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महाशिवरात्रि पर शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा

आज महाशिवरात्रि है. शिवरात्रि महापर्व का सनातन परंपराओं में एक विशेष महत्व है. सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हैं. श्रद्धालु मंदिरों के बाहर लाइन लगा कर अपनी बारी का इंतजार करते दिखाई दिए.

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महाशिवरात्रि

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Published : Mar 11, 2021, 1:33 PM IST

Updated : Mar 11, 2021, 2:22 PM IST

देहरादून/श्रीनगर:आज महाशिवरात्रि है. शिवरात्रि महापर्व का सनातन परंपराओं में एक विशेष महत्व है. विशेष रुप से देवभूमि उत्तराखंड जोकि देवों की भूमि के साथ-साथ तपोभूमि के नाम से भी विख्यात है. इस पावन धरती पर भोले बाबा, शंभू रूप में टपकेश्वर महादेव में विराजमान है. यहीं नहीं, हिमालय की गोद में बसे विश्वविख्यात केदारनाथ धाम में भी महादेव भोले बाबा भक्तों के कल्याण के लिए विराजमान है. तीर्थ नगरी हरिद्वार में गंगा किनारे दक्षेश्वर के रूप में भोले बाबा की ससुराल विश्व प्रसिद्ध है. इसके साथ ही केदारघाटी में त्रिजुगीनारायण जहां पर भोले बाबा के विवाह समारोह के फेरे आयोजित होने की पौराणिक गाथा भी धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है. ऐसे देवभूमि में शिवरात्रि महापर्व का विशेष महत्व माना जाता है.

महाशिवरात्रि पर शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा.

महाशिवरात्रि का पर्व मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

फाल्गुन मास त्रयोदशी की रात्रि से ही महाशिवरात्रि का पर्व मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लिहाजा त्रयोदशी की रात्रि 12:00 बजे से ही बाबा को श्रद्धालुओं द्वारा जल चढ़ाए जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. शिवरात्रि के पर्व पर ब्रह्म मुहूर्त में सबसे पहले बाबा का महा विषयक पंचवार्षिक किया जाता है. इसके बाद बाबा का सिंगार कर उनकी प्रात: काल आरती भी की जाती है. इसके साथ ही भोले बाबा को कई प्रकार की उनकी प्रिय सामग्री का भोग लगाया जाता है. जिसके बाद भोले बाबा के दरबार में भजन कीर्तन का सिलसिला शुरू हो जाता है और शिवरात्रि पर विशेष पूजा आराधना के बाद तमाम श्रद्धालुओं को को प्रसाद वितरित किया जाता है. शिवरात्रि के महापर्व पर विशेष आरती का आयोजन किया जाता है. बाबा के दर्शन करने और उनको एक लोटा जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालु न सिर्फ देहरादून बल्कि दूसरे प्रांतों से भी यहां पहुंचते हैं.

टपकेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर विशेष अनुष्ठान का आयोजित

टपकेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं. यूं तो श्रावण माह और साल के 365 दिन ही बाबा की पूजा आराधना का सिलसिला निरंतर जारी रहता है. बावजूद इसके शिवरात्रि के महापर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन भोले बाबा की विशेष पूजा आराधना की जाती है. इस दिन बड़ी तादाद में श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं. वहीं, टपकेश्वर मंदिर परिसर में एक विशेष मेले का भी आयोजन किया जाता है. यह मेला एक हफ्ता तक आयोजित होता है.

पौराणिक मान्‍यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव पहली बार प्रकट हुए थे. मान्‍यता है कि शिव अग्नि ज्‍योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे, जिसका न आदि था और न ही अंत. शास्त्रों के अनुसार भोले बाबा के अभिषेक का वस्तु अलग-अलग है. लेकिन भगवान शंकर इतने दयालु है कि श्रद्धा मात्र से चढ़ाया गया एक लोटा जल ही भोले बाबा को प्रसन्न कर सकता है. जिससे सारी मनोकामना पूर्ण होती है. हालांकि भोले बाबा का प्रिय वस्तु पंचामृत, भांग, धतूरा, बेल पत्री और पंच पुष्प है. जो अर्पित किया जाता है. पूजा करने की विधि के अनुसार सुबह सबसे पहले जल में काले तिल को मिलाकर स्नान करना चाहिए. इसके बाद भोले बाबा के शिवलिंग पर दूध, शहद से अभिषेक कराना चाहिए. अभिषेक करते समय ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए.

पढ़ें:महाशिवरात्रि: हर-हर महादेव के जयकारों के बीच श्रद्धालुओं ने लगाई पुण्य की डुबकी

टपकेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक मान्यताएं

देहरादून स्तिथ टपकेश्वर महादेव मंदिर की कई पौराणिक मान्यताएं है. मान्यता है कि सतयुग में गुरु द्रोणाचार्य ने भोले बाबा की आराधना, तमसा नदी के किनारे टपकेश्वर महादेव मंदिर वाले स्थान पर गुफा में की थी. धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि भोले बाबा भू-मार्ग से यहां पहुंच गुरु द्रोणाचार्य को धनुर विद्या का ज्ञान दिया करते थे. इसके बाद दूसरे युग यानि त्रेता युग में टपकेश्वर के स्थान पर गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने तप किया और जरूरत पड़ने पर जब उन्होंने भोले बाबा की आराधना की तो भगवान से अश्वत्थामा को दूध की धारा का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था. जिसके बाद यह स्थान दूधेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात हुआ. इसके बाद तीसरे युग यानि द्वापर युग में जब अन्य भक्तों ने बाबा की पूजा आराधना की और समय बदला तो फिर टपकेश्वर महादेव के इस पावन धाम में पहाड़ से टपकने वाला दूध का स्वरूप बदल गया और अब मौजूदा समय में पहाड़ से भोले बाबा के ऊपर पानी की बूंदे टपकती है. जिस मंदिर को अब टपकेश्वर मंदिर के रूप से जाना जाता है.

श्रीनगर में भी महाशिवरात्रि की धूम दिखाई दी

श्रीनगर में महाशिवरात्रि की धूम रही. सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहा. लोग प्रातः काल ही मंदिरों के बाहर लाइन लगा कर अपनी बारी का इंतजार करते दिखाई दिए. श्रद्धालुओं ने भगवान शिव को दूध, घी, गंगा जल, बेल पत्र सहित पंचामृत चढ़ाया.

श्रीनगर के कमलेस्वर, नागेस्वर, किकलेस्वर मंदिर में श्रद्धालु सुबह से ही भगवान शिव के दर्शन के लिए एकत्र होते रहे. कमलेस्वर मंदिर में भीड़ इतनी थी कि लोग लंबी लाइन में खड़े रहे. इस दौरान भोर होते ही मंदिर के महंत आसुतोष पूरी ने भगवान शिव की पूजा अर्चना की तत्पश्चात अन्य लोगों ने भगवान शिव के दर्शन किये लोग दूर दराज से कमलेस्वर मंदिर में आए.

मंदिर के महंत आसुतोष पूरी ने बताया कि शिव रात्रि का हिन्दू धर्म मे बेहद महत्वपूर्ण स्थान है. इस दिन जो भी शिव भक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना करता है उस भक्त कि हर इच्छा भगवान शिव पूरी करते है. उन्होंने बताया कि लोग दूर दराज से भगवान कमलेस्वर के दर्शन करने के लिए यहां आते है.

Last Updated : Mar 11, 2021, 2:22 PM IST

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