश्मीर में भी बर्फबारी और बारिश को लेकर हालात चिंताजनक
सर्दियों के सीजन में उत्तराखंड में 99 फीसदी बारिश कम हुई रिकॉर्ड
बर्फबारी की कमी से ग्लेशियर्स को नहीं मिल पा रहा पोषण
ग्लेशियर्स से निकलने वाली नदियों के रिचार्ज पर इसका सीधा असर
राज्य में पानी के हज़ारों स्रोत भी प्रभावित होना तय
भविष्य में पानी का भी संकट लोगों को कर सकता है परेशान
क्या कहते हैं मौसम विभाग के डायरेक्टर: मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह भी मानते हैं कि यदि बर्फबारी कम होती है, तो इसका असर ग्लेशियर पर पड़ेगा और ग्लेशियर के ज्यादा पिघलने का खतरा भी बढ़ जाएगा. विक्रम सिंह यह भी कहते हैं कि जनवरी के महीने में अभी भविष्य में भी बारिश या बर्फबारी के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं. यानी अक्टूबर नवंबर और दिसंबर के बाद जनवरी का आधा महीना भी बिना बारिश और बर्फबारी के ही गुजरने वाला है.
ग्लेशियर और नदियों को खतरा ग्लेशियर को लेकर बढ़ी चिंता: हिमालय की स्थिति को देखें तो पूरे हिमालयी क्षेत्र में 30,000 से ज्यादा ग्लेशियर हैं. भारतीय महाद्वीप के अंतर्गत हिमालय में करीब 10,000 ग्लेशियर मौजूद हैं. इनमें अधिकतर ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पहले ही उनकी सेहत बहुत अच्छी नहीं है. ऐसे में सर्दियों के मौसम में लगातार बारिश और बर्फबारी के आंकड़ों में होती गिरावट ग्लेशियर की सेहत को और भी नासाज कर रही है. वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक मनीष मेहता कहते हैं कि वैसे तो ग्लेशियर का पिघलना और इनका बढ़ना नेचुरल प्रोसेस है, लेकिन इस समय जिस तरह बारिश और बर्फबारी कम हो रही है, उसके कारण ग्लेशियर पर रिजर्व वायर भी कम हो रहा है. जिसके चलते ग्लेशियर को लेकर चिंता बढ़ रही है. यदि ऐसा लगातार होता है तो उससे भविष्य में भी दिक्कत आएगी. हालांकि वह यह भी कहते हैं कि पुराने रिकॉर्ड्स यह बताते हैं कि समय-समय पर ग्लेशियर कम भी हुए हैं और सामान्य प्रक्रिया के तहत उन्होंने अपना आकार बढ़ाया भी है.
सर्दी में हुई कम बारिश: उत्तराखंड में सर्दी के तीन महीने गुजरने और चौथे महीने भी बारिश के न होने से समस्याएं काफी ज्यादा बढ़ सकती हैं. लेकिन यह बात केवल उत्तराखंड रीजन की नहीं है, बल्कि हिमालय से सटे दूसरे राज्य भी कुछ ऐसी ही बारिश और बर्फबारी की कमी से जूझ रहे हैं. जम्मू कश्मीर में मौजूद जो हालात बने हैं, वैसे पिछले कई सालों से नहीं देखे गए. इसी तरह हिमाचल में भी बर्फबारी नहीं होने से कई तरह की समस्याएं खड़ी हो रही हैं.
ये भी पढ़ें: फसलों पर मौसम की मार, बारिश और बर्फबारी न होने से मुसीबत में किसान
ये भी पढ़ें: क्लाइमेट चेंज के कारण बदला मौसम का पैटर्न, उत्तराखंड में 50 फीसदी कम हुई बारिश, सूखी सर्दी का खेती पर असर