देहरादून: कहते हैं कि किसी प्रदेश के विकास को उसकी राजधानी से ही महसूस किया जा सकता है. इसी तरह राजनीतिक दलों की पकड़ को समझना हो तो भी राजधानी के हालात काफी कुछ बयां कर देते हैं. उत्तराखंड में साल 2017 के दौरान भाजपा के प्रचंड बहुमत की पटकथा को भी राजधानी देहरादून से ही लिखा गया. राजधानी से बदलाव की बयार ऐसी बही की 10 में से 9 सीटों पर भाजपा की विजय हुई. देखिये रिपोर्ट...
सरकार और प्रशासन का केंद्र: राज्य की व्यवस्था का केंद्र रहने वाली राजधानी हर लिहाज से प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण होती है. राजनीति से लेकर सामाजिक और आर्थिक व्यवस्थाओं को भी राजधानी से ही स्वरूप मिलता है. लिहाजा राजधानी का महत्व राजनीतिक दल और राजनेता अच्छी तरह से जानते हैं. उत्तराखंड में 2017 में सत्ता के बदलाव को भी राजधानी से ही महसूस किया गया. प्रदेश की 70 विधानसभाओं में से 10 विधानसभाए देहरादून जिले में हैं.
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बीजेपी के हिस्से में 9 सीटें: 2017 में भाजपा ने एक तरफा बढ़त बनाते हुए 10 में से 9 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी. देखा जाए तो कांग्रेस के गढ़ चकराता को छोड़कर सभी जगह बड़े अंतर से भगवा काबिज हो गया और इसी की बदौलत भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत तक पहुंचने में कामयाब रही, लेकिन 2022 में भाजपा के लिए इस ऐतिहासिक प्रदर्शन को दोहराना बेहद चुनौतीपूर्ण है. दरअसल इस बार समीकरण काफी बदल गए हैं.
दो सीटों पर बढ़ी बीजेपी की मुश्किलें: 2017 में भाजपा के इस प्रदर्शन के बावजूद 2022 में दोबारा इस प्रदर्शन को दोहराना पार्टी के लिए मुश्किल होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि कैंट विधानसभा से विधायक हरबंस कपूर के निधन के बाद यह सीट भाजपा के लिए कमजोर पड़ती दिख रही है. वहीं, दूसरी तरफ त्रिवेंद्र सिंह रावत का डोईवाला विधासभा सीट से नहीं उतरने से भी इस सीट पर भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं.
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चकराता सीट पर कांग्रेस का कब्जा: चकराता विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रीतम सिंह राज्य बनने के बाद से अब तक लगातार जीते रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस के गढ़ को मजबूत किले में तब्दील किया है. इस किले को 2017 में भी भाजपा नहीं ढाह पाई. वहीं, विकासनगर सीट पर भाजपा के मुन्ना सिंह चौहान ने जीत हासिल की. सहसपुर विधानसभा पर भाजपा के सहदेव पुंडीर विधायक है. कैंट विधानसभा से हरबंस कपूर प्रदेश बनने से पहले से ही विधायक रहे. 2017 में भी उन्होंने जीत हासिल की, लेकिन हाल ही में उनका निधन हो चुका है.
भाजपा के लिए 2017 को दोहराना बड़ी चुनौती इन सीटों पर बीजेपी की जीत: धर्मपुर विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ने वाले विनोद चमोली ने कांग्रेस के पूर्व मंत्री दिनेश अग्रवाल को हराकर भाजपा का झंडा फहराया. रायपुर विधानसभा से कांग्रेस से भाजपा में आए उमेश शर्मा काऊ ने चुनाव जीतकर भाजपा का भगवा लहराया. मसूरी विधानसभा से गणेश जोशी ने एक बार फिर भाजपा को जीत दिलाई. राजपुर सीट आरक्षित सीट है और यहां पर पूर्व मंत्री खजान दास ने कांग्रेस के राजकुमार को हराकर भाजपा का झंडा फहराया.
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सरकार विरोधी लहर का क्या होगा असर: उधर सरकार विरोधी लहर के कारण बाकी सीटों पर भी मुश्किलें बेहद ज्यादा है. इस तरह 2022 में मसूरी विधानसभा को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी 9 सीटों पर कांग्रेस की भाजपा को इस बार कड़ी टक्कर होगी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सूर्यकांत धस्माना की मानें तो इस बार हालात 2017 की तुलना में ठीक उलट होंगे और कांग्रेस देहरादून जिले से सभी सीटें जीतकर प्रदेश भर में संदेश देगी.
बेरोजगारी, अवैध खनन और आंदोलन ने बढ़ाई टेंशन: देहरादून में पिछले कुछ समय में बेरोजगार युवाओं से लेकर सरकारी विभाग के कर्मचारियों और संविदा कर्मियों के जबरदस्त आंदोलन देखने को मिले हैं. यही नहीं महंगाई से लेकर सरकार पर अवैध खनन और दूसरे बड़े गंभीर आरोप तक पर भी हुए विरोधों को राजधानी की जनता ने करीब से देखा है. लिहाजा इन सभी गतिविधियों का भी राजधानी के तमाम सीटों पर बेहद ज्यादा असर पड़ने की संभावना है. हालांकि भाजपा 2022 में भी चुनावी परिणामों को दोहराने का दावा कर रही है.
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जानिए उत्तराखंड में मतदाताओं की स्थिति:प्रदेश के 13 जिलों में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 80 लाख है. इसमें 60% मतदाता अकेले देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और नैनीताल से हैं. इन 4 जिलों में करीब 48 लाख मतदाता हैं. देहरादून जिले में 14 लाख 10 हजार के करीब मतदाता है. देहरादून जिले में ग्रामीण से लेकर शहरी परिवेश दिखाई देता है. जिले में देहरादून शहर, राजपुर, धर्मपुर, रायपुर सहित विकासनगर, सहसपुर, डोईवाला और ऋषिकेश क्षेत्र में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है. जिले में चकराता विधानसभा अनुसूचित जनजाति तो राजपुर विधानसभा आरक्षित सीट है. पलायन के चलते पहाड़ी वोटर इन 10 विधानसभाओं में बड़ी संख्या में मौजूद हैं.