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तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास में फंसे उत्तराखंड के नेता, इस जगह से मुख्यमंत्रियों को लगता है डर! - मुख्यमंत्रियों को उत्तराखंड मुख्यमंत्री आवास से डर

करोड़ों रुपए की लागत से पहाड़ी शैली में बना उत्तराखंड मुख्यमंत्री आवास अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है. इस बंगले से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि इस बंगले में जो भी मुख्यमंत्री रहा है उसने कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है.

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उत्तराखंड सीएम आवास

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Published : May 30, 2021, 12:05 PM IST

Updated : May 30, 2021, 5:29 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा मिथक जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री आवास में अपशकुन है. यहां जो भी मुख्यमंत्री रहता है वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है. उत्तराखंड की राजनीति में इस समय इसी तरह की चर्चाएं चल रही हैं, जिन्होंने सबका ध्यान एक बार फिर मुख्यमंत्री आवास की तरफ खींचा है.

बता दें कि, देहरादून की वादियों में करोड़ों रुपए की लागत से पहाड़ी शैली में बना उत्तराखंड मुख्यमंत्री आवास अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है. इस बंगले से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि इस बंगले में जो भी मुख्यमंत्री रहा है उसने कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है. यानी उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत ने इस बंगले से दूरी बना ली है. सीएम तीरथ मुख्यमंत्री आवास को छोड़ अपने ही निजी आवास से सभी सरकारी कार्यों को पूरा कर रहे हैं. इस दौरान करोड़ों की लागत से बना मुख्यमंत्री आवास खाली पड़ा है.

मुख्यमंत्रियों को लगता है डर.

बेहद शानदार है सरकारी आवास

देहरादून राजधानी में मुख्यमंत्री का आवास बेहद शानदार क्षेत्र में बना हुआ है. घर के दो बड़े दरवाजे हैं, जिसे पहाड़ी शैली से बनाया गया है. मुख्य दरवाजे के अंदर दाखिल होते हुए बड़ा सा बगीचा है. जिसमें तरह-तरह के महंगे पेड़ पौधे और पाम के पेड़ लगे हुए हैं.

पहाड़ी शैली से मुख्य दरवाजे के बाद मुख्य बिल्डिंग बनी हुई है. महंगी लकड़ियों से खिड़की और दरवाजे बनाए गए हैं. अंदर दाखिल होते हुए चमचमाती टहल और राजस्थानी पत्थरों से किए गए काम नजर आते हैं. मुख्यमंत्री के दफ्तर को बेहद शानदार तरीके से बनाया गया है. दफ्तर के अलावा मुख्यमंत्री के घर में भी दो बड़े-बड़े ऑफिस हैं, जहां पर बैठकर के मुख्यमंत्री अपने काम देखते हैं. पब्लिक के लिए एक बड़ा हॉल है, जहां पर सोफे और कुर्सियां रखी हुई हैं. घर के बैक साइड में ही मुख्यमंत्री का दफ्तर है.

सीएम तीरथ

तंत्र-मंत्र से लेकर वास्तु कराने से भी नहीं हटे पीछे

राजनीति में ताकत पाने के लिए राजनेता हर पैतरे को अपनाते भी हैं और इसे बनाये रखने के लिए तंत्र-मंत्र से लेकर वास्तु और अंधविश्वास को मानने से भी पीछे नहीं हटते हैं. इसको लेकर उत्तराखंड से बड़ा उदाहरण कहां हो सकता है. यहां अक्सर वास्तु पर अमल करते राजनेता और तंत्र मंत्र की सिद्धि पाने की इनकी कोशिशें हमेशा चर्चा में रहती है. हालांकि नेता कई बड़े कर्मकांड गुपचुप रूप से करते हैं, लेकिन इनमें उत्तराखंड का मुख्यमंत्री आवास तो अब एक ऐसा उदाहरण बन गया है जिसे अंधविश्वास की पराकाष्ठा कहा जा सकता है.

