उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

उत्तराखंड की 'निर्भया' के मां-बाप 8 साल से मांग रहे इंसाफ, दरिंदों को फांसी कब? - Now the matter is in the Supreme Court

rape case
कॉन्सेप्ट इमेज

By

Published : Nov 25, 2020, 12:32 PM IST

Updated : Nov 25, 2020, 10:43 PM IST

12:28 November 25

फरवरी 2012 में दिल्ली में हुई थी गैंगरेप का शिकार

देहरादून: दिल्ली की निर्भया याद है न, जिसके दोषियों को हाल ही में फांसी हुई है.  जिसके साथ हुए जघन्य अपराध के बाद पूरा देश सड़कों पर आ गया था. आपको हैदराबाद की वो बेटी भी याद होगी, जिसके मुजरिमों को पुलिस ने उस वक्त मौत के घाट उतार दिया जब वो पुलिस को चकमा देकर भागने की फिराक में थे. ऐसी तमाम घटनाओं के बारे में आपने न सिर्फ पढ़ा, बल्कि टीवी पर हुई बड़ी-बड़ी बहसों को भी देखा और सुना होगा. आज हम आपको उत्तराखंड की उस बेटी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके साथ दिल्ली की निर्भया से भी ज्यादा क्रूरता हुई थी, दरिंदों ने दो दिनों तक उसके साथ गैंगरेप किया था, लेकिन आज भी वो दोषी फांसी से बचे हैं. 

दरिंदों को फांसी की सजा दिलाने की मांग को लेकर पिछले 8 सालों से लड़की के गरीब माता-पिता हर उस दर पर जा रहे हैं, जहां से भी उन्हें इंसाफ की उम्मीद दिखाई देती है. बुधवार (25 नवंबर) को उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से भी मुलाकात की.

उत्तराखंड के पहाड़ों से निकलकर एक परिवार दिल्ली जाकर सिर्फ इसलिए बसा था ताकि वह अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे सके. पढ़-लिखकर बच्चे नाम कमा सकें. लेकिन इस परिवार की बड़ी बेटी के साथ दिल्ली में जो हुआ वो शब्दों में भी बयां नहीं किया जा सकता. यहां हम पीड़िता का नाम और उसके परिवार की जानकारी तो नहीं दे सकते है, लेकिन जिस बेटी के साथ ये दरिंदगी हुई, उसे उत्तराखंड की निर्भया जरूर कह सकते हैं. 

पढ़ें-BBC 100 Women List: हरिद्वार की रिद्धिमा भी शामिल, उम्र छोटी लेकिन हौसले बुलंद

उत्तराखंड की वो बेटी अपने परिवार का साहस बनना चाहती थी. वो अपने भाई को अच्छी परवरिश देना चाहती थी इसलिए उसने दिल्ली में पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी करनी भी शुरू कर दी थी. पिता एक प्राइवेट संस्थान में गार्ड की नौकरी कर रहे थे, लेकिन फरवरी 2012 में एक दिन ऐसा भी आया है कि 'निर्भया' के सारे सपने टूट गए. परिवार का सबकुछ लूट गया.

14 फरवरी का काला दिन

रोजना की तरह 14 फरवरी 2012 को भी 'निर्भया' अपने काम पर जाने के लिए घर से निकली थी, लेकिन उस दिन वो देर शाम तक घर नहीं लौटी. परिजनों ने उसकी काफी तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं लगा. बहुत खोजने के बाद इतनी सूचना जरूर मिली कि कुछ लोग एक लड़की को गाड़ी में डालकर दिल्ली से बाहर ले जाते हुए दिखाई दिए हैं.

पुलिस ने जांच पड़ताल शुरू की तो दो दिन बाद यानी 16 फरवरी को लड़की का शव हरियाणा में गन्ने के एक खेत में मिला था. उसके साथ जो क्रूरता की गई थी वो दिल्ली की निर्भया से भी भयावह थी. परिजनों की मानें तो उत्तराखंड की निर्भया को आरोपियों के किसी जानवर की तरह नोंचा गया था. उसे न सिर्फ मारा पीटा गया था, बल्कि दो दिनों तक लगातार उसके साथ गैंगरेप हुआ था. यही नहीं, उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया गया था, उसके नाजुक अंगों से शराब की बोतल मिली थी. पानी गरम करके उसके शरीर को दाग दिया गया था.

तत्कालीन दिल्ली सीएम शीला दीक्षित ने कही थी बेहद अजीब बात

पीड़िता परिवार न तो इतना रसूखदार था कि वो किसी नेता के पास जाकर इंसाफ की फरियाद कर सके और न ही उनके पास इतने पैसे थे कि वो महंगा वकील कर पाएं. लिहाजा केस धीरे-धीरे आगे बढ़ाना शुरू हुआ. बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए पिता ने हर वो मुमकिन कोशिश की जो वो कर सकते थे. यहां तक कि उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से  भी मुलाकात की थी. निर्भया की मां इस बारे में बताती हैं कि तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित ने उनकी बेटी के लिए जो शब्द कहे थे वो आज भी उनके कानों में गूंजते हैं. हालांकि, अब शीला दीक्षित इस दुनिया में नहीं है.

