देहरादून:हर साल उत्तराखंड के जंगलों की आग से निपटना वन महकमे के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. वन विभाग आग से निपटने के लिए रणनीति तो बनाता है, लेकिन दावानल के समय ये रणनीति धरी की धरी रह जाती है. वहीं इस बार मॉनसून में देरी होने की खबरों के चलते में वनाग्नि पर काबू पाने की चुनौतियां विगत वर्षों की तुलना वन विभाग के ऊपर बढ़ती नजर आ रही है.
वन महकमे की मुकम्मल तैयारियां:हालांकि बारिश देरी से होने की संभावनाओं को देखते हुए फॉरेस्ट विभाग द्वारा पहले 15 फरवरी से 15 जून तक राज्य के सभी 13 जनपद डिविजनों को अलर्ट जारी किया जा चुका है. ताकि वनाग्नि नियंत्रण के लिए सभी तरह की आवश्यक व्यवस्थाओं को समय रहते मुकम्मल किया जा सके. गौर हो कि अच्छी खबर यह भी है कि अप्रैल माह के पहले सप्ताह के उपरांत बावजूद भी प्रदेश के किसी वन क्षेत्र में अभी कोई वनाग्नि की बड़ी घटना सामने नहीं आई है.
जबकि विगत कुछ वर्षों में उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग घटनाओं से करोड़ों की वन संपदा को नुकसान हुआ है. यही कारण रहा है कि 2016 से 2021 तक राज्य के घने जंगलों में आग की घटनाओं पर काबू पाने के लिए भारतीय वायुसेना तक से मदद लेनी पड़ी. हालांकि किसी भी वनाग्नि को काबू पाने में बारिश ही सबसे कारगर साबित रहती है.
सूचना तंत्र मजबूत:जानकारी अनुसार उत्तराखंड वन विभाग पुराने एक दशक के फायर आंकड़ों के मद्देनजर आग पर काबू पाने की अलग-अलग तकनीक को बेहतर करने में जुटा है. इसके लिए उत्तराखंड पुलिस के फायर सर्विस और आपदा राहत दल SDRF टुकड़ियों से बेहतर सामंजस्य बनाकर वनों में आग पर समय रहते काबू पाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से नियंत्रण पाने के लिए सामंजस्य बना रहा है. वन मुख्यालय द्वारा वनाग्नि की सूचना समय से संबंधित डिवीजन के अलग-अलग रेंज को मिल जाए, इसके लिए सोशल मीडिया व्हाट्सएप-ईमेल को भी पहले के मुकाबले मजबूत किया जा रहा है.
पढ़ें-उत्तराखंड: जंगलों में लगी आग, लाखों की वन संपदा जलकर राख
आग लगने की घटनाएं:बता दें कि मार्च माह में जंगलों में पतझड़ शुरू होने के बाद पेड़ों पर नए पत्ते आते हैं और जमीन पर सूखे पत्ते होने से आग लगने का खतरा बढ़ जाता है. जानकारी के अनुसार अधिकांश घटनाओं में वन इलाकों में नई घास-पत्ती मॉनसून में उत्पन्न हो इसको लेकर पशुओं के कारोबार से जुड़े लोग भी जंगलों में आग लगाते आये हैं. हालांकि इन सब पर अंकुश लगाने के लिए लगातार संबंधित विभाग वर्षों से प्रयासरत है, लेकिन इसके बावजूद भी जंगलों में आग मुख्यतः अराजक तत्वों द्वारा लगाई जाती है.
साल दर साल आग से नुकसान:गौर हो कि पिछले दस सालों में वनाग्नि का आंकड़ों की बात करें तो साल 2012- 2823.89 हेक्टेयर वन आग से धधके, साल 2013 में 384.05 हेक्टेयर वन संपदा आग की भेंट चढ़ी. साल 2014 में 930.33 हेक्टेयर वनों को नुकसान पहुंचा. साल 2015 में 701.61 हेक्टेयर वन जलकर राख हो गया. साल 2016 में 4433.75 हेक्टेयर वन संपदा जली, साल 2017 में 1244.64 हेक्टेयर, साल 2018 में 4480.04 हेक्टेयर, साल 2019 में 2981.55 हेक्टेयर, साल 2020 में 172.69 हेक्टेयर, साल 2021 में 3970 हेक्टेयर, साल 2021 में 3970 हेक्टेयर वन संपदा आग की भेंट चढ़ी.