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत

दरअसल, 10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. लेकिन करीब 80 दिन बीतने के बाद भी उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में जाने के बजाय से हाउस और अपने निजी आवास पर रहना ही मुनासिब समझा. यह खौफ ही है कि तीरथ सिंह रावत ने कभी इस आवास पर जाने की सोची भी नहीं. वैसे यह पहली बार नहीं है जब किसी मुख्यमंत्री ने करोड़ों के आलीशान मुख्यमंत्री आवाज को यू त्याग दिया हो. हरीश रावत भी उन्हीं मुख्यमंत्रियों में शामिल है. जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने निजी आवास में रहकर अंधविश्वास को बढ़ावा दिया. हरीश रावत के लिए तो यह भी कहा गया कि वे चावलों की मुट्ठी लिए विधानसभा के बाहर विधायकों का इंतजार करते दिखाई दिए. मुख्यमंत्रियों को अपने ही आवास से डर लगता है. वैसे इस डर की वाजिब वजह भी है, माना जाता है कि इस मुख्यमंत्री आवास में जो भी रहा उसे समय से पहले ही कुर्सी छोड़नी पड़ी.

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत

अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे बीसी खंडूड़ी

गढ़ी कैंट में राजभवन के बराबर में बने मुख्यमंत्री आवास का निर्माणकार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था. हालांकि, जबतक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता उसके पहले ही उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूड़ी को मिली. अधूरे बंगले को खंडूड़ी ने दिलो जान से तैयार कराया. मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने ही इस बंगले का उद्धाटन किया. लेकिन वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. ढाई साल बाद ही कुर्सी उनके नीचे से खिसक गई.

डॉ. रमेश पोखियाल निशंक

छह महीने पहले ही चली गई कुर्सी

इसके बाद बीजेपी हाई कमान ने उत्तराखंड की सत्ता डॉ. रमेश पोखियाल निशंक को सौंपी. मुख्यमंत्री बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री निशंक ने भी अपनी सत्ता इस बंगले से चलाई. लेकिन 2012 के चुनाव से ठीक छह महीने पहले ही हरिद्वार कुंभ घोटाले के आरोप में घिरे निशंक को सत्ता छोड़नी पड़ी. बीजेपी हाईकमान ने उनसे सत्ता की चाभी ले ली और प्रदेश की कमान एक बार फिर बीसी खंडूड़ी के हाथों में चली गई. यानी निशंक भी इस बंगले में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

विजय बहुगुणा भी नहीं कर पाए कार्यकाल पूरा

इसके बाद कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. मुख्यमंत्री पद पर अपनी ताजपोशी करवाने के बाद विजय बहुगुणा इसी आवास में रहने लगे. लेकिन दो साल बाद सत्ता ने फिर से पलटी मारी और विजय बहुगुणा भी सत्ता से बेआबरू होकर हटाये गए. वो इस बंगले में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और सत्ता हरीश रावत के हाथों में आ गई. हालांकि, हरदा कभी इस बगले में नहीं रहे, लेकिन 2017 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस भी हार गई थी.

इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अंधविश्वास को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री आवास में कदम रखा और मुख्यमंत्री के रूप में कामकाज शुरू किया, लेकिन वह भी इस मिथक को नहीं तोड़ पाए और अमित शाह जैसे दिग्गज नेता के करीबी होने के बावजूद भी उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. अब तीरथ सिंह रावत इस पद पर आए हैं. लेकिन उन्होंने तो इस आवास के पुराने इतिहास को भांपकर यहां न जाने का फैसला ले लिया है.

सरकार के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल का कहना है कि मुख्यमंत्री आवास में हरीश रावत अपने तंत्र मंत्र की सोच के कारण नहीं गए. लेकिन तीरथ सिंह रावत कम समय होने और कोविड-19 स्थितियों को देखकर यहां जाने से परहेज कर रहे हैं.

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कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट का कहना है कि हरीश रावत ने शानो शौकत को छोड़ते हुए मुख्यमंत्री आवास को ठुकराया था. उन्होंने कहा अगर मुख्यमंत्री आवास पर नहीं रह रहे हैं तो इस आवास को ही किसी और कार्य में प्रयोग करना चाहिए.

Last Updated : May 30, 2021, 5:29 PM IST

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