देहरादून: राजधानी हो या अन्य बड़े मैदानी जनपद, यहां कई बच्चे खड़ी मुख्य चौक चौराहों पर लाल बत्ती पर खड़ी, कार, ऑटो और टेम्पो में सवार लोगों से भीख मांगते दिख जाते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि आखिर इनकी क्या मजबूरी है, जो इन्हें खेलने-कूदने के दिनों में भीख मांगनी पड़ रही है. उत्तराखंड के बड़े जनपदों में इन बच्चों के अलावा कई औरतें भी बच्चों को गोद में लेकर भीख मांगती दिखती हैं और इनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.
हालांकि, बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए बाल संरक्षण आयोग और पुलिस प्रदेश में संयुक्त अभियान चलाती है, लेकिन आज तक इस बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए ठोस कदम धरातल पर नहीं दिख पाए हैं. क्योंकि एक दो दिन के अभियान के बाद स्थिति जस की तस देखने को मिलती है. वहीं, प्रदेश के बाल सरक्षंण आयोग खुद बढ़ती बाल भिक्षावृत्ति को लेकर बड़े खुलासे कर रहा है.
देहरादून में आईएसबीटी, प्रिंस चौक, तहसील चौक, धर्मपुर चौक, फव्वारा चौक सहित एश्ले हॉल के आसपास बाल भिक्षावृत्ति का नजारा देखने को मिलता है. जहां छोटे-छोटे बच्चे हाथ में कटोरा लिए गाड़ियों के आगे और दोपहिया वाहन चालकों से भीख मांगते दिख जाते हैं. इन बच्चों को भिक्षावृत्ति से रोकने के लिए बाल संरक्षण आयोग और पुलिस संयुक्त तौर पर अभियान तो चलाती है, लेकिन इसके बावजूद इस पर लगाम नहीं लग पा रहा है. ईटीवी भारत में इस संबंध में बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना से बातचीत की.
इस दौरान बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना ने ऐसे खुलासे किए हैं, जो चौकाने वाले हैं. उन्होंने कहा वाकई बाल भिक्षावृत्ति के मामले बढ़ रहे हैं. आयोग और पुलिस की और से जिन बच्चों को रेस्क्यू किया जाता है. इसमें कई बच्चे ऐसे होते हैं, जो स्कूल भी जाते हैं और उनकी छुट्टी होने के बाद उनके माता पिता ही उन्हें चौक चौराहों पर भीख मांगने के लिए भेज देते हैं.