देहरादून/श्रीनगर:आज महाशिवरात्रि है. शिवरात्रि महापर्व का सनातन परंपराओं में एक विशेष महत्व है. विशेष रुप से देवभूमि उत्तराखंड जोकि देवों की भूमि के साथ-साथ तपोभूमि के नाम से भी विख्यात है. इस पावन धरती पर भोले बाबा, शंभू रूप में टपकेश्वर महादेव में विराजमान है. यहीं नहीं, हिमालय की गोद में बसे विश्वविख्यात केदारनाथ धाम में भी महादेव भोले बाबा भक्तों के कल्याण के लिए विराजमान है. तीर्थ नगरी हरिद्वार में गंगा किनारे दक्षेश्वर के रूप में भोले बाबा की ससुराल विश्व प्रसिद्ध है. इसके साथ ही केदारघाटी में त्रिजुगीनारायण जहां पर भोले बाबा के विवाह समारोह के फेरे आयोजित होने की पौराणिक गाथा भी धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है. ऐसे देवभूमि में शिवरात्रि महापर्व का विशेष महत्व माना जाता है.
महाशिवरात्रि का पर्व मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
फाल्गुन मास त्रयोदशी की रात्रि से ही महाशिवरात्रि का पर्व मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लिहाजा त्रयोदशी की रात्रि 12:00 बजे से ही बाबा को श्रद्धालुओं द्वारा जल चढ़ाए जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. शिवरात्रि के पर्व पर ब्रह्म मुहूर्त में सबसे पहले बाबा का महा विषयक पंचवार्षिक किया जाता है. इसके बाद बाबा का सिंगार कर उनकी प्रात: काल आरती भी की जाती है. इसके साथ ही भोले बाबा को कई प्रकार की उनकी प्रिय सामग्री का भोग लगाया जाता है. जिसके बाद भोले बाबा के दरबार में भजन कीर्तन का सिलसिला शुरू हो जाता है और शिवरात्रि पर विशेष पूजा आराधना के बाद तमाम श्रद्धालुओं को को प्रसाद वितरित किया जाता है. शिवरात्रि के महापर्व पर विशेष आरती का आयोजन किया जाता है. बाबा के दर्शन करने और उनको एक लोटा जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालु न सिर्फ देहरादून बल्कि दूसरे प्रांतों से भी यहां पहुंचते हैं.
टपकेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर विशेष अनुष्ठान का आयोजित
टपकेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं. यूं तो श्रावण माह और साल के 365 दिन ही बाबा की पूजा आराधना का सिलसिला निरंतर जारी रहता है. बावजूद इसके शिवरात्रि के महापर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन भोले बाबा की विशेष पूजा आराधना की जाती है. इस दिन बड़ी तादाद में श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं. वहीं, टपकेश्वर मंदिर परिसर में एक विशेष मेले का भी आयोजन किया जाता है. यह मेला एक हफ्ता तक आयोजित होता है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव पहली बार प्रकट हुए थे. मान्यता है कि शिव अग्नि ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे, जिसका न आदि था और न ही अंत. शास्त्रों के अनुसार भोले बाबा के अभिषेक का वस्तु अलग-अलग है. लेकिन भगवान शंकर इतने दयालु है कि श्रद्धा मात्र से चढ़ाया गया एक लोटा जल ही भोले बाबा को प्रसन्न कर सकता है. जिससे सारी मनोकामना पूर्ण होती है. हालांकि भोले बाबा का प्रिय वस्तु पंचामृत, भांग, धतूरा, बेल पत्री और पंच पुष्प है. जो अर्पित किया जाता है. पूजा करने की विधि के अनुसार सुबह सबसे पहले जल में काले तिल को मिलाकर स्नान करना चाहिए. इसके बाद भोले बाबा के शिवलिंग पर दूध, शहद से अभिषेक कराना चाहिए. अभिषेक करते समय ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए.