उत्तराखंड में प्रकृति आपदा का संकेत देती रही है. देहरादून:उत्तराखंड में आपदों का भयावह रूप पूरी दुनिया देख चुकी है. जिसने पूरी कायनात के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया. एक ओर जोशीमठ शहर आज एक बड़ी त्रासदी की ओर गतिमान है, वहीं जोशीमठ के इर्द गिर्द घटी घटनाओं के पन्ने पलटकर देखें तो काफी सारी बातों में समानता देखने को मिलती हैं. यही समानता उन परिणामों की चेतावनी भी देती हैं जो उत्तराखंड ने कालांतर में देखी गई हैं. ऐसा ही मंजर साल 1970 में लोगों ने देखा, जब चमोली जिले का नाम जिस चमोली शहर के नाम पर पड़ा था वही नेस्तनाबूद हो गया था.
अलकनंदा घाटी ने देखा तबाही का मंजर:उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का इतिहास पुराना है. यदि हम इतिहास उठा कर सभी घटनाओं के पैटर्न पर बारीकी से अध्ययन करें तो इन घटनाओं का एक दूसरे से संबंध के साथ साथ इनसे होने वाले नुकसान का भी अंदाजा लगाया जा सकता है. फिलहाल बात इस समय जोशीमठ आपदा को लेकर हो रही है, जहां भू धंसाव और धरती पर पड़ रही दरारों से एक पूरा शहर धीरे धीरे नेस्तनाबूद होने की कगार पर पहुंच गया है. अलकनंदा के सीधे ऊपर ढलान पर बसे जोशीमठ की जमीन धीरे-धीरे नीचे की ओर धंस रही है.
अलकनंदा नदी का रुक गया था प्रवाह:भले ही जोशीमठ में राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक का पूरा अमला इन्वेस्टिगेशन और जोशीमठ को बचाने में जुटा है, लेकिन हमें केवल अपनी तकनीक विश्वास नहीं करना है, बल्कि इतिहास से भी कुछ सबक सीखने की जरूरत है. मुसीबत का अंदाजा पिछली घटनाओं से लगाया जा सकता है. जिस तरह से अभी जोशीमठ शहर धीरे-धीरे पाताल में समा रहा है, हमें साल 1970 की उस घटना को जरूर याद करना चाहिए जब 20 और 21 जुलाई को अलकनंदा का प्रवाह कुछ देर के लिए रुक गया था और उसके बाद पूरी अलकनंदा घाटी ने तबाही का मंजर देखा था.
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जानिए क्या हुआ तब:HNB गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि साल 1970 की 20 और 21 जुलाई को लगातार कई घंटों तक हुई मूसलाधार बारिश और अतिवृष्टि के चलते जोशीमठ शहर के दोनों तरफ अलकनंदा नदी की सहायक नदियों में भारी भूस्खलन हुआ. अलकनंदा की इन सहायक नदियों में गोरस्यूं, जोशीमठ और कुंवारी पास में तकरीबन एक सप्ताह तक हुई लगातार भारी बारिश के चलते अलकनंदा की जितनी भी सहायक जल धाराएं थी, जिसमें ढाकनाला, कर्मनासा, गरुड़ गंगा, पाताल गंगा, बेलाकुची इन सभी जल धाराओं से भारी गाद और मलबा अलकनंदा में आया और इस घटना ने तकरीबन 4 अलग अलग जगहों पर अलकंदा के प्रवाह को रोका.
चमोली शहर हुआ था तबाह:इस त्रासदी का मंजर इतना भयावह था कि इसने कई ऐतिहासिक शहरों का नाम-ओ-निशान मिटा दिया और लोग आज उन्हें भूल गए हैं. प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि उस समय सबसे बड़े बाजार का नाम टंगणी था. लेकिन 1970 में आई इस आपदा ने इस बाजार को इतिहास के पन्नों तक सीमित कर दिया. यही नहीं पूरा चमोली जिला चमोली शहर के नाम पर था. लेकिन आज आपको चमोली जिला तो मिलेगा, लेकिन चमोली शहर नहीं मिलेगा. क्योंकि 70 की आपदा में पूरा चमोली शहर तहस-नहस हो गया था. जिला मुख्यालय को गोपेश्वर विस्थापित करना पड़ा. प्रोफेसर बिष्ट बताते हैं कि इस घटना में 14 पुल बह गए थे.
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पुरानी घटनाएं देती रही संकेत:HNB गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि अपर हिमालय क्षेत्र में अलकनंदा केचमेंट में लगातार कई सदियों से चौंकाने वाली भौगोलिक घटनाएं देखने को मिली हैं. उन्होंने बताया कि तकरीबन सौ से डेढ़ सौ साल से पुरानी एक घटना का जिक्र होता है, जिसे अलकनंदा ट्रेजडी के नाम से जाना जाता है. उन्होंने बताया कि अलकनंदा की बिरही गंगा(Birahi Ganga)ट्रिब्यूटी में 1893 के आसपास एक बहुत बड़ी भूकंपीय घटना हुई थी. जिसकी वजह से हुए भूस्खलन के चलते एक गौना ताल का निर्माण हो गया था. प्रोफेसर बिष्ट बताते हैं कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान की यह बेहद ध्यान खींचने वाली घटना थी. उस समय अंग्रेजी शासकों ने इस घटना पर काफी सूझबूझ दिखाई थी.
अंग्रेजों ने किए थे अथक प्रयास:प्रोफेसर बिष्ट बताते हैं कि अलकनंदा अपर कैचमेंट में एक भौगोलिक घटना के चलते बनी यह कृत्रिम झील कई स्क्वायर किलोमीटर में फैली हुई थी. इस घटना में अंग्रेजी शासकों द्वारा दिखाई गई सूझबूझ और बेहतरीन मैनेजमेंट का जिक्र एल्फिन्स्टन गैजेटियर (The Elphinstone Gazetteer) में भी है. उस समय तकनीकी का विकास न होने के चलते भी अंग्रेजों ने ऋषिकेश से लेकर बेलाकुची तक नदी के किनारे किनारे एक संचार तंत्र स्थापित किया था. टेलीफोन लाइन बिछाई गई और पल-पल की अपडेट एडमिनिस्ट्रेशन अपने पास रखता था. अंग्रेजों ने अपने अथक प्रयासों के चलते इस झील को काफी हद तक खत्म करने की कोशिश भी की थी. लेकिन जिस बात के खतरे का अंदेशा अंग्रेजों को था वो देश की आजादी के बाद 1970 में देखने को मिला. जब अलकनंदा घाटी में भारी तबाही मची और उसी दौरान यह गौना झील जो कि एक लैंडस्लाइड झील थी वो भी टूट गई और फिर जो हुआ वो इस इलाके में पहले कभी नहीं हुआ था.
जोशीमठ भू धंसाव को लेकर चिंता:आज जिस तरह के हालात जोशीमठ में हैं वह किसी से छिपे नहीं हैं. जोशीमठ शहर की अलकनंदा की ओर धंसने की रफ्तार पिछले एक साल में क्या है, बीते दिनों इसरो की रिपोर्ट को सबने देखा है. सरकार भले ही रिपोर्ट छुपा के तमाम तकनीकी एजेंसियों से इन्वेस्टमेंट करवा कर सबकुछ ठीक होने का दावा कर रही हो, लेकिन भविष्य क्या होगा ये कोई नहीं जानता. इतिहास गवाह है कि प्रकृति की विनाशलीला जब होती है, इंसानी हस्तक्षेप ही सबसे पहले सामने आते हैं. इसलिए समय रहते सजग रहने की जरूरत है.