देहरादूनःविश्व विख्यात बदरीनाथ धाम की पूजा-पद्धति आदि गुरू शंकराचार्य के काल से ही चली आ रही है. हालांकि, जो पद्धति बदरीनाथ धाम के लिए आदि गुरू शंकराचार्य ने तय की थी, उसी पद्धति और विधि विधान के मुताबिक ही रोजाना भगवान बदरी विशाल के कपाट खोले जाते हैं. समय के मुताबिक ही पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ होता है. लेकिन इस साल बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद ही बदरीनाथ धाम से जुड़ी पूजा पद्धति के तहत धाम के कपाट नहीं खोले गए हैं. बदरीनाथ धाम के कपाट इस साल 18 मई सुबह 4:15 बजे पूरे विधि विधान से खोले गए थे लेकिन उसके बाद से ही इस पद्धति में बदलाव देखा गया.
11 दिनों तक सुबह 7 बजे खोले गए कपाट
बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के अगले दिन यानी 19 मई से 29 मई तक बदरीनाथ धाम के कपाट को सुबह 7 बजे खोला गया जबकि आदि गुरु शंकराचार्य के काल से चली आ रही पद्धति के मुताबिक बदरीनाथ धाम के कपाट प्रातः 4 से 4:30 बजे तक ही खोले जाने की मान्यता और प्राचीन परंपरा रही है. ऐसा पहली बार हुआ है, जब बदरीनाथ धाम में मंदिर खुलने के समय में बदलाव किया गया है. ऐसे में पौराणिक मान्यता व धार्मिक परंपरा के विपरीत काम करने वाले अधिकारियों पर सवाल खड़े होना लाजमी है. 11 दिनों तक बदरी विशाल के कपाट सुबह 7 बजे खोले गए हैं. इस मामले पर विवाद शुरू होने के बाद 30 मई से एक बार फिर कपाट सुबह 4:30 बजे से खोले जाने लगे हैं.
सदियों से चली आ रही परंपरा
गौर हो कि भगवान बदरी विशाल धाम की पूजा पद्धति अन्य मंदिरों और अन्य पूजा पद्धति से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि आदि गुरू शंकराचार्य ने बदरीनाथ धाम के लिए जो पद्धति बनाई थी उस पद्धति के मुताबिक ही सदियों से बदरी विशाल के कपाट खुलते आए हैं. उसी पद्धति के मुताबिक ही पूजा-पाठ किए जाते रहे हैं, लेकिन इस कोरोना काल के दौरान कपाट खुलने के बाद राज्य सरकार ने धाम में पूजा पाठ के लिए जो SOP तय की थी, उसी के मुताबिक ही कपाट खोले गए है. ऐसे में एक बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि सदियों से चली आ रही परंपरा को आखिर क्यों बदला गया? इस परंपरा को बरकरार रखने वाले जिम्मेदार अधिकारी उस वक्त कहां थे?
ये भी पढ़ेंःपांच फीट बर्फ में ढका हेमकुंड साहिब, आस्था पथ भी बर्फ से लबालब
'कुछ बोलूंगा तो नौकरी चली जाएगी'