देहरादून: विधानसभा सचिवालय में हुई बैक डोर भर्ती मामले (backdoor recruitment case in uttarakhand) में नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब उत्तराखंड राज्य में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल (Premchand Agarwal in backdoor recruitment case) को हटाए जाने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है. मामले में कांग्रेस भाजपा को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए कार्यवाही करने की बात कह रही है. वहीं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता खुद ही इस बात को कह रहे हैं कि अगर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष की संलिप्तता मामले में रही है तो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए.
विधानसभा में हुई बैकडोर भर्ती मामले (backdoor recruitment case in uttarakhand) में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूडी ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए साल 2012 से 2022 के बीच हुए सभी बैक डोर भर्तियों को निरस्त कर दिया था. जिसके बाद ये मामला नैनीताल हाईकोर्ट पहुंचा. पहले नैनीताल हाईकोर्ट की एकल बैंच ने विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर रोक लगा दी था. जिसके बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को पलटते हुए विधानसभा अध्यक्ष के आदेश को सही ठहराया.
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कोर्ट के फैसले के बाद अब धामी सरकार के वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जो तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष थे वो फिर से चर्चाओं में हैं. प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में भर्ती प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए बैकडोर में भर्ती कर अपने व अपनी पार्टी के नेताओं के रिश्तेदारों को एक प्रार्थना पत्र के आधार पर नौकरियां देने का काम किया. ऐसे में कार्यवाही सिर्फ नौकरी पाने वालों पर हुई, जबकि नियोक्ता अभी भी सरकार में मंत्री बने हुए हैं. अब सबाल उठ रहा है कि क्या प्रेमचन्द्र अग्रवाल को नैतिकता के आधार पर अपना इस्तीफा नहीं देना चाहिए?