देहरादून: कोरोना वायरस से निपटना दुनियाभर के सामने सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. कोरोना वायरस को तेजी से फैलते देख पूरी दुनिया में डर का माहौल है. इस जानलेवा वायरस के मामले दिन-प्रतिदिन तेजी से बढ़ रहे हैं. सबसे अहम बात ये है कि इस वायरस का इलाज क्या है. देहरादून के चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ लवकुश चौधरी के मुताबिक दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि कोरोना वायरस हवा में कुछ घंटे जीवित रह सकता है.
कोरोना वायरस सरफेस या ड्रॉपलेट के जरिए ही एक इंसान से दूसरे इंसान को संक्रमित करता है. रोगी व्यक्ति के ड्रॉपलेट्स के संपर्क में आने के बाद ही एक स्वस्थ्य इंसान संक्रमित हो सकता है. ऐसा रोगी के खांसने, छींकने या मास्क पहनकर बात न करने से हो सकता है.
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कोरोना पीड़ित मरीजों में करीब 18 से 20 प्रतिशत मरीज ऐसे भी सामने आए हैं, जो किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं. सामान्य तौर पर कोरोना संक्रमण के मरीजों के जो लक्षण होते हैं, उन मरीजों में नहीं देखे गए हैं. इसके बाद भी उन मरीजों की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. इसके अलावा जो लोग उम्रदराज हैं, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है. ऐसे लोगों के लिए कोरोना संक्रमण ज्यादा घातक साबित हो सकता है.
डॉक्टर लवकुश चौधरी के मुताबिक करीब 80% मरीज ऐसे हैं. जिनमें सर्दी जुकाम, बुखार जैसे लक्षण हैं और उनमें कोरोना वायरस की पुष्टि हुई है. साथ ही 20% मरीज ऐसे भी हैं, जो डबल निमोनिया पीड़ित, हार्ट की प्रॉब्लम को लेकर आए थे, उनमें में भी कोरोना वायरस की पुष्टि हुई हैं. ऐसे में कोरोना वायरस से बचाव के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ही एक मात्र रास्ता है.
WHO ने ड्रॉपलेट संक्रमण पर क्या कहा
रिसर्च के दौरान डब्ल्यूएचओ ने कहा कि छींक या खांसने के दौरान ड्रापलेट से एक मीटर के दायरे में खड़े व्यक्ति को संक्रमण हो सकता है. ड्रापलेट का आकार 5-10 क्यूबिक मीटर होता है. ऐसे संक्रमण को हवा से फैलना नहीं कहेंगे. लेकिन ड्रापलेट का आकार 5 क्यूबिक मीटर से कम हो तो वह वायु कण कहा जाएगा. जिससे होने वाले संक्रमण को हवा से होने वाला संक्रमण कहा जाएगा.