देहरादून:उत्तराखंड में दलित युवक की हत्या के बाद से सूबे की सियायत गरमा गई है. लेकिन इस हत्या से जन्मा प्रश्न जितना दिखता है ये मसला उससे ज्यादा गंभीर है. ये बात हम नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े बयां कर रहे हैं कि दलित विरोधी अपराधों में आज भी निशाने पर दलित महिलाएं ही हैं. इतना ही नहीं महिलाओं से हो रहे अपराधों में भी दलित महिलाओं के शोषण का तुलनात्मक ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. दलितों को लेकर बढ़ रहे अपराधों पर देखिए ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट.
दलित महिलाओं से अपराध में हुई बढ़ोतरी बता दें कि उत्तराखंड में कुल आबादी का करीब 18 प्रतिशत दलित समाज का है. इस लिहाज से अनुसूचित जाति की कुल आबादी 18,92,516 है. आंकड़ों पर हम इतना जोर इसलिए दे रहे है क्योंकि हाल ही में दलित युवक जितेंद्र की हत्या के बाद इसी 18 प्रतिशत आबादी की सुरक्षा और बराबरी का दर्जा देने को लेकर एक बहस शुरू हो गई है. लेकिन यह मसला केवल जितेंद्र की हत्या का नहीं है. बल्कि बहस इस बात को लेकर है कि क्या दलित समाज खुद को सवर्णों के बीच महफूज समझ रहा है.
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इस बात तस्दीक भी आंकड़े ही कर रहे हैं जो दलितों के खिलाफ अपराधों को लेकर रिकॉर्ड किए गए हैं. आंकड़े बताते हैं कि खुद को सुशिक्षित बताने वाले समाज में भी दलितों के खिलाफ अपराध के मामले दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं और सबसे ज्यादा चिंता की बात तो ये है कि आज भी दलित महिलाएं इन अपराधों में सबसे ज्यादा निशाने पर हैं.
उत्तराखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 2016 में 9 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था. जबकि साल 2017 में 16 दलित महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुई. वहीं, साल 2018 में भी 13 दलित महिलाओं की आबरू लूटी गई. जबकि, अनुसूचित जाति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2017-18 में कुल 10 मामले समाने आए हैं. जिसमें दलित महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए थे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो में भी पिछले एक दशक के दौरान रिकॉर्ड आंकड़ों में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ती हुई दिखाई दी है. देशभर में जहां साल 2006 में 03 मामले हर दिन दुष्कर्म के सामने आते थे, तो वहीं साल 2017 आते-आते ये आंकड़ा दोगना हो गया और हर दिन 6 दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले रिकॉर्ड किये जाने लगे.
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खास बात यह है कि उत्तराखंड में कुल दलित विरोधी अपराधों में भी कुछ खास कमी नहीं आ पा रही है. साल 2016 में कुल 114 मामले आए, तो साल 2017 में 126 मामले दलित विरोधी अपराध रिकॉर्ड किए गए. इसी तरह साल 2018 में कुल 96 मामले ऐसे थे. जो दलित अपराध से जुड़े थे. हालांकि, अपराधों को लेकर पुलिस विभाग का मानना है कि ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की जाती है और फौरन मुकदमा पंजीकृत कर मामले की जांच होती है.
वहीं, दलितों के खिलाफ अपराध के मामले पुलिस तक तो पहुंचते है. लेकिन दलितों को समाज में बराबरी का दर्जा न मिलना और भेदभाव करने जैसी शिकायतें लगातार अनुसूचित जाति आयोग के पास आती रहती है. आंकड़ों के अनुसार दलित महिलाओं ने आयोग में पिछले साल कुल 10 मामले दर्ज करवाए हैं. जबकि, कुल शिकायतों की संख्या 311 है. इन शिकायतों में पदोन्नति और नियुक्ति न मिलना, तबादले में सही न्याय ना मिलना, जमीनों की शिकायतें और महिलाओं पर अत्याचार संबंधी शिकायतें शामिल है. अनुसूचित जाति आयोग के सचिव जीआर नौटियाल बताते हैं कि आयोग में कई शिकायतें आती है, जिनके निस्तारण को लेकर आयोग त्वरित कार्रवाई करता है और उनके निस्तारण के सभी प्रयास किए जाते हैं.
बहरहाल, जौनपुर के श्रीकोट गांव में हुए दलित युवक के हत्याकांड मामले के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से लेकर प्रदेश सरकार और पुलिस मामले को सुलझाने में जुट गई है. लेकिन हकीकत ये भी है कि ऐसे मामलों के उजागर होने से पहले न तो सरकार, न पुलिस और न ही कोई दूसरी एजेंसी इन्हें प्राथमिकता देती है. शायद यही कारण है कि देश की आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी दलित समाज को बराबरी का दर्जा नहीं मिल पा रहा है. ये हालात तब है जब देश के संविधान में अनुसूचित जाति वर्ग के खासतौर पर अलग कानून बनाए गए हैं.