देहरादून:उत्तराखंड में इन दिनों डेमोग्राफिकल बदलाव की चर्चाएं जोरों पर हैं. वहीं, सरकार के समर्थन के बाद जनसंख्या घनत्व की इस बहस को और हवा मिल गई है. लेकिन इस बहस की पृष्ठभूमि क्या है और वास्तविकता में धरातल पर क्या हालात हैं ? यह जानना बेहद जरूरी है.
क्या है डेमोग्राफिकल बदलाव ?
उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में कुछ विशेष क्षेत्रों में समुदाय विशेष के लोगों के जनसंख्या घनत्व में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. यह दावा भाजपा के ही लोग बढ़-चढ़कर कर रहे हैं. वह भी तब, जब प्रदेश में पिछले 5 सालों से भाजपा की सरकार है. लेकिन क्या वाकई में प्रदेश के कुछ इलाकों में इस तरह से जनसंख्या घनत्व में परिवर्तन आया है ? यह सोचने वाली बात है. दरअसल, यह मामला सीधे-सीधे लैंड जिहाद से जुड़ा हुआ है. यानी किसी धर्म विशेष समुदाय द्वारा कुछ जगहों पर आकर बस जाना और वहां के सामाजिक जनसंख्या घनत्व में बदलाव होना.
कहां से उठा मुद्दा ?
दरअसल, इस मुद्दे को बीजेपी के वरिष्ठ नेता अजेंद्र अजय ने प्रमुखता से उठाया है. भाजपा नेता अजेंद्र अजय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सरकार का ध्यान इस विषय पर आकर्षित किया है. उन्होंने अपने पत्र में जिक्र किया है कि पिछले कुछ सालों से उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में एक खास समुदाय के लोग लगातार बढ़ते जा रहे हैं. वहां पर जनसंख्या घनत्व में लगातार बदलाव आ रहा है.
क्या उत्तराखंड में वाकई हो रहा डेमोग्राफिक बदलाव? अजेंद्र अजय ने यह भी दावा किया था कि पहाड़ी अंचलों में लगातार आपराधिक घटनाओं के बढ़ने का कारण भी यही है. उनके अनुसार बीते कुछ सालों में लगातार यहां पर बाहरी लोगों की जनसंख्या बढ़ी है. तराई के इलाकों से दूसरे समुदाय के लोग आकर पहाड़ के ग्रामीण अंचलों में बस गए हैं. इसलिए वहां पर धार्मिक गतिविधियां भी बढ़ी हैं. वहीं, देवभूमि में रहने वाले और देव भूमि के देवत्व वाली संस्कृति में कमी आई है.
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मुख्यमंत्री ने जताई चिंता:मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस मामले पर काफी संजीदा नजर आ रहे हैं. उन्होंने उत्तराखंड में हुए डेमोग्राफिकल बदलाव की बात को स्वीकारा है. साथ ही इस दिशा में कुछ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस बात को भी स्वीकारा है कि पिछले कुछ सालों में इस तरह की घटनाएं हुई हैं और इससे धार्मिक सौहार्द भी बिगड़ा है. साथ ही उन्होंने शासन-प्रशासन को इसकी कार्रवाई के लिए निर्देश भी दिए हैं.
ईटीवी भारत की पड़ताल:हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने जमीनी पड़ताल की. इस हड़ताल में साथ दिया विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने. विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने उन तमाम जगहों के बारे में जानकारी दी, जहां पर इस तरह की घटनाएं हुईं हैं और इस तरह का बदलाव देखने को मिला है. हिंदू संगठन बजरंग दल के कार्यकर्ता विकास वर्मा ने बताया कि देहरादून के बंजारावाला, छिद्दरवाला सहित कई इलाकों में इस तरह की घटनाएं साफ तौर पर देखी जा सकती हैं.
उन्होंने बताया कि यहां पिछले कुछ सालों से लगातार बाहर से आए विशेष समुदाया के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. इन लोगों को यहां पर अवैध रूप से बसाया जा रहा है. इससे स्थानीय लोगों में काफी आक्रोश है. धार्मिक सौहार्द भी लगातार बिगड़ता जा रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि लगातार आसपास के इलाकों में अवैध रूप से मजार और मस्जिद में बनाई जा रही हैं, जो की चिंता का विषय है.
