उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

इस मशरूम को खाने के लिए लेना पड़ सकता है लोन! चीनी खिलाड़ी करते हैं इस्तेमाल - डीएमआर सोलन

डायरेक्टोरेट ऑफ मशरूम रिसर्च सोलन ने मशरूम की नई किस्म ईजाद करने में सफलता हासिल की है. कोर्डिसेप्स मिलिटरिस किस्म का ये मशरूम बाजार में 2.5 से 3 लाख रुपये प्रति किलो बिक रहा है.

Himachal News
इस मशरूम को खाने के लिए लेना पड़ सकता है लोन.

By

Published : Dec 24, 2019, 8:10 AM IST

सोलनः शारीरिक क्षमता बढ़ाने वाले इस नई किस्म के मशरूम को खाने के लिए आम आदमी को लोन तक लेना पड़ सकता है. डायरेक्टोरेट ऑफ मशरूम रिसर्च सोलन ने मशरूम की नई किस्म ईजाद करने में सफलता हासिल की है. कोर्डिसेप्स मिलिटरिस किस्म का ये मशरूम बाजार में 2.5 से 3 लाख रुपये प्रति किलो बिक रहा है.

इस मशरूम को खाने के लिए लेना पड़ सकता है लोन.

इस मशरूम के मानव शरीर के लिए कई फायदे बताए जा रहें हैं. आज के समय में कई लोग कैंसर, किडनी और फेफड़े की बीमारियों से जूझ रहें हैं. ये मशरूम ऐसे लोगों के लिए संजीवनी बूटी से कम नहीं है.

कोर्डिसेप्स मिलिटरिस मशरूम खासतौर से थकान मिटाने और इम्यून सिस्टम (रोगों से लड़ने की क्षमता) को मजबूत करने में लाभदायक है. वहीं, यह मशरूम महिलाओं में कैल्शियम की कमी दूर करने के लिए भी फायदेमंद है.

कोर्डिसेप्स मिलिटरिस मशरूम

जानकारी के अनुसार डीएमआर सोलन में वैज्ञानिकों को इस मशरूम पर शोध करते हुए लगभग 6 साल से ज्यादा का समय हो गया था. जिसके बाद ही डीएमआर के वैज्ञानिक मेडिसिनल मशरूम कोर्डिसेप्स मिलिटरिस को उगाने में सफल हो पाए हैं.

डायरेक्टोरेट ऑफ मशरूम रिसर्च सोलन में कोर्डिसेप्स मिलिटरिस मशरूम को उगाने से जुड़ी जानकारी और ट्रेनिंग किसानों को भी दी जा रही है. शोधकर्ता ने बताया कि इस किस्म के मशरूम को उगाने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है. किसान इसे 10×10 के कमरे में भी उगा सकते हैं.

खुंब अनुसंधान केंद्र सोलन के वैज्ञानिक डॉ. सतीश ने बताया कि कोर्डिसेप्स मिलिटरिस प्राकृतिक तौर पर औषधीय गुणों के कारण बहुत लाभकारी मानी जाती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ये मशरूम मनुष्य के शरीर में रोगों से लड़ने की ताकत को बढ़ाती है. इसके साथ ही थकान मिटाने में भी यह कारगर है. यह तत्काल रूप से ताकत देते हैं.

डॉ. सतीश ने उदाहरण देते हुए बताया कि चीन के खिलाड़ी इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं. चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा कहा जाता है. फेफड़ों और किडनी के इलाज में भी इसे जीवन रक्षक दवा माना जाता है.

खुंब अनुसंधान संस्थान सोलन के डायरेक्टर डॉ. वीपी शर्मा ने कहा कि कोर्डिसेप्स मिलिटरिस मशरूम जंगलों में मिलता था, जो कि उत्तराखंड पिथौरागढ़ जिला में लोगों के आजीविका का साधन था. हिमाचल के किसान इस मशरूम की खेती कर इसे अपनी आजीविका का जरिया बना सकते हैं.

वहीं, अगर भारत में मशरूम उत्पादन के इतिहास पर नजर डालें तो 1961 से अब तक देश में मशरूम उत्पादन में 20 गुणा बढ़ोतरी हुई है. खासकर बीते 22 साल से करीब पांच गुणा उत्पादन बढ़ा है. 1997 में मशरूम का उत्पादन 40 हजार टन था जो आज बढ़कर 1.81 लाख टन हो गया है.

ये भी पढ़ें: नए साल के जश्न को लेकर पुलिस अलर्ट, भारत-नेपाल सीमा पर रहेगी विशेष निगरानी

ABOUT THE AUTHOR

...view details