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उत्तराखंड कांग्रेस में हलचल: हरीश रावत, गोदियाल और चारों कार्यकारी अध्यक्ष दिल्ली तलब

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) कांग्रेस संगठन से खफा हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर नाराजगी जाहिर की है. उत्तराखंड में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Legislative Assembly election 2022) से पहले वरिष्ठ नेता की नाराजगी से कांग्रेस पार्टी की मुसीबत बढ़ सकती है. इसे देखते हुए हाईकमान ने हरीश रावत और गणेश गोदियाल सहित पार्टी के चारों कार्यकारी अध्यक्षों को दिल्ली तलब किया है.

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उत्तराखंड कांग्रेस में हलचल.

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Published : Dec 23, 2021, 12:39 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड में पिछले 48 घंटों के दौरान हरीश रावत ने जिस तरह एक के बाद एक ट्वीट करके राजनीतिक घटनाक्रम को गरमा दिया है, उसने पार्टी हाईकमान को असहज जरूर कर दिया होगा. वैसे हरीश रावत का पार्टी हाईकमान पर प्रेशर पॉलिटिक्स करने का यह कोई पहला मामला नहीं है. हरीश रावत उत्तराखंड में अपने ही नेताओं और हाईकमान को समय-समय पर दबाव में लेते रहे हैं. वहीं हाईकमान ने हरीश रावत और गणेश गोदियाल सहित पार्टी के चारों कार्यकारी अध्यक्षों को दिल्ली तलब किया है.

गौर हो कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 से पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत (Harish Rawat Congress) नाराज हो गए हैं. लेकिन हरीश रावत की राजनीति कई बार कांग्रेस के लिए भारी पड़ती भी दिखाई देती है. पार्टी हाईकमान समय-समय पर हरीश रावत के राजनीतिक स्टंट का शिकार हो जाते हैं. मौजूदा समय में भी कुछ इसी तरह की स्थिति दिखाई दे रही है.

दरअसल, हरीश रावत ने पार्टी नेताओं पर गंभीर आरोप लगाते हुए चुनाव में सहयोग नहीं करने की बात कही है. सोशल अकाउंट पर अपने ट्वीट को लेकर चर्चाओं में आए हरीश रावत ने उत्तराखंड की राजनीति को तब और भी गर्म कर दिया जब उन्होंने क्षेत्रीय दल यूकेडी के नेताओं से मुलाकात की.

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हालांकि इस मुलाकात के बाद उनके पार्टी छोड़ने और तमाम दूसरी बातों को कहा जाने लगा, लेकिन हकीकत यह है कि हरीश रावत इस तरह की राजनीति करते रहे हैं और इससे पार्टी पर दबाव भी बनाते रहे हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं में भी चर्चाएं हैं कि हरीश रावत फिलहाल ऐसी गतिविधियां करके पार्टी को दबाव में लेना चाहते हैं और अपने मनमाफिक टिकट करने के साथ ही खुद को चेहरा भी घोषित करवाना चाहते हैं. हरीश रावत ने इससे पहले भी कई बार पार्टी को असहज किया है. राज्य स्थापना के बाद पहली निर्वाचित सरकार में नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही हरीश रावत उन पर दबाव बनाते हुए दिखाई दिए थे.

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यही नहीं अपने समर्थक विधायकों के साथ कई बार दिल्ली दौड़कर नारायण दत्त तिवारी को भी परेशान करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. इसके बाद जब 2012 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई तो भी उन्होंने विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद खूब चिट्ठियां लिखीं और इन्हीं चिट्ठियों की बदौलत पार्टी पर दबाव बनाने के साथ ही विजय बहुगुणा के लिए भी मुसीबत खड़ी की. हालांकि उनको इसका लाभ भी हुआ और 2013 की आपदा के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया.

अब 2021 में चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी हाईकमान को दबाव में लेना शुरू कर दिया है और अपनी उम्र के लिहाज से वे अपनी आखिरी पारी मुख्यमंत्री के तौर पर खेलना चाहते हैं. लिहाजा अब यह दबाव आने वाले दिनों में पार्टी हाईकमान पर और भी ज्यादा हुआ बढ़ता हुआ दिखाई देगा. यह सभी बातें पार्टी के एक खेमे की तरफ से लगातार कहीं जा रही हैं और गुपचुप रूप से पार्टी के नेता हरीश रावत की इस दबाव की राजनीति पर चर्चाएं भी कर रहे हैं.

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