देहरादून:अमिताभ बच्चन की फिल्म 'कुली' ने पहली बार मुसाफिरों का बोझ उठाने वाले इस तबके के संघर्ष को सबके सामने रखा. लेकिन इतने साल बीतने के बाद बाद भी कुलियों की जिंदगी नहीं बदली. कोरोना और तीन महीने के लॉकडाउन ने उन्हें रोजी-रोटी के लिए मोहताज कर दिया है. देहरादून रेलवे स्टेशन की रौनक याद कर आज भी कुली नंबर 145 की आंखें डबडबा जाती हैं. कोरोना काल से पहले प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार, ट्रेन के रुकने से पहले ही दौड़ लगाकर यात्रियों के सामान उठाने की आपाधापी अब महज यादों में सिमट गई है.
कुछ दिन और गाड़ियां नहीं चलीं तो ये कष्ट और बढ़ जाएगा. ये हताशा भरे शब्द देहरादून रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के सामान का बोझ उठाने वाले कुली मुकेश कुमार यादव के हैं. जो काम न मिलने से परिवार की आजीविका को लेकर चिंतित हैं. सिर पर दुनिया का बोझ उठाने वाले मुकेश कुमार यादव अब मुसीबतों के बोझ तले दबते जा रहे हैं. देहरादून रेलवे स्टेशन पर कुल 45 कुली काम करते हैं. लेकिन, इस संकट की घड़ी में आपको मुकेश देहरादून रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर रोटियों के लिए जूझते मिल जाएंगे.
लॉकडाउन से पहले देहरादून रेलवे स्टेशन से 30 ट्रेनें रवाना होती थी. लेकिन आज महज तीन ट्रेनों का ही संचालन हो रहा है. जिसकी वजह से मुकेश कुमार रोटी के मोहताज हो गए हैं. पिछले कई सालों से देहरादून रेलवे स्टेशन पर काम कर रहे गोरखपुर के मुकेश कुमार यादव कहते हैं 'रोजाना घर चलाना मुश्किल होता जा रहा है. सब्जियों तक के पैसे के लिए उधारी लेना पड़ रहा है. 10 लोगों के परिवार को अकेला चलता हूं, पिछले कई महीने कष्टों से गुजर रहे हैं और कोई पूछने वाला नहीं है'. तो पढ़िए देहरादून रेलवे स्टेशन के कुली नंबर-145 की कहानी, मुकेश की जुबानी.
रेलवे स्टेशन पर पसरा सन्नाटा
ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून रेलवे स्टेशन का रुख किया तो चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. कोरोना महामारी से पहले रेलवे स्टेशन पर लगभग 45 लोग कुली का काम करते थे, लेकिन कोरोना काल में आए रोजी-रोटी के संकट ने इन्हें यह काम छोड़ने पर मजबूर कर दिया. अब यहां एकमात्र मुकेश कुमार यादव नाम का कुली ही काम करता है.
ट्रेन के इंतजार में कुली
रेलवे स्टेशन पर लोगों का इंतजार कर रहे मुकेश के चेहरे पर ट्रेन आने के बाद थोड़ी सी मुस्कान जरूर आती है. वहीं, कोरोना को लेकर सभी यात्रियों को एक लाइन में खड़ा करके बारी-बारी से बाहर निकाला जाता है. मुकेश लाइन के एक तरफ खड़े होकर हर यात्री से उसका सामान उठाने के बारे में पूछता है, लेकिन मुकेश को अधिकतर लोग ना में जवाब देते हैं. हालांकि, मुकेश इस बात से जरा भी निराश नहीं होता. वहीं, अगली सुबह होने के इंतजार में मुकेश का समय फिलहाल बीत रहा है.
ये भी पढ़ें:इंदिरा ने दिया आश्वासन तो 45 दिन बाद टूटा फीस माफी का अनशन
मुकेश देहरादून में बने कुली
मुकेश से बातचीत में मालूम हुआ कि वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का रहने वाला है और बीते 10 सालों से वह देहरादून रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रहा है. मुकेश बताते हैं कि वह इंटर पास हैं और साथ में आईटीआई भी की हुई है. पुलिस भर्ती के सिलसिले में वह घर से बाहर निकले, लेकिन 3 से 4 बार मेरिट में सिलेक्शन ना होने की वजह से उन्होंने अपने पिताजी का काम संभाल लिया.
कोरोना महामारी जैसा समय नहीं देखा