पढ़ें-देहरादून में निरीक्षक और उप निरीक्षकों को किया गया इधर-उधर

हाई कोर्ट से फांसी मिली लेकिन मामला सालों से विचाराधीन

परिवार कानूनी रूप से लड़ाई लड़ता रहा. लगभग तीन साल के बाद दिल्ली हाई कोर्ट का इस मामले में जब फैसला आया तो निचली अदालत और ऊपरी अदालत ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, जिसके बाद परिवार को यह लगा कि अब उनकी बेटी को इंसाफ मिल सकेगा. इस दौरान दिल्ली सरकार ने पीड़ित परिवार को मात्र एक लाख रुपए का मुआवजा देकर सांत्वना देने की भी कोशिश की.  

इस दौरान दोषी फांसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए और तब से आजतक पीड़ित परिवार अपनी लड़ाई जारी रखे हुये आगे बढ़ रहा है. पीड़ित परिवार के पास न तो पैसा है और न ही ऐसे कोई संपर्क जिससे वो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से लड़ सकें. पीड़ित परिवार इतना मासूम है कि उन्हें तो यह तक नहीं मालूम कि उनका वकील कौन है और अगली तारीख कब लगेगी.

सीएम के मीडिया सलाहकार चलाया कैंपन

पहाड़ की इस बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए उस वक्त न तो कैंडल मार्च हुआ, न धरने प्रदर्शन, न उस तरह से सोशल मीडिया पर आवाज उठी और न ही टीआरपी की दौड़ में शामिल टीवी चैनलों की डिबेट का ये खबर हिस्सा बन पाई. लेकिन परिवार ने इंसाफ की आस नहीं छोड़ी. पिछले 8 सालों से अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए पिता दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना भी दे चुके हैं लेकिन उस धरने पर भी किसी नेता की निगाह नहीं पड़ी वो भी तब जब बगल में केजरीवाल का भाषण चल रहा था और दूसरे गेट पर राहुल गांधी की बैठक कर रहे थे.

हालांकि, जैसे ही इस घटनाक्रम की जानकारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सलाहकार रमेश भट्ट को मिली, उन्होंने तत्काल इस मामले की जानकारी मुख्यमंत्री को दी और सोशल मीडिया पर एक कैंपेन भी शुरू किया. इसी सिलसिले में रमेश भट्ट ने पीड़ित परिवार से संपर्क किया और 24 घंटे के अंदर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिलवाने की पेशकश भी की. बुधवार को पीड़िता परिवार मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिला. देहरादून पहुंचे पीड़िता परिवार ने ईटीवी भारत के साथ भी अपना दर्द बयां किया.

मुख्यमंत्री ने दिया परिवार को भरोसा सरकार  

मुख्यमंत्री ने करीब एक घंटे तक पीड़ित परिवार से मुलाकात की. सीएम ने पीड़ित परिवार का दु:ख बांटने के साथ ही उन्हें मदद का पूरा भरोसा भी दिया. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मृतका की मां ने कहा कि उनकी बेटी पढ़ने में बहुत तेज थी, परिवार को आगे बढ़ाना चाहती थी, पिता के कंधों का बोझ उतारना चाहती थी, जिसके लिये उसने नौकरी भी शुरू कर दी थी. पूरे परिवार की देखरेख करने के साथ-साथ बस उसे एक ही जुनून सवार था कि दिल्ली जैसे शहर में उसे अपनी कमाई से एक घर बनाना है, जिसमें पिता माता और पूरा परिवार पूरा खुशी से रह सके. इसी जद्दोजहद में वह दिन रात काम करती रहती थी.

बेटी को याद कर मां की आंखें भर आई

अपनी बेटी को याद करते हुये सिसकती हुई मां ने बताया कि उन्हें आज भी ऐसा लगता है कि उनकी बेटी सुबह उठकर उन्हें आवाज लगाएगी और कहेगी कि, 'मां खाना बनाकर मेरा टिफिन पैक करो मुझे जल्दी निकलना है.' आज भी शाम को कई बार यह एहसास होता है कि बेटी दरवाजे पर आई है. 

आंखों में आंसू लिए उनकी मां कैमरे के सामने हाथ जोड़कर बस यही कहती है कि जबतक उनकी बेटी के दोषियों को सजा नहीं मिल जाती तबतक उनका जीवन किसी नर्क से कम नहीं है. मां को लगता है कि अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के संज्ञान में यह मामला आया है तो उन्हें जरुर इंसाफ मिलेगा.

पिता को भी सीएम से उम्मीद

जिस बेटी को देखकर कभी पिता को हौसला मिलता था, आज वो पिता अपने आप को टूटा हुआ महसूस करते हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए निर्भया के पिता ने कहा कि उनकी होनहार बेटी भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन अभी भी उनकी तस्वीर को देखकर उन्हें यह एहसास होता है कि वह उन्हें हिम्मत दे रही है. आज नहीं तो कल उनकी बेटी के साथ जिसने भी गलत काम किया है वह फांसी के फंदे पर जरूर लटकेंगे. शायद यही कारण है कि पिता-माता आज भी उस हर व्यक्ति से मिलते है जिससे उन्हें इंसाफ मिलने की उम्मीद है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी माता-पिता से यह वादा किया है कि सरकार निर्भया की लीगल तौर पर पूरी सहायता करेगी ताकि आरोपियों को जल्द से जल्द फांसी हो सके. 

Last Updated : Nov 25, 2020, 10:43 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details