देहरादून में विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू जागरण मंच और तमाम हिन्दू धार्मिक संगठन इस विषय पर एकजुट होकर लामबंद हो रहे हैं. ऐसे ही देहरादून में हिन्दू जागरण मंच के जिलाध्यक्ष मंगला प्रसाद उनियाल ने बताया कि देहरादून के धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र में चांचक नाम की जगह पर रोहिंग्या मुस्लिमों की पूरी अवैध बस्ती बस चुकी है. यहां पर तकरीबन 40 परिवार अवैध रूप से रह रहे हैं और इस संबंध में शासन-प्रशासन को शिकायत भी की गई है, लेकिन अब तक इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है.
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राजधानी के ये इलाके हुए प्रभावित:प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में देहरादून नगर क्षेत्र के आजाद नगर, कारगी ग्रांट, ब्राह्मणवाला, टर्नर रोड, भारूवाला ग्रांट, मोहब्बेवाला, निरंजनपुर, ब्रह्मपुरी अधोइवाला, शिमला बाईपास, माजरा, सेवला कलां, तेलपुरा, नवादा, बंजारावाला, लक्खीबाग और मुस्लिम कॉलोनी शामिल हैं. धीरे-धीरे झंडे बाजार की गली में चूड़ी, ब्यूटी पार्लर के सामान विक्रेताओं ने अपना कारोबार शुरू किया है, जो अब खास समुदाय के लोग अपने हाथों में ले चुके हैं. पलटन बाजार में कई दुकानें किराए पर हैं, जिनका किराया डेढ़ से दो लाख रुपये है.
ऐसे क्षेत्रों में विकासनगर क्षेत्र के सहसपुर, खुशहालपुर, बैरागीवाला, ढकरानी, कुल्हाल ढालीपुर, जीवनगढ़, अंबाडी, सभावाला, हसनपुर, जाटवाला और ऋषिकेश-डोईवाला क्षेत्र में रायवाला, गुमानीवाला, आईडीपीएल, बुल्लावाला, जबरावाला, तेलीवाला, बंजारावाला, कुड़कावाला, जौलीग्रांट और केशवपुरी बस्ती शामिल हैं.
सरकार का फेल्योर या चुनावी स्टंट:इस मुद्दे पर कांग्रेस ने सीधे-सीधे बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. कांग्रेस कहना है कि इस विषय को उठाने वाले भी भाजपा के लोग हैं. अगर कहीं पर कुछ लापरवाही हुई है, तो उसकी जिम्मेदार भी भाजपा सरकार की है. कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि अगर पिछले कुछ सालों में इस तरह से देहरादून में बाहर से लोग आ कर अवैध रूप से बसे हैं, तो सरकार क्या कर रही थी ? यह पूरी तरह से सरकार का फेल्योर है. सरकार की इंटेलिजेंस का फेल्योर है.
पलायन आयोग ने रिपोर्ट में ऐसा कुछ क्यों नहीं कहा:वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली का कहना है कि उत्तराखंड में इस तरह के डेमोग्राफिक बदलाव का मामला पहली बार सामने आया है. उन्होंने कहा है कि अगर ऐसा हुआ है तो निश्चित तौर से सरकार, शासन-प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इसी सरकार ने आते ही सबसे पहले पलायन आयोग का गठन किया था. पलायन आयोग प्रदेश में पलायन और उस तरह के बदलाव को लेकर गहनता से काम कर रहा है. लेकिन आज तक पलायन आयोग की किसी भी रिपोर्ट में इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया है.
उन्होंने कहा कि सरकार अगर इस तरह से कोई जनसंख्या नियंत्रण या फिर जनसंख्या घनत्व पर कानून लाती है, तो यह सभी के लिए बेहतर है. चुनाव नजदीक है और इतने कम समय में किसी नये कानून को लाना संभव नहीं है. ऐसे में इस तरह के विषयों से चुनावी मुद्दे काफी हद तक प्रभावित हो सकते हैं.