देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जितना गैरों यानी कांग्रेस के निशाने पर हैं, उतना ही अपनों के निशाने पर भी हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सत्ता संभलाने के बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कई फैसलों पर सवाल खड़े कर चुके हैं. हाल फिलहाल की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देहरादून में बीते हुए बेरोजगारों पर हुए लाठीचार्ज को भी गलत बताया है. सरकार ने भले ही इस मामले में कुछ खुलकर नहीं कहा हो. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तो पुलिस की इस कार्रवाई के लिए युवाओं से माफी भी मांग चुके हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कुछ बयान इन दिनों उत्तराखंड की राजनीति में चर्चा के विषय बने हुए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने जिस तरह से बेरोजगारों पर पुलिस के लाठीचार्ज का गलत बताते हुए माफी मांगी, उसने जहां वो प्रदेश में अपनी एक अलग छवि दिखाने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं, अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के इस तरह के बयान बीजेपी सरकार को ही मुश्किलें में डालने वाले हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयानों से साफ पता चलता है कि वो सरकार की कार्यप्रणाली से खुश नहीं हैं.
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हालांकि उनके इस बयान को इस बार आगामी लोकसभा चुनाव 2025 से भी जोड़कर देखा जा रहा है. उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटें हैं और पांचों ही सीटों पर युवाओं की निर्णायक भूमिका में है. ऐसे में यदि युवा बीजेपी से छिटक गया तो लोकसभा चुनाव जीतना पार्टी के लिए मुश्किल हो जाएगा. वहीं, चर्चाएं इस तरह की भी है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बार पौड़ी से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. इसीलिए अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए भी युवाओं से लाठीचार्ज के मुद्दे पर माफी मांगने से गुरेज नहीं कर रहे हैं.
सरकार को घेरने को मौका नहीं छोड़ा: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहली बार अपनी सरकार के खिलाफ कोई इस तरह का बयान नहीं दिया है, बल्कि इससे पहले भी वो कई बार अपने बयानों और सवालों से सरकार को बैकफुट पर ला चुके हैं. हाल ही में त्रिवेंद्र सिंह रावत को जोशीमठ संकट को लेकर दिया बयान भी काफी सुर्खियों में आया था, जिसमें उन्होंने सरकार के उस फैसले पर सवाल खड़े किए थे, जिसमें जिला विकास प्राधिकरण (डीडीए) को खत्म किया गया था. जिला विकास प्राधिकरण का फैसला त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने कार्यक्राल में लिया है, जिस बाद में धामी सरकार ने बदल दिया था.
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