देहरादून:हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड राज्य की खूबसूरत वादियां विश्व विख्यात हैं. जहां हर साल लाखों सैलानी इन खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाने पहुंचते हैं. यही नहीं प्रदेश में पहाड़ी क्षेत्रों के साथ ही तमाम ऐसे खूबसूरत स्थान भी हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. देहरादून शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर बसा चकराता इन्हीं में से एक है.
चकराता, देहरादून के जंगलों के बीच बसा एक खूबसूरत पहाड़ी कस्बा है. जहां घूमने के लिए सैलानी लालायित रहते हैं. मगर, चकराता के बारे में एक बात और भी है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. यहां के जंगलों में बिना परमिशन किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. इसे लेकर ईटीवी भारत ने रक्षा मामलों के जानकारों से बात की. जिसमें हमने इसके पीछे की वजहों को जानने की कोशिश की.
दरअसल, देहरादून जिले में स्थित चकराता एक छावनी क्षेत्र है, जो कि सामरिक दृष्टि से भी काफी संवेदनशील है. जिसके कारण यहां बिना परमिशन किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं है. यहां भारतीय सेना की बेहद गोपनीय टूटू रेजिमेंट का कैंप है. टूटू रेजिमेंट भारतीय सैन्य ताकत का वो हिस्सा है जिसके बारे में शायद ही सार्वजनिक तौर पर जानकारियां उपलब्ध होंगी. ये रेजिमेंट बेहद गोपनीय तरीके से काम करती है. यही नहीं, पब्लिक डोमेन में टूटू रेजिमेंट के होने का कोई भी एविडेंस मौजूद नहीं है. यही वजह है कि चकराता एक प्रतिबंधित क्षेत्र है. यहां जाने के लिए विशेष तौर परमिशन ली जाती है. खास तौर पर विदेशी नागरिकों को बिना केंद्रीय गृह मंत्रालय की अनुमति के यहां जाने की इजाजत नहीं है.
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क्या है टूटू रेजीमेंट, कब हुई इसकी स्थापना
साल 1962 में भारत-चीन के बीच जब युद्ध हो रहा था तो उस दौरान तत्कालिक आईबी चीफ भोला नाथ मलिक ने तत्कालिक प्रधानमंत्री स्व० जवाहरलाल नेहरू को एक रेजिमेंट बनाने का सुझाव दिया. जिसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टूटू रेजिमेंट बनाने का फैसला लिया. टूटू रेजिमेंट बनाने का मकसद लद्दाख की भौगोलिक परिस्तिथियों को देखते हुए ऐसी फोर्स तैयार करना था जो चीन के पहाड़ी क्षेत्रों की सीमा में आसानी से दाखिल हो सके. जिसके लिए ऐसे नौवजवानों की जरूरत थी जो उस क्षेत्र से बखूबी वाकिफ हो. ऐसे में निर्णय लिया गया था कि तिब्बत के शरणार्थियों को इस रेजिमेंट में शामिल किया जाये, क्योंकि ये वो लोग हैं जो बचपन से उस क्षेत्र के चप्पे-चप्पे को न सिर्फ जानते हैं, बल्कि यहां के पहाड़ों पर भी आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं.
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क्यों पड़ा टूटू रेजिमेंट नाम
टूटू रेजिमेंट आधिकारिक तौर पर भारतीय सेना का हिस्सा नहीं है. यह रेजिमेंट भारतीय सेना के बजाय रॉ और कैबिनेट सचिव के माध्यम से सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है. टूटू रेजिमेंट की कमान डेप्युटेशन पर आए किसी सैन्य अधिकारी के हाथों में होती है. इस रेजिमेंट के गठन के बाद, भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल सुजान सिंह को पहला आईजी नियुक्त किया गया था. हलांकि रिटायर्ड मेजर जनरल सुजान सिंह दूसरे विश्व युद्ध में 22वीं माउंटेन रेजीमेंट की कमान संभाल चुके थे. जिसके चलते इस नई रेजिमेंट को ‘इस्टैब्लिशमेंट 22’ या टूटू रेजिमेंट भी कहा जाने लगा.