देहरादून: आगामी 2022 विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं का एक पार्टी का दामन छोड़ने और दूसरे दामन को थामने का सिलसिला शुरू हो गया है. अभी फिलहाल छोटे नेता अपने दलों को छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं. ऐसे में चर्चाएं इस बात की भी हैं कि चुनाव से पहले कई बड़े चेहरे भी दलबदल कर सकते हैं. आगामी चुनाव में दल बदल का पार्टियों को कितना फायदा मिलेगा? चुनाव से पहले आखिर राजनीति में ऐसा क्यों होता है?
उत्तराखंड में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. जिसके कारण राजनीतिक दल पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं. वहीं, नेता भी अपने भविष्य को सुरक्षित करने की जद्दोजहद में जुट गये हैं. जिसकी बानगी दल बदल के रूप में सामने आ रही है. लंबे समय से एक पार्टी जमे हुए छोटे से बड़े नेता दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं. आगामी विधानसभा चुनाव में अभी तीन से चार महीने का वक्त है, ऐसे में राजनीतिक पार्टियां अभी से ही अपने दलों को मजबूत करने की कवायद में जुटी हुई हैं. जिसके लिए अन्य दलों के नेताओं को अपने दलों में शामिल करने की जुगत जारी है.
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किसी भी नेता के एक दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल होने की घटना एक सामान्य प्रक्रिया है. किसी भी चुनाव के दौरान ऐसी स्थितियां राजनीतिक गलियारों में देखने को मिलती हैं. जिसका असर वर्तमान समय में उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है. हालांकि, वही नेता दूसरे दल में शामिल होते हैं जिन्हें या तो पार्टी में तवज्जो नहीं मिलती, या फिर उन्हें लगता है कि चुनाव के दौरान उन्हें पार्टी से टिकट नहीं मिल पाएगा. जिसके चलते वे दूसरे दल में शामिल हो जाते हैं. उत्तराखंड में वर्तमान समय में तमाम बीजेपी के नेता कांग्रेस व अन्य दलों में शामिल होते दिखाई दे रहे हैं.
शुरू हुआ दल-बदल का खेल: हाल ही में आरएसएस नेता महेंद्र सिंह नेगी समेत उनके सैंकड़ों समर्थकों ने कांग्रेस का हाथ थामा. महेंद्र सिंह नेगी (गुरुजी) और उनके समर्थकों को पूर्व सीएम हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कांग्रेस की सदस्यता दिलायी. वहीं, मंगलवार को बीजेपी से इस्तीफा देने के बाद विनोद चौधरी ने भी अपने कई समर्थकों के साथ कांग्रेस ज्वॉइन की. इसके अलावा बीजेपी युवा मोर्चा के दर्जनों कार्यकर्ता भी कांग्रेस में शामिल हुए. कांग्रेस अब इन नेताओं के दम पर आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के साथ ही सरकार बनाने का दावा कर रही है. वहीं, अन्य दलों में छोटे स्तर पर दल बदल का खेल जारी है.
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संभावनाओं की तलाश में नेता करते हैं दलबदल:नेताओं के दूसरे दलों में शामिल होने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि आगामी चुनाव के दृष्टिगत दिसंबर में आचार संहिता लग रही है. ऐसे में समय बहुत कम है. जिसके चलते नेताओं में भगदड़ शुरू हो गई है. नेता संभावनाओं को देखते हुए दूसरे दलों में शामिल होते हैं. हालांकि, अभी फिलहाल छोटे नेता अन्य दलों में शामिल हो रहे हैं. लेकिन आचार संहिता लगने से पहले कई बड़े नेताओं के भी दलबदल करने के आसार हैं. यही नहीं, चर्चाएं इस बात की भी थी कि जो नेता साल 2016 में कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे वो नेता कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. मगर फिलहाल कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के रहते ऐसा संभव नहीं हो पाएगा.
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'आप' ने CM का चेहरा घोषित कर बंद किए दरवाजे:जय सिंह रावत ने कहा आम आदमी पार्टी ने कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर पार्टी में आने वाले बड़े नेताओं के लिए दरवाजा बंद कर दिया है. ऐसे में तमाम भाजपा नेताओं की कांग्रेस में जाने की संभावना बन रही है. वहीं कांग्रेस के तमाम नेताओं की भी बीजेपी में आने की संभावना है. उन्होंने कहा 5 साल में ये 6 महीने का वक्त आता है, जब नेताओं में भगदड़ देखी जाती है.
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नेताओं का दलबदल करना, एक गलत प्रवृत्ति:वहीं, कांग्रेस प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी ने बताया कि जब कोई नेता पार्टी छोड़ कर किसी अन्य दल में शामिल होता है तो ऐसे में उस पार्टी को नुकसान जरूर होता है. जिस दल में शामिल होता है उस दल को फायदा भी पहुंचाता है. हालांकि, दलबदल करना नेताओं के विचार और उनके सोच पर निर्भर करता है. मथुरा दत्त जोशी ने कहा यह एक गलत प्रवृत्ति है, नेता जिस पार्टी में हैं उस पार्टी के प्रति उनको निष्ठावान होना चाहिए. उस पार्टी को धोखा नहीं देना चाहिए, क्योंकि पार्टी मां समान होती है, जो नेताओं को सम्मान और पहचान दिलाती है. ऐसे में उसकी कद्र करनी चाहिए.
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