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नदियों को बचाने के लिए समझना होगा प्रकृति का विज्ञान: डॉ. अनिल जोशी

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनता जा रही है और इसका असर अन्य देशों के साथ ही भारत में भी दिखने लगा है. जिससे खासतौर पर हिमालयी क्षेत्रों में जहां ग्लेशियर लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं और प्राकृतिक जलस्रोत खत्म हो रहे हैं.

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Published : Jun 27, 2019, 2:54 PM IST

Updated : Jun 27, 2019, 3:25 PM IST

मीडिया से बात करते मीडिया से बात करते पर्यावरणविद अनिल जोशी.पर्यावरण विद अनिल जोशी.

देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग का असर पूरे विश्व के साथ देवभूमि उत्तराखंड में भी पड़ रहा है. जिससे कलकल बहती नदियों का पानी सूख रहा है. साथ ही कई गाड़ गधेरे सूखते जा रहे हैं. जो पारिस्थिति तंत्र और पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. प्रदेश में कई गांव ऐसे हैं जहां पानी की समस्या बनी रहती है. ऐसे में पदमश्री डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि इसके लिए प्रकृति के विज्ञान को समझना बेहद जरूरी है. साथ ही जल की महत्ता को समझते हुए संरक्षण करना भी जरूरी है.

नदियों पर दिख रहा ग्लोबल वार्मिंग का असर.

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनता जा रही है और इसका असर अन्य देशों के साथ ही भारत में भी दिखने लगा है. जिससे खासतौर पर हिमालयी क्षेत्रों में जहां ग्लेशियर लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं और प्राकृतिक जलस्रोत खत्म हो रहे हैं. उत्तराखंड में पिछले कुछ दशकों में कई प्राकृतिक जलस्रोत सूख चुके हैं. प्रदेश में पानी की समस्या गहराती जा रही है. बीते सालों में पर्वतीय क्षेत्रों में ये समस्या विकराल रूप ले चुकी है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच साल में प्रदेश के 10 हजार से ज्यादा छोटे बड़े प्राकृतिक जलस्रोत हो चुके हैं या खत्म होने की कगार पर हैं.

उत्तराखंड में 70 प्रतिशत से ज्यादा भू-भाग वन संपदा का है बावजूद इसके हालत सुधर नहीं रहे हैं और लगातार गाड़-गधेरे सुख रहे हैं. वहीं, पर्यावरणविदों का मानना है कि सरकार द्वारा इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है. वहीं, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि जल संरक्षण के लिए राज्य में तमाम जगहों पर झीलों के लिए डीपीआर बनाए गए हैं.

जल्द ही 7-8 जिलों पर काम भी शुरू हो जाएगा. साथ ही बताया कि सोर्स के डेवलपमेंट के लिए बीते दिनों हुई नीति आयोग की बैठक में निर्णय लिया गया है, जहां से पानी ले रहे हैं उस सोर्स की भी चार्जिंग बनी रहे. डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि हमारे पास पानी का आधार सिर्फ वर्षा है. बारिश के पानी को हम किस तरह अपने उपयोग में ला सकें या फिर संरक्षित कर सकें, इसके लिए प्रकृति के विज्ञान को समझना बेहद जरूरी है.

साथ उन्होंने बताया कि जल को संरक्षित करने के लिए जलागम क्षेत्रों को जलों को संरक्षित करना बेहद जरूरी है और हालत दिनों दिन खराब हो रहे हैं. भले ही सरकार प्राकृतिक जलस्रोतों को संरक्षित करने की बात कह रही हो लेकिन समय है कि सरकार को इसके लिए जमीन स्तर पर काम करे.

Last Updated : Jun 27, 2019, 3:25 PM IST

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