देहरादून:पिछले 14 सालों से लगभग तीन लाख ग्रामीणों को डोबरा-चांठी पुल के तैयार होने का इंतजार धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है. यह अधूरा पुल कई बार ग्रामीणों के आंखों में आंसू लाने के लिए भी जिम्मेदार रहा. पुल ना होने की वजह से कई बार यहां शादियां भी टल चुकी हैं. कोई भी अपनी बेटी देने को तैयार नहीं होता था.
टिहरी बांध के ऊपर बने इस पुल की कहानी बड़ी दिलचस्प है. इस पुल को बनाने में 14 साल से ज्यादा का वक्त लग चुका है. टिहरी बांध बनने से जहां पूरे देश को फायदा हुआ है. वहीं इस बांध के जरिए कई राज्य को बिजली मिल रही है. लेकिन टिहरी के कुछ गांवों की दूरी जो कुछ किलोमीटर की थी, वो सैकड़ों किमी में तब्दील हो गयी थी.
उत्तराखंड के टिहरी जिले में डोबरा और चांठी दो ऐसे गांव हैं, जिनके बीच दूरी तो आधा किलोमीटर थी. लेकिन पिछले 13 सालों से इन गांवों के बीच आवाजाही ठप पड़ी हुई है. जिसका सबसे बड़ा कारण टिहरी बांध के बाद बनने वाली 42 किलोमीटर की लंबी झील है. टिहरी झील बनने से इन दोनों गांवों के बीच के सभी पुल डूब गए और झील की चौड़ाई इतनी ज्यादा थी कि कोई भी छोटा पुल बनाकर गांव में आवाजाही नहीं की जा सकती थी. आलम यह हो गया था कि लोग चांठी गांव में अपनी लड़कियां भी ब्याहने के लिए तैयार नहीं था. यह कहावत आम हो गई थी कि जहां रास्ता नहीं, वहां रिश्ता नहीं.
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2006 में शुरू हुआ था पुल का निर्माण कार्य
डोबरा और चांठी क्षेत्र के ग्रामीणों को इस पुल का इंतजार सालों से था. टिहरी जिला मुख्यालय से प्रतापनगर क्षेत्र को जाने के लिए लोगों को 100 किलोमीटर अधिक चलना पड़ता था. कई घंटों के सफर के बाद लोग टिहरी से प्रताप नगर पहुंचते थे. लिहाजा इस झूला पुल की जरुरत को देखते हुए साल 2006 से पुल का निर्माण शुरू किया गया. जो अब लगभग बनकर तैयार हो गया है. उम्मीद है कि जनवरी 2020 में जनता की आवाजाही के लिए पुल को खोल दिया जाएगा. हालांकि टिहरी झील पर बन रहे डोबरा-चांठी पुल के दोनों एबेडमेंट जोड़ दिए गए हैं. पुल पर अब फाइनल फिनिशिंग का काम चल रहा है. जनवरी 2020 में पुल पर वाहनों की आवाजाही शुरू हो जाएगी. इस पुल के बनने से प्रतापनगर ब्लॉक की तीन लाख से ज्यादा की आबादी को सुविधा मिलेगी. साथ ही नई टिहरी से प्रतापनगर जाने के लिए पांच घंटे के बजाए मात्र दो घंटे का ही समय लगेगा.