देहरादून:उत्तराखंड में कांग्रेस की आपसी खींचतान और आगामी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर चेहरे पर शुरू हुई लड़ाई भले ही कांग्रेसी नेताओं के अंदरूनी मसले को बयां कर रही हो लेकिन हकीकत यह है कि कांग्रेस पार्टी के इस भीतरी विवाद पर आम आदमी पार्टी समेत सत्ताधारी भाजपा की भी निगाहें बनी हुईं हैं. दरअसल, प्रदेश में चुनाव नजदीक होने के चलते इस विवाद पर नफा नुकसान की राजनीतिक गणित पार्टियां लगा रही हैं.
आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में फतह हासिल कर सत्ता की कुर्सी पाने की ललक हर राजनीतिक दल में है. इससे भी बड़ी महत्वकांक्षी राजनेताओं की है जो इन राजनीतिक दलों से जुड़े हैं, लेकिन आने वाले चुनाव के परिणामों से पहले ही खुद को सत्ता की सबसे अहम कुर्सी पर देखना चाहते हैं. इसी ललक और महत्वकांक्षा का परिणाम है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी चेहरे का विवाद उठा कर खुद को कांग्रेस का बॉस बनाने की कशमकश में जुटे हुए हैं.
कांग्रेस के आपसी विवाद पर BJP और AAP की निगाहें. पार्टी हाईकमान के बिना चेहरे के चुनाव लड़ने के फैसले के बाद भी हरीश रावत का चेहरे पर अड़े रहना कांग्रेस के भीतर घमासान को और भी बढ़ा रहा है. इस बीच इस लड़ाई के फायदे भी तलाशी जा रहे हैं. दरअसल, भाजपा और आम आदमी पार्टी राजनीतिक दल होने के नाते कांग्रेस के भीतर चल रही इस कशमकश का नफा नुकसान आंक रही है. कोशिश यह है कि कांग्रेस के भीतर चल रही इस गुटबाजी का राजनीतिक रूप से आगामी चुनाव में फायदा लिया जा सके और इसी की जोड़ भाग में जुटी यह दोनों पार्टियां कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई पर नजर बनाए हुए हैं.
पढ़ें- उत्तराखंड की शांत वादियों में समय बीता रहे ये फिल्म अभिनेता, सोशल मीडिया पर शेयर किये अनुभव
उत्तराखंड में भाजपा और आम आदमी पार्टी का कांग्रेसी लड़ाई पर फायदा लेने की राजनीतिक गणित कई मायनों में खास भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव नजदीक हैं और चुनाव नजदीक आते ही दल बदल की संभावनाएं भी बेहद ज्यादा बढ़ जाती हैं. ऐसे में कांग्रेस के भीतर होती इस अनुशासनहीनता को अपनी पार्टी के लिए फायदेमंद बनाने के लिए यह दोनों दल लगे हुए हैं. हालांकि, कांग्रेस भाजपा और आम आदमी पार्टी के इन मंसूबों को कामयाब नहीं होने देने का दावा कर रही है. कांग्रेस के प्रदेश सचिव मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि कांग्रेस लोकतांत्रिक दल है और एक बड़े परिवार में टकराव की स्थिति हमेशा बनी रहती है, लेकिन भाजपा और आम आदमी पार्टी को यह गलतफहमी है कि अगर उनकी अंदरूनी खींचतान का फायदा. वह ले पाएंगे. तो उन्हें इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि पार्टी के सभी नेता जरूरत पड़ने पर एक मंच पर ही दिखाई देने वाले हैं.