देहरादून: दुनिया में कोरोना संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 11.04 करोड़ से ज्यादा पहुंच गया है. देश में कोरोना मरीजों की संख्या एक करोड़ साढ़े नौ लाख से ज्यादा पहुंच गई है, जबकि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में ही करीब एक लाख लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं. आंकड़ों की यह स्थिति स्पष्ट करती है कि कैसे कोरोना वायरस ने महज 11 महीने में ही न केवल दुनिया को हिला कर रख दिया बल्कि तेजी से संक्रमण के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को भी प्रभावित किया.
इसी बात को दूसरे लिहाज से देखें तो कोरोना वायरस भारत जैसे देशों के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में चुनौती के साथ-साथ एक बड़ा मौका लेकर भी आया. यह मौका स्वास्थ्य क्षेत्र को बेहतर और हाईटेक करने से जुड़ा है. उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए तो यह महामारी किसी बड़े संकट से कम नहीं थी. ऐसा इसलिए क्योंकि ना तो उत्तराखंड इतनी बड़ी स्वास्थ्य संबंधित परेशानी से निपटने के लिए सक्षम था और ना ही किसी भी लिहाज से तैयार.
अंदाजा लगाइए कि जिस प्रदेश में 13 जिलों में से 9 जिलों में विशेषज्ञ चिकित्सक ही न हो, जहां अस्पतालों में सीटी स्कैन और एक्सरे जैसी सामान्य सुविधाएं भी न हो, वहां ऐसी महामारी को लेकर व्यवस्थाओं की उम्मीद करना भी बेमानी ही है. लेकिन इन सबके बावजूद उत्तराखंड कोविड-19 से लड़ा भी और जीत की दहलीज पर भी खड़ा है. ये सब मुमकिन हो पाया केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बेहतर समन्वय के कारण. उत्तराखंड के लिए यह लड़ाई क्यों सबसे बड़ी चुनौती थी. सबसे पहले यह जानिए...
उत्तराखंड ने परेशानियों को मौकों में तब्दील किया
इस तरह कोविड-19 को लेकर राज्य किस तरह से पूरी तरह खाली हाथ था. ये बात समझी जा सकती है. ऐसे हालातों में अमेरिका जैसे देश को भी परेशान कर देने वाले वायरस ने जब उत्तराखंड में दस्तक दी तो राज्य में हड़कंप मच गया. लेकिन इन हालातों में केंद्र सरकार ने राज्य का साथ देते हुए जिस तरह से समन्वय बनाया. उसके बाद धीरे-धीरे परेशानियां मौके में तब्दील होती हुई दिखाई देने लगी. केंद्र सरकार ने तो राज्य को इन हालातों में स्वास्थ्य संबंधी इक्विपमेंट्स दिए ही, साथ ही राज्य सरकार ने भी विभिन्न विभागों के बजट में कटौती करते हुए स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारी भरकम बजट खर्च किया. नतीजतन उत्तराखंड में कोविड-19 का यह समय स्वास्थ्य के क्षेत्र में हालातों को बेहतर करने वाला बनता चला गया.